कच्चे
खपरैल वाले घरों में
रहती
थी इतनी जगह
कि
छुप सकें तेज बारिश में
गाय,
बैलों के साथ-साथ
कुत्ते,
बिल्ली, चूहे जैसे
और
भी जीव, जंतु
जो
नहीं कर सकते अपनी
व्यवस्था
स्वयं के लिए
रहती
थी इतनी जगह
घर
के एक कोने में
कि
रुक सके और बना सके
अपने
हाथ से अपना भोजन
भिक्षा
मांगने वाला गरीब ब्राह्मण
रहती
थी इतनी कि
आ
जाएं 5-10 मेहमान भी अगर
एक
साथ, तो भी नहीं पड़ती थी
माथे
पर कोई शिकन
उलटे
बढ़ जाता था उत्साह
उन्हें
खिलने-पिलाने का
उनकी
आवभगत करने का
मगर
टीवी और मोबाइल के
इस
आधुनिक दौर में
नहीं
बची है वह जगह
न
घर में और न लोगों के दिलों में
नहीं
बचा है वह उत्साह
न
वह अपनापन
जो
अपने लोगों के लिए होता था
न
जाने किसकी नजर लगी है
कि
रहना चाहते हैं सब अकेले ही
एक
ही घर में अजनबी जैसे...
(कृष्णधर शर्मा 20.7.2021)
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्कार
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वर्मा जी
हटाएंकड़वी सच्चाई उकेरती मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विभा रानी जी
हटाएंआज का कटु सत्य । कोई भी आ जाय तो सबकी दिनचर्या बिगड़ जाती है अब ऐसी सोच हो गयी है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंआभासी दुनिया में लिप्त और लुप्त होता हमारा मानव समाज .. हौले - हौले .. ये कहता हुआ कि "परिवर्त्तन ही प्रकृति का नियम है।" .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् सुबोध जी
हटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंकच्चे खपरैल वाले घरों में
रहती थी इतनी जगह
कि छुप सकें तेज बारिश में
गाय, बैलों के साथ-साथ
कुत्ते, बिल्ली, चूहे जैसे
और भी जीव, जंतु
जो नहीं कर सकते अपनी
व्यवस्था स्वयं के लिए
रहती थी इतनी जगह
घर के एक कोने में
कि रुक सके और बना सके
अपने हाथ से अपना भोजन
भिक्षा मांगने वाला गरीब ब्राह्मण
रहती थी इतनी कि
आ जाएं 5-10 मेहमान भी अगर
एक साथ, तो भी नहीं पड़ती थी
माथे पर कोई शिकन
सादर..
धन्यवाद यशोदा जी
हटाएंबेहद सुंदर लिखा आपने मन को छू गई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती जी
हटाएंसही कहा अब टहाँ रहे वैसे लोग और वो कच्चे घर...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर।
वाह!!!
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंस्वार्थी और असंवेदनशील का रोग लग गया है समाज में
जवाब देंहटाएंबीतें दिनों की याद सुहानी दिल में रह गयी है बस
बहुत सुन्दर
धन्यवाद कविता जी
हटाएंआपने मेरे मन की बात लिख दी है आपकी कविता बहुत अच्छी है
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