"माँ के पास तो ढेर-ढेर तरीके हैं- यह हलवा तेरे लिए। यह चटनी तेरे लिए। यह तेरी पसंद की चादर। यह तेरे लिए ख़रीदा कैसेट। यह करौंदे का अचार। मेरे पास क्या है जिससे मैं 'माँ को अच्छा लगे' की अनुभूति को संभव बना सकता हूँ। यहाँ कौन सा छोर है जो नितांत मेरा अपना है जो इस हार्दिकता की सृष्टि कर सके।" (मार्था का देश- राजी सेठ)
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