नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 21 जुलाई 2012

गाँव में बिजली


दिन भर खेतों में काम करके 
मिटाने अपनी थकान 
लोग बैठा करते थे शाम को 
गाँव की चौपाल में 
या बरगद या नीम के पेड़ के नीचे 
बने हुए कच्चे चबूतरों पर 
और होती थी आपस में 
सुख-दुःख की बातें
और हो जाती थी कुछ 
हंसी-ठिठोली भी 
महिलायें भी मिल लेती थीं आपस में 
पनघट पर पानी भरने के बहाने 
और कर लेती थीं साझा
अपना-अपना सुख-दुःख
मगर अब गाँव में 
बिजली आ जाने से   
बदल गए हैं हालात 
और सूने से रहने लगे हैं 
चौपाल और चबूतरे
अब नहीं होती हैं पनघट पर 
आपस में सुख-दुःख की बातें 
गाँव में बिजली आ जाने से 
अब आ गए हैं टेलीविजन 
लग गए हैं नल भी अब घरों में 
ख़त्म हो गए हैं बहाने 
अब घर से निकलने के 
गर्मी लगने पर चला लेते हैं पंखे 
नहीं बैठते नीम के पेड़ के नीचे
फुर्सत भी अब किसे है
किसी के पास बैठने की 
अब टी वी पर आते हैं इतने प्रोग्राम 
चौपाल जाने की जरूरत ही नहीं लगती 
पहले होली पर जहाँ 
गाये जाते थे फाग-गीत 
और जाते थे लोग 
एक-दूसरे के घर मिलने 
होली के बहाने 
अब रहते हैं अपने ही घरों में 
बजा लेते हैं लाउडस्पीकर 
पर ही फाग-गीत 
और अगर कोई गाना भी चाहे
तो दबकर रह जाती है उसकी आवाज़ 
बेतहाशा बजते हुए कानफोडू 
लाउडस्पीकर के बीच 
सचमुच बिजली आने से
कितना बदल गया है हमारा गाँव- कृष्ण धर शर्मा 2012

3 टिप्‍पणियां:

  1. Sahi baat hai...
    Kitna badal gaya hai gaanw....

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  2. बहुत अच्छी कविता है श्रीमान दिल को छू लेने वाली

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  3. गाँव में बिजली .....
    बहुत ही सुन्दर...
    लाजवाब प्रस्तुति।

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