एक परवाज़ दिखाई दी है,
तेरी आवाज़ सुनाई दी है
जिसकी आँखों में कटी थीं सदियाँ
उसने सदियों की जुदाई दी है
सिर्फ एक सफहा पलट कर उसने
सारी बातों की सफाई दी है
फिर वहीँ लौट के जाना होगा,
यार ने ऐसी रिहाई दी है
आग ने क्या-क्या जलाया है शब भर,
कितनी ख़ुश रंग दिखाई दी है.
गुलज़ार
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
वन्दना जी जानकारी देने के लिये धन्यवाद.
हटाएंबहुतक सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी धन्यवाद
हटाएंबेहतरीन रचना . आपके इस प्रयास से बेहतरीन रचनाएँ पढ़ने को मिल जाती है ..आपके ब्लॉग से जुडना चाहता हूँ पर लिंक नहीं मिला ..आपको भी अपने ब्लॉग से जुड़ने के लिए सदर आमंत्रितित कर रहा हूँ
जवाब देंहटाएंआशुतोष जी शुक्रिया
हटाएंआपके ब्लाग से जुडकर मुझे खुशी होगी