मथुरा से कुछ दूरी पर स्थित है गोवर्धन पर्वत यह पावन धाम हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. जहां भगवान श्री कृष्ण ने अनेक लीलाएं की थी. अपने पौराणिक महत्व के फलस्वरूप यह पर्वत सभी के लिए पूजनिय धाम बना है. गोवर्धन पर्वत जिसे गिरीराज के नाम से भी जाना जाता है .
गोवर्धन पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल मौजूद हैं जो जिनका दर्शन पाकर सभी धन्य होते हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथी को गोवर्धन पूजा की जाती है इस दिन अन्न कुट, मार्गपाली आदि का आयोजन किया जाता है. यह ब्रज का मुख्य त्यौहार होता है.
अन्नकुट जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है़ इस दिन गाय बैल का पूजन किया जाता है उन्हें फूल माला, चन्दन आदि लगाया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसका पूजन होता है तथा परिक्रमा की जाती है.
किंवदंती अनुसार एक बार मुनी पुलस्थय भ्रमण करते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहूँचे, वहां का सुंदर मनोहर नजारा देखकर उनका हृदय प्रसन्न हो गया उनके मन में गोरिराज को अपने साथ ले जाने का विचार उत्पन्न हुआ.
मुनी ने राजा से ओरोंकल गोवर्धन ले जाने की बात रखी उन्हों ने कहा की वह जहां से आए हैं वहां पर एक भी सुंदर पर्वत नहीं है अत: आप इस अनमोल रत्न को मुझे सौंप दें. परंतु राजा ने मुनी को कुछ और मांगने को कहा वह उसे नही देना चाहते थे. यह सब बातें गोवर्धन ने सुन ली और मुनी से कहा की मैं आपके साथ जाने के लिए तैयार हूं किंतु मेरी एक शर्त है कि आप मुझे जहां भी रखेगें मै वहीं पर रूक जाऊंगा और वहां से हिलूंगा भी नही.
मुनी ने यह बात स्वीकार कर ली. पुलस्थय मुनि गोवर्धन को अपने दायें हाथ पर रख कर कली के लिए निकल पडे़. जब मुनी ब्रज से गुजर रहे थे तब मुनी साधना के लिए रूक गए और उन्होंने गोवर्धन को भूल वश वहीं रख दिया तथा जब मुनी की अराधना समाप्त हुई तो उन्होंने पर्वत को उठाना चाहा परंतु गोवर्धन तो वहीं पर स्थिर हो चुका था.
उन्हें गोवर्धन की कही बात याद आई परंतु ऋषि न माने और हठ करने लगे इतने पर भी जब पर्वत अपने स्थान से नही हिला तो उन्हें बहुत क्रोध आया ओर क्रोधवश उन्होंने पर्वत को शाप देते हुए कहा कि गोवर्धन तुम घरती में धसते चले जाओंग ओर एक दिन पूर्ण रुप से धरती के गर्भ में समा जाओगे. इसी कारण गोवर्धन प्रतिदिन नीचे धसते चले जा रहे हैं.
इसके अतिरिक्त कहते हैं कि गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अँगुली पर उठा लिया था और इन्द्र के प्रकोप से ब्रज वासियों की रक्षा की थी तब से गोवर्धन पूजा की जाती है.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथी को गोवर्धन पूजा की जाती है इस दिन अन्न कुट, मार्गपाली आदि का आयोजन किया जाता है. यह ब्रज का मुख्य त्यौहार होता है. अन्नकुट जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है़ इस दिन गाय बैल का पूजन किया जाता है उन्हें फूल माला, चन्दन आदि लगाया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसका पूजन होता है तथा परिक्रमा की जाती है.
कृष्ण की इस लीला का वर्णन अनेक कवियों ने अपने ग्रंथों में किया है. इस मन भावन लीला का वर्णन गौडी़य संप्रदाय के लोग भक्ति रस के गीतों मे करते रहे हैं वहीं दानकेलि कौमुदी आदि ग्रन्थों में इस प्रेम लीला का वर्णन मिलता है. इस प्रसंग के कारण ही इस जगह को दान घाटी के नाम से जाना जाता है तथा मंदिर में विराजमान गोवर्धन शीला का दूधाभिषेक किया जाता.
जतीपुरा जो गोपालपुरा के नाम से भ जाना जाता था में श्रीनाथ भगवान का मंदिर है कहते हैं यहीं पर कृष्ण के परम भक्त कवि सूरदास जी भगवान के गितों को गाया करते थे तथा कीर्तन किया करते थे. यह स्थल बल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र रहा है यहां बल्लभ सम्प्रदाय के अनेक मन्दिर देखे जा सकते हैं. यहीं मुखारबिन्द है. बिलछू कुण्ड , ढाक, श्याम, हरजी कुण्ड, गोविन्द स्वामी की कदम्ब खण्डी आदि ऐतिहासिक स्थान भी हैं.
गोवर्धन गाँव के बीच में श्री मानसी गंगा है इस पर एक कथा प्रचलित है एक बार सभी ब्रजवासी गंगा स्नान करने के लिए गंगा धाम जाने लगे संध्या समय वे गोवर्धन पहुँचे ओर वहीं पर रात्रि व्यतीत करने का विचार व्यक्त किया भगवान कृष्ण मन में विचारते है.
ब्रज तो तीर्थों का स्थल है यहां से कहीं ओर जाने की क्या आवश्यकता है. अत: इस विचार के आते ही गंगा जी मानसी रुप में गोवर्धन पर्वत की तलहटी में प्रकट हो गईं. और जब प्रात समय ब्रजवासियों ने वहां गंगा जी के दर्शन किए तो सभी चकित रह गए ओर श्री कृष्ण के कहने पर सभी ने वहीं पर गंगा स्नान किया एवं पवित्र गंगा जल में दीप दान किया.
श्री कृष्ण के मन से उत्पन्न (आविर्भूत) होने के कारण गंगाजी को मानसीगंगा कहा जाता है. यहां मानसी गंगा स्नान का महत्व गंगा स्नान जितना ही है भक्तगण यहाँ पर स्नान पूजा-अर्चना करते हैं । भाग्यवान भक्तों को कभी-कभी इसमें दूध की धारा का दर्शन होता है.मानसी गंगा के किनारे पर मुखारविन्द मन्दिर स्थित है.
कुसुम सरोवर
गोवर्धन से लगभग 2 किलोमीटर दूर राधाकुण्ड के निकट स्थापत्य कला के नमूने का एक समूह जवाहर सिंह द्वारा अपने पिता सूरजमल ( ई.1707-1763) की स्मृति में बनवाया गया। ई. 1675 से पहले यह कच्चा कुण्ड था जिसे ओरछा के राजा वीर सिंह ने पक्का कराया उसके बाद राजा सूरजमल ने इसे अपनी रानी किशोरी के लिए बाग़-बगीचे का रूप दिया और इसे अधिक सुन्दर और मनोरम स्थल बना दिया
एक समय भगवान कृष्ण अपनी गायों को चराने के लिए जा रहे थे उसी समय एक राक्षस उनकी गायों मे गाय का रूप बना कर आ गया और उत्पात मचाने लगा। भगवान कृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर उसकी करनी का दण्ड दिया। वध करने के पश्चात भगवान कृष्ण राधा से मिलने गये। राधा ने कहा कि मैं आपसे नहीं मिलूगी. और आपको गौ हत्या का पाप लग गया है।
कहा की उन पर गौ हत्या का पाप लगा है जब तक आप इस पाप से मुक्ति नहीं पा लेते तब तक मुझसे नहीं मिल पाओगे अत: भगवान ने प्रायश्चित स्वरूप वहां पर एक कुण्ड का निर्माण किया तथा समस्त तीर्थों को आह्वान किया व उन्हें जलरूप द्वारा कुण्ड में प्रवेश करवाया तत्पश्चात पवित्र निर्मल जल मे स्नान कर पाप से मुक्ति प्राप्त कि किन्तु राधा उस कुण्ड से भी सुन्दर कुण्ड का निर्माण करके सभी को चकित करना चाहती थी
इसलिए उन्होंने अपने कंगन से एक मनोहर कुण्ड का निर्माण कर दिया और वह कुण्ड भी सब तीर्थों के जल से परिपूर्ण हो गया. इस प्रकार इन कुण्डों का निर्माण हुआ जिस कारण यह स्थल पवित्र पावन स्थल माना जाता है. और कार्तिक मास की कृष्णाष्टमी के दिन असंख्य श्रद्धालु यहां पर स्नान करते हैं.
गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थित है उद्धव कुण्ड यह भगवान के सखा एवं भक्त उद्धव के नाम से प्रसिद्ध है. अनेक ग्रंथों मे इसके बारे में उल्लेख प्राप्त होते हैं. कहते हैं की वज्रनाभ समेत शाण्डिल्य ऋषि के द्वारा यहाँ उद्धव कुण्ड का निर्माण हुआ था.
स्कन्द पुराण में इसका वर्णन मिलता है माना जाता है कि उद्धव जी यहाँ हमेशा निवास करते हैं. और यहीं पर जब कृष्ण सभी से विछोह कर चले गए थे तो उद्धव जी ने महिषियों को सांत्वना दी.
इसी प्रकार गोवर्धन पर्वत मार्ग में अन्य कई महत्वपूर्ण स्थान आते हैं आन्यौर, कुसुम सरोवर है जो बहुत ही सुंदर एवं मनहर स्थल है यहां पर मंदिर भी स्थापित है एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है मानसी गंगा के समीप मुखारविन्द बना है
आषाढ़ पूर्णिमा तथा कार्तिक माह की अमावस्या को यहां मेले का आयोजन किया जाता है. गोवर्द्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान के चरणचिह्न मौजूद हैं. इसके साथ ही यहां श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री हरिदेव मंदिर, दानबिहारी मंदिर श्री राधा मदनमोहन मंदिर, विश्वकर्मा मंदिर, वेंकटेश्वर मंदिर, श्यामसुन्दर मंदिर तथा चकलेश्वर महादेव मंदिर इत्यादि पवित्र स्थल हैं.
गोवर्धन पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल मौजूद हैं जो जिनका दर्शन पाकर सभी धन्य होते हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथी को गोवर्धन पूजा की जाती है इस दिन अन्न कुट, मार्गपाली आदि का आयोजन किया जाता है. यह ब्रज का मुख्य त्यौहार होता है.
अन्नकुट जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है़ इस दिन गाय बैल का पूजन किया जाता है उन्हें फूल माला, चन्दन आदि लगाया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसका पूजन होता है तथा परिक्रमा की जाती है.
गोवर्धन पर्वत कथा
इस पर्वत के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं. कहते हैं कि यह पर्वत रोज कम होता जाता है.किंवदंती अनुसार एक बार मुनी पुलस्थय भ्रमण करते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहूँचे, वहां का सुंदर मनोहर नजारा देखकर उनका हृदय प्रसन्न हो गया उनके मन में गोरिराज को अपने साथ ले जाने का विचार उत्पन्न हुआ.
मुनी ने राजा से ओरोंकल गोवर्धन ले जाने की बात रखी उन्हों ने कहा की वह जहां से आए हैं वहां पर एक भी सुंदर पर्वत नहीं है अत: आप इस अनमोल रत्न को मुझे सौंप दें. परंतु राजा ने मुनी को कुछ और मांगने को कहा वह उसे नही देना चाहते थे. यह सब बातें गोवर्धन ने सुन ली और मुनी से कहा की मैं आपके साथ जाने के लिए तैयार हूं किंतु मेरी एक शर्त है कि आप मुझे जहां भी रखेगें मै वहीं पर रूक जाऊंगा और वहां से हिलूंगा भी नही.
मुनी ने यह बात स्वीकार कर ली. पुलस्थय मुनि गोवर्धन को अपने दायें हाथ पर रख कर कली के लिए निकल पडे़. जब मुनी ब्रज से गुजर रहे थे तब मुनी साधना के लिए रूक गए और उन्होंने गोवर्धन को भूल वश वहीं रख दिया तथा जब मुनी की अराधना समाप्त हुई तो उन्होंने पर्वत को उठाना चाहा परंतु गोवर्धन तो वहीं पर स्थिर हो चुका था.
उन्हें गोवर्धन की कही बात याद आई परंतु ऋषि न माने और हठ करने लगे इतने पर भी जब पर्वत अपने स्थान से नही हिला तो उन्हें बहुत क्रोध आया ओर क्रोधवश उन्होंने पर्वत को शाप देते हुए कहा कि गोवर्धन तुम घरती में धसते चले जाओंग ओर एक दिन पूर्ण रुप से धरती के गर्भ में समा जाओगे. इसी कारण गोवर्धन प्रतिदिन नीचे धसते चले जा रहे हैं.
इसके अतिरिक्त कहते हैं कि गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अँगुली पर उठा लिया था और इन्द्र के प्रकोप से ब्रज वासियों की रक्षा की थी तब से गोवर्धन पूजा की जाती है.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथी को गोवर्धन पूजा की जाती है इस दिन अन्न कुट, मार्गपाली आदि का आयोजन किया जाता है. यह ब्रज का मुख्य त्यौहार होता है. अन्नकुट जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है़ इस दिन गाय बैल का पूजन किया जाता है उन्हें फूल माला, चन्दन आदि लगाया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसका पूजन होता है तथा परिक्रमा की जाती है.
गोवर्धन धार्मिक स्थल
गोवर्धन में अनेक रमणीय स्थल देखने को मिलते हैं इसकी परिक्रमा करते समय रास्ते में प्रमुख स्थल देखे जा सकते हैं जिनका अपना एक इतिहास है और कुछ भगवान की लीलाओं का आधार रहे. मार्ग मे अनेक कुण्ड दिखाई पड़ते है जिसमें से कुछ प्रमुख स्थल इस प्रकार हैंदान घाटी
गोवर्धन के मार्ग पर यह मन्दिर स्थित है यहां पर एक सुंदर मंदिर स्थापित है और जब गोवर्धन परिक्रमा की शुरूआत की जाती है तब इसी मंदिर से आरंम्भ होते हुए यहीं पर समाप्त भी होती है. मान्यता है कि इसी स्थान पर कृष्ण भगवान ने दानी बनकर गोपीयों से दान मांगा था ओर राधा ने दान दिया था.कृष्ण की इस लीला का वर्णन अनेक कवियों ने अपने ग्रंथों में किया है. इस मन भावन लीला का वर्णन गौडी़य संप्रदाय के लोग भक्ति रस के गीतों मे करते रहे हैं वहीं दानकेलि कौमुदी आदि ग्रन्थों में इस प्रेम लीला का वर्णन मिलता है. इस प्रसंग के कारण ही इस जगह को दान घाटी के नाम से जाना जाता है तथा मंदिर में विराजमान गोवर्धन शीला का दूधाभिषेक किया जाता.
जतीपुरा
जतीपुरा जो गोपालपुरा के नाम से भ जाना जाता था में श्रीनाथ भगवान का मंदिर है कहते हैं यहीं पर कृष्ण के परम भक्त कवि सूरदास जी भगवान के गितों को गाया करते थे तथा कीर्तन किया करते थे. यह स्थल बल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र रहा है यहां बल्लभ सम्प्रदाय के अनेक मन्दिर देखे जा सकते हैं. यहीं मुखारबिन्द है. बिलछू कुण्ड , ढाक, श्याम, हरजी कुण्ड, गोविन्द स्वामी की कदम्ब खण्डी आदि ऐतिहासिक स्थान भी हैं.
श्रीलौठाजी मन्दिर
गोवर्धन से कुछ दूरी पर स्थित है पूंछरी गांव जो परिक्रमा मार्ग में आता है यहां श्रीलौठाजी का मन्दिर स्थापित है मान्यता है कि भगवान कृष्ण के एक मित्र थे लौठा जब भगवान ब्र्ज छोड़कर जा रहे थे तोउन्होंने लौठा को भी अपने साथ चलने को कहा परंतु उन्होंने मना कर दिया और कहा की जब तक तुम वापस ब्रज नहीं आते तब तक मै अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा ओर अपने प्राण त्याग दूंगा.
इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया की तुम्हे कुछ नही होगा तुम जीवित रहोगे. तभी से लौठाजी तपस्या मे लीन हैं और उन्हें यकीन है कि भगवान यहां वापस जरूर आएंगे अत: यहां श्रीलौठाजी का मन्दिर स्थापित है. सभी भक्त लोग यहां आकर अदभुत शांति का अनुभव करते हैं एक भक्त की अनूठी श्रद्धा का प्रतीक है यह मंदिर. मानसी गंगा
गोवर्धन गाँव के बीच में श्री मानसी गंगा है इस पर एक कथा प्रचलित है एक बार सभी ब्रजवासी गंगा स्नान करने के लिए गंगा धाम जाने लगे संध्या समय वे गोवर्धन पहुँचे ओर वहीं पर रात्रि व्यतीत करने का विचार व्यक्त किया भगवान कृष्ण मन में विचारते है.
ब्रज तो तीर्थों का स्थल है यहां से कहीं ओर जाने की क्या आवश्यकता है. अत: इस विचार के आते ही गंगा जी मानसी रुप में गोवर्धन पर्वत की तलहटी में प्रकट हो गईं. और जब प्रात समय ब्रजवासियों ने वहां गंगा जी के दर्शन किए तो सभी चकित रह गए ओर श्री कृष्ण के कहने पर सभी ने वहीं पर गंगा स्नान किया एवं पवित्र गंगा जल में दीप दान किया.
श्री कृष्ण के मन से उत्पन्न (आविर्भूत) होने के कारण गंगाजी को मानसीगंगा कहा जाता है. यहां मानसी गंगा स्नान का महत्व गंगा स्नान जितना ही है भक्तगण यहाँ पर स्नान पूजा-अर्चना करते हैं । भाग्यवान भक्तों को कभी-कभी इसमें दूध की धारा का दर्शन होता है.मानसी गंगा के किनारे पर मुखारविन्द मन्दिर स्थित है.
कुसुम सरोवर
गोवर्धन से लगभग 2 किलोमीटर दूर राधाकुण्ड के निकट स्थापत्य कला के नमूने का एक समूह जवाहर सिंह द्वारा अपने पिता सूरजमल ( ई.1707-1763) की स्मृति में बनवाया गया। ई. 1675 से पहले यह कच्चा कुण्ड था जिसे ओरछा के राजा वीर सिंह ने पक्का कराया उसके बाद राजा सूरजमल ने इसे अपनी रानी किशोरी के लिए बाग़-बगीचे का रूप दिया और इसे अधिक सुन्दर और मनोरम स्थल बना दिया
राधाकुण्ड और कृष्ण कुण्ड
एक समय भगवान कृष्ण अपनी गायों को चराने के लिए जा रहे थे उसी समय एक राक्षस उनकी गायों मे गाय का रूप बना कर आ गया और उत्पात मचाने लगा। भगवान कृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर उसकी करनी का दण्ड दिया। वध करने के पश्चात भगवान कृष्ण राधा से मिलने गये। राधा ने कहा कि मैं आपसे नहीं मिलूगी. और आपको गौ हत्या का पाप लग गया है।
कहा की उन पर गौ हत्या का पाप लगा है जब तक आप इस पाप से मुक्ति नहीं पा लेते तब तक मुझसे नहीं मिल पाओगे अत: भगवान ने प्रायश्चित स्वरूप वहां पर एक कुण्ड का निर्माण किया तथा समस्त तीर्थों को आह्वान किया व उन्हें जलरूप द्वारा कुण्ड में प्रवेश करवाया तत्पश्चात पवित्र निर्मल जल मे स्नान कर पाप से मुक्ति प्राप्त कि किन्तु राधा उस कुण्ड से भी सुन्दर कुण्ड का निर्माण करके सभी को चकित करना चाहती थी
इसलिए उन्होंने अपने कंगन से एक मनोहर कुण्ड का निर्माण कर दिया और वह कुण्ड भी सब तीर्थों के जल से परिपूर्ण हो गया. इस प्रकार इन कुण्डों का निर्माण हुआ जिस कारण यह स्थल पवित्र पावन स्थल माना जाता है. और कार्तिक मास की कृष्णाष्टमी के दिन असंख्य श्रद्धालु यहां पर स्नान करते हैं.
उद्धव कुण्ड
गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थित है उद्धव कुण्ड यह भगवान के सखा एवं भक्त उद्धव के नाम से प्रसिद्ध है. अनेक ग्रंथों मे इसके बारे में उल्लेख प्राप्त होते हैं. कहते हैं की वज्रनाभ समेत शाण्डिल्य ऋषि के द्वारा यहाँ उद्धव कुण्ड का निर्माण हुआ था.
स्कन्द पुराण में इसका वर्णन मिलता है माना जाता है कि उद्धव जी यहाँ हमेशा निवास करते हैं. और यहीं पर जब कृष्ण सभी से विछोह कर चले गए थे तो उद्धव जी ने महिषियों को सांत्वना दी.
इसी प्रकार गोवर्धन पर्वत मार्ग में अन्य कई महत्वपूर्ण स्थान आते हैं आन्यौर, कुसुम सरोवर है जो बहुत ही सुंदर एवं मनहर स्थल है यहां पर मंदिर भी स्थापित है एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है मानसी गंगा के समीप मुखारविन्द बना है
आषाढ़ पूर्णिमा तथा कार्तिक माह की अमावस्या को यहां मेले का आयोजन किया जाता है. गोवर्द्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान के चरणचिह्न मौजूद हैं. इसके साथ ही यहां श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री हरिदेव मंदिर, दानबिहारी मंदिर श्री राधा मदनमोहन मंदिर, विश्वकर्मा मंदिर, वेंकटेश्वर मंदिर, श्यामसुन्दर मंदिर तथा चकलेश्वर महादेव मंदिर इत्यादि पवित्र स्थल हैं.