बुधवार, 28 मार्च 2018

परिणीता - शरतचंद्र

 "अब उनसे टेक लगाकर भी न बैठा गया। वे पास ही रखे हुए हुक्के की नगाली मुंह में लगाकर लेट गये और बड़े ही भक्ति-भाव से आंख मूंदकर भगवान् को याद करने लगे- "हे देवाधिदेव ! इस कलकत्ता महान् नगरी में जाने कितने लोग गाड़ी और मोटर की चपेट में आकर मरते हैं, वे क्या तुम्हारे सम्मुख मुझसे भी बढ़कर पतित हैं। हे पतित पावन! अगर तुम्हारी मुझपर दया हो जाये, तो एक भारी-सी मिलिटरी लॉरी मेरी छाती पर से होकर चली जाये। बस यही वरदान तुम मुझे दो।" परिणीता (शरतचंद्र)



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