नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

बूढा होता आदमी

अबोध बच्चे जैसा ही तो हो जाता है बुढ़ापा
अबोध बच्चे से तो फिर भी रहती हैं कई उम्मीदें
घरवालों को भी बाहरवालों को भी
मगर एक बूढ़े से भला क्या कर सकते हैं कोई उम्मीद!
हम सब सोचते हैं इसी तरह से एक बूढ़े होते आदमी के बारे में
कि जितना ही बढ़ता है वह बुढ़ापे की तरफ
उतनी ही कम होती जाती हैं उम्मीदें उससे
और कम होती जाती है उसकी देखभाल भी
अबोध बच्चा जब बढ़ता है तो बढती जाती हैं
उसके जीवन में खुशियाँ भी और बढ़ते जाते हैं उसके चाहनेवाले भी
मगर बूढ़े होते आदमी के साथ होता है
इसके विपरीत हमेशा से ही
जितना ही होता है वह बूढा
उतना ही पड़ता जाता है अकेला
और उतना ही होता जाता है बेमानी
वह अपने घरवालों के लिए
बूढ़े के पास कुछ भी नहीं है ऐसा भी नहीं है
समेटे हुए है वह अपने भीतर
बहुत सारा अनुभव और बहुत सारा ज्ञान
कसमसाता भी रहता है वह अक्सर
कि कोई तो पूछे उससे भी कुछ सवाल
और वह खोलकर रख दे अपने ज्ञान का खजाना
चकित, विस्मित से रह जायें सारे लोग!
कि देखो तो कितना ज्ञानी है यह बूढा भी!
मगर बूढ़े का ज्ञान तो हो चुका है पुराना
हम आधुनिक! लोगों की निगाह में
कैसे नष्ट कर सकते हैं अपना कीमती!
समय किसी बूढ़े के पास फालतू ही बैठकर
इतने समय में तो हम कंप्यूटर पर बैठकर
कर सकते हैं गपशप किसी ऑनलाईन दोस्त से
पूछ सकते हैं कि अभी-अभी
तुम ने कुछ ऐसा तो शेयर नहीं किया है
जो मुझसे छूट गया हो! बहुत ही जरूरी है
आज के आधुनिक! समय में
हर स्टेटस, हर पोस्ट से अपडेट रहना
घर में बीमार पड़ा हुआ बूढा तो
वैसे भी अक्सर बीमार ही रहता है
अगले दिन या अगले हफ्ते भी तो
लेकर जाया जा सकता है उसे डाक्टर के पास!
                                                    कृष्ण धर शर्मा २०१४

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