नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 10 अगस्त 2011

गरीबी की परिभाषा में

गरीबी!
कहने के लिए एक छोटा सा शब्द
उनके लिए जो गरीब नहीं हैं
परिभाषित कर देते हैं
दो-चार लाइनों में जो गरीब की गरीबी को
"कि जिसके पास रहने-खाने
व पहनने के लिए नहीं होता पर्याप्त "
मगर, गरीबी की यह परिभाषा
नहीं बयान कर पाती
एक गरीब की गरीबी को
गरीबी की इस परिभाषा में
नहीं शामिल है
एक बेबस और लाचार बाप का दर्द
जो नहीं कर पाता इस महंगाई में
अपने छोटे-छोटे बच्चों के लिए
दो जून के भरपेट खाने का जुगाड़
फिर उनकी पढाई-लिखी की तो
बात करना ही बेमानी है
गरीबी की इस परिभाषा में
नहीं शामिल है एक बेटे का दर्द
जो अपने माँ-बाप का
नहीं करवा पाता इलाज
एक अच्छे अस्पताल में
और अनसुना करता रहता है
मजबूरी में
उनकी कराहों और आहों को
गरीबी की इस परिभाषा में
नहीं शामिल है उस भाई की लाचारी
जो अपनी जवान हो चुकी बहन के लिए
नहीं ढूंढ पाता है एक अच्छा वर और घर
क्योंकि अपना सब कुछ बेचने पर भी
हो सकता है इंतजाम सिर्फ सगाई के खर्चे का
और इस परिभाषा में नहीं शामिल है
एक औरत की बेबसी
जो तय नहीं कर पाती है कई बार
की घर में उपलब्ध खाने को किसे परोसे!
दिन भर मेहनत करके घर आने वाले पति को
या अपने छोट-छोटे बच्चों को
जो देख रहे हैं टुकुर-टुकुर
पके हुए भात की देगची को! [कृष्ण धर शर्मा] अगस्त,२०११

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