नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

जनरल वार्ड


जनरल वार्ड के बेड न. २७ पर लेटे हुए ११ साल के लड़के से जब माँ ने पूछा कि “ मैं काम पर जा रही हूँ बेटा. शाम को जल्दी आ जाउंगी. तब तक तू अकेले रह लेगा न!”.
यह सुनकर आस-पास के सभी लोगों सहित मैं भी चौंक पड़ा.
 पलट कर देखा तो फटे-पुराने कपडे पहने एक औरत अपने बेटे को दिलासा दे रही थी कि तू घबराना मत बेटे, मैं काम पर जाकर शाम तक जल्दी वापस आ जाउंगी.
 अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह दिलासा अपने बेटे को दे रही है या खुद अपने को!
औरत से पूछने पर पता लगा कि कल रात उसके शराबी पति ने शराब के लिए रूपये न मिल पाने पर अपनी बीवी और बच्चे की पहले तो पिटाई की बाद में हताशा में अपनी ही झोपडी में आग लगा दी.
वह औरत चाहकर भी झोपडी से अपना कुछ भी सामान नहीं निकल पाई और रोती-बिलखती रह गई.
 
पति को तो पुलिस उठाकर ले गई और बच्चे की पिटाई और सदमें से तबियत बिगड़ गई जिसे लेकर वह सरकारी अस्पताल में आई थी जहाँ पर पर्ची कटवाने के लिए उसके पास १० रूपये भी नहीं थे.
अगले दिन सुबह काफी सोच-विचार कर उसने काम पर जाने का निर्णय लिया.
उसके इस निर्णय पर अस्पताल में उपस्थित सभी लोग एक साथ हैरान और शर्मिंदा लग रहे थे................कृष्ण धर शर्मा 4.2015

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

अँधेरा-उजाला


अँधेरे से डरना एक सामान्य सी बात है
सदा से उजाले में ही रहने वालों के लिए
और इतनी ही सामान्य सी बात है
उजाले से डरने वालों के लिए भी
कि जिनका जीवन ही कट जाता है अंधेरों में
घबरा जाते हैं असहज हो जाते हैं
जो उजाले को देखकर ही
ठीक वैसे ही जैसे अँधेरे को देखकर हम
दोष इसमें किसी का नहीं है, न उनका न हमारा
ध्यान रखना होगा मगर हमें ही
कि उजाला कुछ इस तरह से
लाया जाए उनके जीवन में
जैसे कि चिमनी का उजाला
जैसे कि लालटेन का उजाला
इस तरह से नहीं कि जला दिया जाये
पूरे २०० वाट का बल्ब उनके सामने  
डर जाएँ वह अचानक से ही
और डरते रहें वह फिर हमेशा उजालों से
क्योंकि सदियों से अंधरे में रहने की आदत को
बदला नहीं जा सकता कुछ एक दिनों में

                          (कृष्ण धर शर्मा, २०१५)