नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 26 जून 2018

औरतें - खुशवन्त सिंह

 "जिन लोगों के वैवाहिक सम्बन्ध, या इसी किस्म के दीर्घकालिक सम्बन्ध टूट जाते हैं, उनके पहले कुछ दिन, हफ्ते और महीने बड़ी मुश्किल से बीतते हैं। उन्हें अपने साथ तरह-तरह के समझौते करने पड़ते हैं, अपने अभिभावकों, और उनके साथ उनके सगे-सम्बन्धियों, अपने बच्चों, भाइयों और बहनों जैसे रिश्तेदारों के पुराने सम्बन्धों में सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। उन्हें अपनी मित्रमंडली के सदस्यों की अनेकानेक जिज्ञासाओं की भूख को भी विस्तार से तृप्त करना पड़ता है। ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि उनका जवाब देना बड़ा कठिन हो जाता है" (औरतें-खुशवन्त सिंह)




#साहित्य_की_सोहबत

#पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे

#हिंदीसाहित्य

#साहित्य

#कृष्णधरशर्मा


शनिवार, 23 जून 2018

ओ नदी! तुम कितनी अच्छी




ओ नदी! तुम कितनी अच्छी
तुम हो बिलकुल माँ के जैसी
लोगों के संताप तुम हरती
सबको तुम निष्पाप हो करती
सबकी गंदगी खुद में लेकर
तुम लोगों के दुःख हो हरती
बाहर से तुम दिखती चंचल
अन्दर से तुम कितनी शीतल
तर जाते हैं हम सब प्राणी
पीकर तुम्हारा निर्मल जल
ओ नदी! तुम कितनी अच्छी
तुम तो बिलकुल माँ के जैसी 
          (कृष्ण धर शर्मा, 11.2017)

पुराना पुल, प्रेम और बूढ़े लोग



पुराने पुल के आखिरी छोर पर
शाम के धुंधलके में बैठे हुए 
दूर से आती लैंप पोस्ट की
मद्दिम रोशनी के सहारे
पढ़ना किसी का प्रेम पत्र 
प्रेम करने वालों के लिए
कितना आकर्षक होता है न!
दिनभर की भागा-दौड़ी से दूर
शाम को पुराने पुल पर
टहलते हुए बूढ़े लोग
उन्हें अपना सा लगता है
बूढ़ा और जर्जर हो चुका पुल
लगे भी क्यों न भला!
फुरसत में वह भी हैं और पुल भी
दोनों ही के पास बची हैं
अतीत की सुनहरी यादें
खाली समय काटने के लिए
हाँ मगर कचोटता भी है
कभी-कभी यह खालीपन
नए बन चुके पुल के सामने
मगर कौन याद करना चाहेगा
पुराने पुल या बूढ़े लोगों को!  
        (कृष्ण धर शर्मा, 25.8.2017)

खोखली कविताएं



खोखले समाज को और भी खोखला करती
एक खोखले कवि की खोखली कविताएं
थके-हारे मन को और भी निराश करती
खोखले समय की खोखली कविताएं
समय ही बुरा नहीं होता है हमेशा
समय को बुरा बनती हैं अक्सर
बुरे समय की बुरी कविताएं
कब तक दोष दोगे तुम दूसरों को बुरे कवि!
दोषी तो अंततः तुम्हीं साबित किये जाओगे
अगर न चेते तुम और तुम्हारी कविताएं
          (कृष्ण धर शर्मा, 22.7.2017)

शैतान



किसी शैतान से कहाँ कम होते हैं वह
जो सिखाते हैं अपने बच्चों को नफ़रत करना
किसी और को कुचलते हुए आगे बढ़ना
दूसरों के कंधे पर पैर रखकर ऊपर चढ़ना
औरों के हिस्से की रोटी भी खुद हजम करना
अपनी छोड़ किसी की परवाह न करना
सारा दिन करके गलत काम
शाम को बैठकर माला जपना
                         (कृष्ण धर शर्मा, 22.7.2017)