नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

कवि का जीवन

एक कवि
जो समर्पित कर देता है
अपना सारा जीवन
समाज के लिये
कुछ सार्थक
और प्रेरणास्पद
रचनाओं के सृजन में
जो बनती हैं मार्गदर्शक
द्वंद के समय
समाज के लिये
लेकिन कभी-कभी
इन सब के बीच में
कवि रह जाता है पीछे
इस भागदौड़ भरी जिंदगी में
कि कभी भी अपने
या अपने परिवार के लिये
नहीं जुटा पाता है
जीवन के लिये आवश्यक
कुछ सुविधायें तक
और कोसने लगते हैं
कभी-कभी अपने ही
तब कवि सोचता है
मैंने तो समर्पित कर दिया
अपना संपूर्ण जीवन
समाज की भलाई के लिये
पर क्या समाज भी
सोच पाया है कभी
कि कैसे चलता है
एक कवि का घर!
उसकी गृहस्थी
उसका परिवार
इस दिनों-दिन
बढ़ती महगाई में
खैर !
समाज हमारे बारे में
सोचे या ना सोचे
हमें तो बनना होगा
वही पेड़
जो पत्थर मारने पर
चोट खाकर भी
बदले में फल ही देता है.(कृष्ण धर शर्मा,2011)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें