नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 16 मार्च 2015

अकिंचन का आतिथ्य


घर के सबसे अच्छे बरतन
सबसे सुथरी चादर
सबसे बढ़िया बिस्तर
और अपना निर्मल हृदय
परोस देता है अकिंचन
अतिथि के आतिथ्य में
नास्ते में नमकीन,बिस्कुट,चाय
और खाने में पूड़ी,सब्जी,सेवई
या जो भी बन सके सबसे अच्छा
वह सब खिलाता है
अपने अतिथि को अकिंचन
परवाह नहीं करता अकिंचन जरा भी
कि कितनी उधारी हो गई है
पड़ोसियों के यहाँ
या फिर नुक्कड़ की दुकान पर
वह तो बस चाहता है कि
खुश होकर, तृप्त होकर
अपने घर वापस जाये उसका अतिथि
भले ही इसके एवज में
रह जाए वह सदा ही अकिंचन!

                 (कृष्ण धर शर्मा, २०१५)

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