नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

अंतरिक्ष में कचरा ख़तरनाक स्तर पर

अमरीका में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अंतरिक्ष में 'कचरा' ख़तरनाक़ स्तर पर पहुँच गया है. अमरीका की नेशनल रिसर्च काउंसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि बेकार हुए बूसटर और पुराने उपग्रह पृथ्वी के कक्ष में पृथ्वी के आसपास चक्कर लगा रहे हैं.
             इस रिपोर्ट में ये भी कहा है कि इनसे अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह नष्ट हो सकते है और इससे पहले कि कोई भीषण दुर्घटना हो जाए, अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को इन्हें हटाने का काम करना चाहिए.
         नेशनल रिसर्च काउंसिल यानी राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद ने अपनी रिपोर्ट में आहवान किया है कि अंतरिक्ष में जमा हुए 'कचरे' को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बनाए जाने चाहिए.
इसमें ये भी कहा गया है कि चुम्बकीय नेट या विशालकाय छतरियों के संभावित इस्तेमाल पर और शोध होना चाहिए ताकि इस संकट का समाधान किया जा सके. अंतरिक्ष में कचरे को सीमित करने के प्रयास को हाल के वर्षों में दो झटके लगे हैं.
वर्ष 2007 में चीन में उपग्रह निरोधक हथियार का टेस्ट किया था. इससे मौसम की जानकारी एकत्र करने वाला एक पुराना उपग्रह नष्ट हो गया और वह एक सेंटीमीटर से कुछ बड़े डेढ़ लाख हिस्सों में बिखर गया.
दो साल बाद पृथ्वी के कक्ष में एक सक्रिय उपग्रह और एक पुराने उपग्रह की टक्कर हुई जिससे और कचरा फैल गया.
नेशनल रिसर्च काउंसिल के शोध का नेतृत्व करने वाले डोनल्ड कैसलर ने कहा, "हाल के वर्षों में हुई इन दो घटनाओं (चीन के टेस्ट और उपग्रहों की टक्कर) से पृथ्वी के कक्ष में कचरे के हिस्सों की तादाद दो गुना हो गई और कचरा हटाने के हमारे पिछले 25 साल के प्रयासों पर पानी फिर गया. हमने (अंतरिक्ष में) पर्यावरण का नियंत्रण खो दिया है."
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन को भी इन कचरे के ढेरों से बच कर निकलना पड़ता है क्योंकि ये पृथ्वी के कक्ष में 17,500 मील प्रति घंटे की गति से चलते हैं. [साभार-बीबीसी हिंदी]

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