नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

आम आदमी खास आदमी


आम आदमी देखता है आम सपने
खास आदमी देखता है खास सपने
कभी-कभी तो इन सपनों का
अंतर होता है इतना ज्यादा 
कि जैसे जमीन और आसमान का
जैसे नदी और समुद्र का अंतर
कुछ सपने समान भी होते हैं इनके
जैसे अपनों की खुशहाली के सपने
आम आदमी देखता है सपने 
कल और परसों के
ख़ास आदमी देखता है सपने
महीनों और बरसों के
आम आदमी करता है चिंता
अपने पडोसी की भी
कहीं कुछ परेशानी या
विपदा में तो नहीं है उसका पडोसी!
खास आदमी पडोसी की चिंता को
घुसने ही नहीं देता है घर में अपने
खिड़की, दरवाजों सहित
हर उस जगह पर बिठा देता है पहरे
कमरों को भी करवा देता है साउंडप्रूफ
ताकि न आ सकें किसी गरीब की
परेशान आहें या कराहें घर में उसके
मगर इस चक्कर में बंद कर लेता है वह
सकारात्मक भावनाओं और संभावनाओं का
आना जाना भी अपने घर में
फंसकर रह जाता है वह अपने ही बुने
कांक्रीट और सुविधाओं के जाल में
जबकि आम आदमी की झोपडी में
नहीं है कोई रोक-टोक
न पडोसी की चिंताओं के लिए
न चिड़िया के लिए न कुत्ते-बिल्ली के लिए
न ही किसी भूखे भिखारी के लिए
आम आदमी को क्या जरूरत
एयरकंडीशन कमरों की
वह तो गज़ब का सुख पाता है
भरी दोपहरी में भी
वटवृक्ष के नीचे बैठकर
जहाँ बैठकर कोई बुद्ध हुआ
तो कोई महावीर हो गया....

               (कृष्ण धर शर्मा, ७.२०१६)

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