मंगलवार, 10 सितंबर 2019

श्रेष्ठ कहानियां- आबिद सुरती

"क्या देखा सपने में?" 

"शंकर जी।" वह बोला, "कह रहे थे- लोकनाथ, हम तुम्हें एक मिनट का समय देते हैं। तुम जो माँगोगे सो मिल जाएगा।" 

"सच!" माँ बज उठी, "फिर तूने क्या माँगा?" 

"मैं सोचता रह गया और मिनट बीत गया।" 

"अरे पगले!" अनजाने अपनी आवाज में दुख घोलते हुए माँ ने कहा, "कम से कम अपने लिए आँखें ही माँग ली होतीं।" "तब भोलेनाथ की नजरों से मैं गिर न जाता!" 

वह बोला, "वह क्या सोचते? यह लोकनाथ कैसा स्वार्थी इंसान है। सारा जग दुखियारा है और अपने लिए वह खुशियाँ माँग रहा है।" 

उसका जवाब सुनकर माँ को हैरत न हुई। वह जानती थी। अपनी कोख से उसने बेटे को नहीं , किसी संत को जन्म दिया था।" (श्रेष्ठ कहानियां- आबिद सुरती")



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