हरे-भरे
और पुराने, छाँव वाले पेड़ों को
घर
के बड़े-बूढों और अनुभवी बुजुर्गों को
सदियों
पुरानी आस्थाओं को, मान्यताओं को
बिना
जाने उनके फायदे या नुकसान
काट
देना जड़ों से बेवजह ही
क्योंकि
उनकी वजह से आती हैं
हमारी
स्वछंदता में कुछ अडचनें
जो
कि बनता जा रहा है
आजकल
विकास का सूचक
इन
सब को ही मानने लगे हैं
लोग
विकसित होने की निशानी
तब
यह सोचना हो जाता है लाज़िमी
कि
किस दिशा और दशा की ओर
बढ़
रहे हैं हम और हमारा समाज !
क्या
हमें डर नहीं लगता बिलकुल भी!
कि
अपने ही खोदे गड्ढे में गिरेंगे हम
एकदिन
मुंह के बल बुरी तरह से!
ऐसे
गड्ढे में, जहाँ से निकलने का
कोई
भी रास्ता बनाया ही नहीं है हमने!
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