"मेरा विश्वास है कि कविता दर्शन नहीं है, आध्यात्म नहीं है, मतवाद नहीं है। सर्वोपरि वह अभिव्यक्ति है जो पाठक को उद्वेलित करती है। इस उद्वेलन के प्रभाव में आप आनंदित भी हो सकते हैं और क्षुब्ध भी। आप में प्रेम भी जाग सकता है और घृणा भी।" (तीसरा सप्तक-अज्ञेय)
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