नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सवालों के जवाब


बूढों के पास बचा ही क्या था
कुछ अदद नाती-पोतों के सिवाय
जो खिंचे चले आते थे उनके पास
सुनने कुछ नए-पुराने किस्से-कहानियां
या ढूँढने अपने कुछ अनसुलझे
सवालों के जवाब
वरना कौन आता है भला उनके पास
बड़े बेटे के अलावा
जो हफ्ते में छुट्टी के दिन
2 मिनट का समय निकाल पूछ लेता है
“कुछ परेशानी तो नहीं है न!
तबियत तो ठीक है न!”
अब तो टीवी और मोबाइल ने
छीन लिए हैं उनसे बच्चे भी
क्योंकि बच्चों को वह सब भी
मिल जाता है टीवी और मोबाइल पर
जो बूढ़े भी नहीं बता पाते थे
काफी देर सर खुजलाने के बाद भी.....
          (कृष्ण धर शर्मा, 05.06.2018)

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