वह
जागना चाहता था मगर उसे कहा गया
अभी
मत जागो, अभी सुबह नहीं हुई है उसने भाई से पूछा सुबह हो गई है न!
भाई ने उसे समझाते हुए कहा
नहीं अभी सुबह होने में काफी समय है
तुम सो जाओ
उसने बहन से पूछा सुबह हो गई है न!
बहन ने भी वही जवाब दिया
पिता ने भी वही जवाब दिया
माँ ने भी वही जवाब दिया
फिर उसने अस्पताल की खिड़की से
अन्दर आ रही सूरज की किरणों से पूछा
सुबह हो गई है न!
सूरज की किरणों ने उसके
माँ, बाप, भाई, बहन की तरफ देखा
उनकी आँखों में दर्दभरी याचना थी
कि न बताया जाये उसे सुबह होने के बारे में
ताकि कुछ देर और सो सके वह
उसके घावों को भरने के लिए
मिल सके कुछ और समय
और तब तक अस्पताल के बाहर
फ़ैली हुई अराजकता और उन्माद भी
हो सकता है कम हो जाये
हो सकता है ख़त्म हो जाये
और फिर सूरज की किरणों ने भी
दोहराया वही सब
जिसे दोहरा चुके थे सुबह से अनेकों लोग
सूरज की किरणों ने कहा इसलिए
उसे अब संशय नहीं रहा
अब वह आश्वस्त होकर सो गया
गहरी और शांत नींद में
(कृष्ण धर शर्मा, २०१६)
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