शनिवार, 23 जून 2018

ओ नदी! तुम कितनी अच्छी




ओ नदी! तुम कितनी अच्छी
तुम हो बिलकुल माँ के जैसी
लोगों के संताप तुम हरती
सबको तुम निष्पाप हो करती
सबकी गंदगी खुद में लेकर
तुम लोगों के दुःख हो हरती
बाहर से तुम दिखती चंचल
अन्दर से तुम कितनी शीतल
तर जाते हैं हम सब प्राणी
पीकर तुम्हारा निर्मल जल
ओ नदी! तुम कितनी अच्छी
तुम तो बिलकुल माँ के जैसी 
          (कृष्ण धर शर्मा, 11.2017)

पुराना पुल, प्रेम और बूढ़े लोग



पुराने पुल के आखिरी छोर पर
शाम के धुंधलके में बैठे हुए 
दूर से आती लैंप पोस्ट की
मद्दिम रोशनी के सहारे
पढ़ना किसी का प्रेम पत्र 
प्रेम करने वालों के लिए
कितना आकर्षक होता है न!
दिनभर की भागा-दौड़ी से दूर
शाम को पुराने पुल पर
टहलते हुए बूढ़े लोग
उन्हें अपना सा लगता है
बूढ़ा और जर्जर हो चुका पुल
लगे भी क्यों न भला!
फुरसत में वह भी हैं और पुल भी
दोनों ही के पास बची हैं
अतीत की सुनहरी यादें
खाली समय काटने के लिए
हाँ मगर कचोटता भी है
कभी-कभी यह खालीपन
नए बन चुके पुल के सामने
मगर कौन याद करना चाहेगा
पुराने पुल या बूढ़े लोगों को!  
        (कृष्ण धर शर्मा, 25.8.2017)

खोखली कविताएं



खोखले समाज को और भी खोखला करती
एक खोखले कवि की खोखली कविताएं
थके-हारे मन को और भी निराश करती
खोखले समय की खोखली कविताएं
समय ही बुरा नहीं होता है हमेशा
समय को बुरा बनती हैं अक्सर
बुरे समय की बुरी कविताएं
कब तक दोष दोगे तुम दूसरों को बुरे कवि!
दोषी तो अंततः तुम्हीं साबित किये जाओगे
अगर न चेते तुम और तुम्हारी कविताएं
          (कृष्ण धर शर्मा, 22.7.2017)

शैतान



किसी शैतान से कहाँ कम होते हैं वह
जो सिखाते हैं अपने बच्चों को नफ़रत करना
किसी और को कुचलते हुए आगे बढ़ना
दूसरों के कंधे पर पैर रखकर ऊपर चढ़ना
औरों के हिस्से की रोटी भी खुद हजम करना
अपनी छोड़ किसी की परवाह न करना
सारा दिन करके गलत काम
शाम को बैठकर माला जपना
                         (कृष्ण धर शर्मा, 22.7.2017)