" 'लड़का नक्सली था ?' 'नहीं, नक्सलियों की तो आलोचना करता था ।' 'आलोचना ?' इसमें प्रश्न से अधिक अविश्वास की ध्वनि थी । 'उनके काम करने के तरीक़े को वह ग़लत मानता था ।' 'उसका अपना काम करने का तरीक़ा क्या था ?' 'काम ! काम तो शायद वह कुछ करता ही नहीं था !' 'क्यों, सुना है हरिजनों और खेत-मज़दूरों को मालिकों के ख़िलाफ़ भड़काया करता था । नक्सली भी तो यही सब करते हैं ।' 'भड़काया नहीं करता था, सर...उन्हें केवल अवेयर करता था अपने अधिकारों के लिए। जैसे सरकार ने जो मज़दूरी तय कर दी है वह जरूर लो ... नहीं दें तो काम मत करो। पर झगड़ा-फ़साद या मार-पीट के लिए वह कभी नहीं कहता था।' फिर एक क्षण रुककर बोला, ' इसी बात में तो वह शायद नक्सलियों से अलग भी था ।" (महाभोज-मन्नू भंडारी)
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