सोमवार, 10 सितंबर 2018

असतो मा सद्गमय- रेणु 'राजवंशी' गुप्ता

 "यह उपन्यास जीवन के सनातन पहलुओं से गुजरती हुई कथा आधुनिक राजतांत्रिक और अफसरशाही तक भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार की कथा भी है तो हमारी पुरातन, परंतु नित नवीन आध्यात्मिक भारत की कथा भी है। इस कथा में भक्ति, ज्ञान, अहंकार, उच्चाकांक्षा, संतोष, भाग्य, पदलिप्सा, लोभ, कर्म, स्नेह,औदार्य सभी भाव समाहित हैं। यह कथा जीवन की सभी कलाओं से परिचय कराती है तथा चेतावनी भी देती है कि बुरे कर्म का परिणाम बुरा ही होता है।" (असतो मा सद्गमय- रेणु 'राजवंशी' गुप्ता)



#साहित्य_की_सोहबत

#पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे

#हिंदीसाहित्य

#साहित्य

#कृष्णधरशर्मा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें