टोपड़ी गांव सहारनपुर जिले (उत्तर प्रदेश) की एक मिश्रित आबादी का गांव
है। दलित परिवारों की संख्या अधिक है। यहां के शान्त जीवन में कुछ समय पहले
एक गंभीर समस्या आंधी की तरह आई जिसने अनेक भरे-पूरे परिवारों को बुरी तरह
ध्वस्त कर दिया व विशेषकर महिलाएं तो बुरी तरह परेशान हो गईं। समस्या यह
थी कि टोपड़ी गांव में बड़े पैमाने पर अवैध शराब का निर्माण शुरू हो गया था।
इस धंधे में लगे तत्व बहुत शक्तिशाली थे। उनका कारोबार तेजी से बढ़ने लगा।
सस्ती शराब बहुत निकट उपलब्ध होने के कारण अनेक परिवार इसकी गिरफ्त में आने
लगे। एक ओर तो उनके द्वारा प्रतिदिन शराब पीने से घर में जरूरी साज-समान व
बच्चों की फीस के पैसे की कमी होने लगी। दूसरे, गांवों में लड़ाई-झगड़े बढ़ने
लगे। अनेक परिवारों में पत्नी ने पति को शराब छोड़ने को कहा व घर के जरूरी
खर्च के पैसे मांगे तो उनके पति ने उनसे मार-पीट कर दी। घरेलू हिंसा की
घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई।
शराब का सेवन करने वालों का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़़़़ने लगा व इस कारण कुछ मौतें भी हुई। महिलाओं को सबसे अधिक चिन्ता तब हुई जब उनकी नजर में यह आने लगा कि वयस्क पुरुषों की देखादेखी दस से बारह वर्ष की कच्ची उम्र के कुछ बच्चे भी चोरी-छिपे शराब पीने लगे। उन्हें लगा कि अब तो स्थिति हद से बाहर निकलती जा रही है। अब महिलाओं में चर्चा होने लगी कि किस तरह इस तेजी से बिगड़ती स्थिति को नियंत्रित किया जाए।
इस गांव में पहले से महिलाओं, सीमान्त किसानों व खेत मजदूरों का एक मोर्चा सक्रिय है जिसे संक्षेप में मोर्चा कहा जाता है। इसके अतिरिक्त यहां बचत के लिए महिलाओं के अनेक स्वयं सहायता समूह भी गठित हो चुके हैं। इन सब महिलाओं ने मिलकर लगभग 50 महिलाओं के एक नए समूह का गठन किया। यह समूह गांव में जगह-जगह जाकर अवैध शराब का पता लगाने लगा। इसकी जानकारी पुलिस व प्रशासन को दी गई। जरूरत बढ़ने पर इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए एक औपचारिक संगठन का गठन किया गया। प्रशासन पर बार-बार असरदार कार्यवाही का दबाव बनाने के लिए जिला मुख्यालय में महिलाओं ने धरना-प्रदर्शन भी किया।
यह प्रयास अनेक महीनों तक जारी रहे तो अंत में जिला प्रशासन ने असरदार कार्यवाही की व इस गांव में अवैध शराब बनाने के कार्य को सख्ती से बंद किया गया। इस गांव में जाने पर इस प्रयास में सक्रिय महिलाओं ने बताया कि अवैध शराब के अड्डे हटने के बाद गांव में शराब पीने की प्रवृत्ति में बहुत कमी आई है। इस तरह के अनेक प्रयास इस जिले के कुछ अन्य गांवों में भी सफल रहे हैं। पहले बड़ा संघर्ष सरसावा ब्लाक के पठेड़ गांव में हुआ जहां मारपीट व हिंसा के बावजूद महिलाओं ने शराब के ठेके को हटाकर ही दम लिया। यह शराब की दुकान अनेक असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गई थी और इसके कारण गांव में शराब की खपत तेजी से बढ़ने के साथ अनेक महिलाओं की असुरक्षा भी बढ़ गई थी।
इसके बाद तो कई गांवों में शराब व नशे के विरुद्ध संघर्ष हुए जिनमें अवैध शराब के कई अड्डों को हटाया गया। इसके बावजूद इस कारोबार में लगे अपराधी तत्व पठेड़ सहित कई गांवों में अपने काले धंधे को बढ़ाने के प्रयास करते रहे हैं। इस तरह के अनेक उदाहरण हरियाणा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तमिलनाडु जैसे अनेक राज्यों से सामने आते रहे हैं जिनमें शराब व नशे के विरुद्ध जन-अभियानों व संघर्षों में महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। वास्तव में शराब की बढ़ती खपत में सबसे अधिक समस्याएं महिलाओं को ही सहनी पड़ती है। विभिन्न महिला आंदोलनों में शराब व नशे के विरोध को एक महत्वपूर्ण स्थान हमारे देश में मिल चुका है।
किन्तु महानगरों के स्तर पर शराब के विरुद्ध इतनी स्पष्ट सजगता महिला आंदोलन में नजर नहीं आ रही है। अत: महानगरों में महिलाओं में शराब के नशे के प्रति अधिक जागरुकता उत्पन्न करने की जरूरत अभी बनी हुई है।
भारत में 5 प्रतिशत से भी कम महिलाएं शराब का सेवन करती हैं जबकि कुछ पश्चिमी देशों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से भी अधिक है। अत: पश्चिमी देशों के महिला आंदोलन ने शराब के सेवन को एक सामान्य बात माना व इसके विरुद्ध सक्रियता नहीं दिखाई। इसका असर भारत जैसे विकासशील देशों में भी महानगरों में केंद्रित महिला आंदोलन पर पड़ा। उन्होंने भी शराब के सेवन को बड़ी समस्या नहीं माना और शराब तथा नशे को अधिक महत्व नहीं दिया। इस कारण महानगरों में शराब के प्रसार को महिलाओं में रोकने के लिए जिस सजगता की जरूरत थी वह नहीं देखी गई।
दूसरी ओर शराब उद्योग ने यह भ्रामक प्रचार किया कि रेड वाईन जैसी शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है जिससे महिलाओं में कुछ विशेष तरह की शराब का सेवन बढ़ने लगा। इसका महिलाओं के स्वास्थ्य पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा। वैसे तो शराब सभी के लिए बहुत हानिकारक है पर महिलाओं के लिए वह पुरुषों से भी अधिक हानिकारक है। गर्भावस्था में बहुत थोड़ी सीे शराब का सेवन भी बहुत हानिकारक है।
साभार - भारत डोगरा (देशबंधु)
शराब का सेवन करने वालों का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़़़़ने लगा व इस कारण कुछ मौतें भी हुई। महिलाओं को सबसे अधिक चिन्ता तब हुई जब उनकी नजर में यह आने लगा कि वयस्क पुरुषों की देखादेखी दस से बारह वर्ष की कच्ची उम्र के कुछ बच्चे भी चोरी-छिपे शराब पीने लगे। उन्हें लगा कि अब तो स्थिति हद से बाहर निकलती जा रही है। अब महिलाओं में चर्चा होने लगी कि किस तरह इस तेजी से बिगड़ती स्थिति को नियंत्रित किया जाए।
इस गांव में पहले से महिलाओं, सीमान्त किसानों व खेत मजदूरों का एक मोर्चा सक्रिय है जिसे संक्षेप में मोर्चा कहा जाता है। इसके अतिरिक्त यहां बचत के लिए महिलाओं के अनेक स्वयं सहायता समूह भी गठित हो चुके हैं। इन सब महिलाओं ने मिलकर लगभग 50 महिलाओं के एक नए समूह का गठन किया। यह समूह गांव में जगह-जगह जाकर अवैध शराब का पता लगाने लगा। इसकी जानकारी पुलिस व प्रशासन को दी गई। जरूरत बढ़ने पर इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए एक औपचारिक संगठन का गठन किया गया। प्रशासन पर बार-बार असरदार कार्यवाही का दबाव बनाने के लिए जिला मुख्यालय में महिलाओं ने धरना-प्रदर्शन भी किया।
यह प्रयास अनेक महीनों तक जारी रहे तो अंत में जिला प्रशासन ने असरदार कार्यवाही की व इस गांव में अवैध शराब बनाने के कार्य को सख्ती से बंद किया गया। इस गांव में जाने पर इस प्रयास में सक्रिय महिलाओं ने बताया कि अवैध शराब के अड्डे हटने के बाद गांव में शराब पीने की प्रवृत्ति में बहुत कमी आई है। इस तरह के अनेक प्रयास इस जिले के कुछ अन्य गांवों में भी सफल रहे हैं। पहले बड़ा संघर्ष सरसावा ब्लाक के पठेड़ गांव में हुआ जहां मारपीट व हिंसा के बावजूद महिलाओं ने शराब के ठेके को हटाकर ही दम लिया। यह शराब की दुकान अनेक असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गई थी और इसके कारण गांव में शराब की खपत तेजी से बढ़ने के साथ अनेक महिलाओं की असुरक्षा भी बढ़ गई थी।
इसके बाद तो कई गांवों में शराब व नशे के विरुद्ध संघर्ष हुए जिनमें अवैध शराब के कई अड्डों को हटाया गया। इसके बावजूद इस कारोबार में लगे अपराधी तत्व पठेड़ सहित कई गांवों में अपने काले धंधे को बढ़ाने के प्रयास करते रहे हैं। इस तरह के अनेक उदाहरण हरियाणा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तमिलनाडु जैसे अनेक राज्यों से सामने आते रहे हैं जिनमें शराब व नशे के विरुद्ध जन-अभियानों व संघर्षों में महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। वास्तव में शराब की बढ़ती खपत में सबसे अधिक समस्याएं महिलाओं को ही सहनी पड़ती है। विभिन्न महिला आंदोलनों में शराब व नशे के विरोध को एक महत्वपूर्ण स्थान हमारे देश में मिल चुका है।
किन्तु महानगरों के स्तर पर शराब के विरुद्ध इतनी स्पष्ट सजगता महिला आंदोलन में नजर नहीं आ रही है। अत: महानगरों में महिलाओं में शराब के नशे के प्रति अधिक जागरुकता उत्पन्न करने की जरूरत अभी बनी हुई है।
भारत में 5 प्रतिशत से भी कम महिलाएं शराब का सेवन करती हैं जबकि कुछ पश्चिमी देशों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से भी अधिक है। अत: पश्चिमी देशों के महिला आंदोलन ने शराब के सेवन को एक सामान्य बात माना व इसके विरुद्ध सक्रियता नहीं दिखाई। इसका असर भारत जैसे विकासशील देशों में भी महानगरों में केंद्रित महिला आंदोलन पर पड़ा। उन्होंने भी शराब के सेवन को बड़ी समस्या नहीं माना और शराब तथा नशे को अधिक महत्व नहीं दिया। इस कारण महानगरों में शराब के प्रसार को महिलाओं में रोकने के लिए जिस सजगता की जरूरत थी वह नहीं देखी गई।
दूसरी ओर शराब उद्योग ने यह भ्रामक प्रचार किया कि रेड वाईन जैसी शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है जिससे महिलाओं में कुछ विशेष तरह की शराब का सेवन बढ़ने लगा। इसका महिलाओं के स्वास्थ्य पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा। वैसे तो शराब सभी के लिए बहुत हानिकारक है पर महिलाओं के लिए वह पुरुषों से भी अधिक हानिकारक है। गर्भावस्था में बहुत थोड़ी सीे शराब का सेवन भी बहुत हानिकारक है।
साभार - भारत डोगरा (देशबंधु)