"प्रसंगपरक यही है कि चंडी गांव का अधिक भाग इस समय चंडी के हाथ से निकल गया है। शायद देवता का इससे कुछ आता-जाता नहीं, किंतु देवता के जो सेवक या पुजारी हैं, उनका क्रोध आज भी शांत नहीं हुआ है। अब भी झगड़े-बखेड़े होते रहते हैं, जो बीच-बीच में भयानक रूप धारण कर लेते हैं।" (लेन-देन शरतचन्द्र)
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