दस
का आलू दस का प्याज
दस
की मिर्ची दस का तेल दस रु. में हो जाता है
बस्तर हाट में सारा खेल
थैला भरकर महुआ लाते
मुट्ठी भर सामान वो पाते
शहरों से आकर व्यापारी
बस्तरियों को लूट ले जाते
उन्हीं का महुआ उन्हीं कि इमली
उन्हीं का धान उन्हीं कि लकड़ी
औने-पौने में खरीदकर
रातों-रात अमीर हो जाते
पुलिस-प्रशासन और व्यापारी
मिलकर रहते बस्तर में
लूटपाट का खेल खेलते
अपने-अपने स्तर में
लोहा, सोना, हीरे, मोती
छुपें हुए हैं इस धरती में
कैसे निकले माल ये सारा
लगे हुये हैं सब युक्ति में
आवाज उठाता कोई भी तो
बर्दाश्त नहीं होता उनको
चुप न हुआ तो नक्सली बताकर
डरा दिया जाता सबको.
(कृष्ण धर शर्मा, ८.२०१६)
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