हम सौर ऊर्जा के साथ स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजनाएं लगाएं तो हम छह रुपये में रात की बिजली उपलब्ध करा सकते हैं जो कि थर्मल बिजली के मूल्य के बराबर होगा। इसके अतिरिक्त जब कभी-कभी अकस्मात ग्रिड पर लोड कम-ज्यादा होता है उस समय भी पम्प स्टोरेज परियोजनाओं से बिजली को बनाकर या बंद करके ग्रिड की स्थिरता को संभाला जा सकता है।
आज सम्पूर्ण विश्व बाढ़, तूफान, सूखा और कोविड जैसी समस्याओं से ग्रसित है। ये समस्याएँ कहीं न कहीं मनुष्य द्वारा पर्यावरण में अत्यधिक दखल करने के कारण उत्पन्न हुई दिखती है। इस दखल का एक प्रमुख कारण बिजली का उत्पादन है। थर्मल पावर को बनाने के लिए बड़े क्षेत्रों में जंगलों को काट कर कोयले का खनन किया जा रहा है। इससे वनस्पति और पशु प्रभावित हो रहे हैं। जलविद्युत के उत्पादन के लिए नदियों को अवरोधित किया जा रहा है और मछलियों की जीविका दूभर हो रही है। लेकिन मनुष्य को बिजली की आवश्यकता भी है। अक्सर किसी देश के नागरिकों के जीवन स्तर को प्रति व्यक्ति बिजली की खपत से आंका जाता है। अतएव ऐसा रास्ता निकालना है कि हम बिजली का उत्पादन कर सकें और पर्यावरण के दुष्प्रभावों को भी सीमित कर सकें। अपने देश में बिजली उत्पादन के तीन प्रमुख स्रोत हैं। पहला है-थर्मल यानी कोयले से निर्मित बिजली। इसमें प्रमुख समस्या यह है कि अपने देश में कोयला सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। हमें दूसरे देशों से कोयला भारी मात्र में आयात करना पड़ रहा है। यदि कोयला आयात करके हम अपने जंगलों को बचा भी लें तो आस्ट्रेलिया जैसे निर्यातक देशों में जंगलों के कटने और कोयले के खनन से जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होंगे वे हमें भी प्रभावित करेंगे ही। कोयले को जलाने में कार्बन का उत्सर्जन भारी मात्रा में होता है जिसके कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है और तूफान, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही हैं। बिजली उत्पादन का दूसरा स्रोत जल विद्युत अथवा हाइड्रोपावर है। इस विधि को एक साफ-सुथरी तकनीक कहा जाता है चूंकि इससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है। थर्मल पावर में एक यूनिट बिजली बनाने में लगभग 900 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है जबकि जलविद्युत परियोजनाओं को स्थापित करने में जो सीमेंट और लोहा आदि का उपयोग होता है उसको बनाने में लगभग 300 ग्राम कार्बन प्रति यूनिट का उत्सर्जन होता है। जलविद्युत में कार्बन उत्सर्जन में शुद्ध कमी 600 ग्राम प्रति यूनिट आती है जो कि महत्वपूर्ण है। लेकिन जलविद्युत बनाने में दूसरे तमाम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जैसे सुरंग को बनाने में विस्फोट किये जाते हैं जिससे जलस्रोत सूखते हैं और भूस्खलन होता है। बराज बनाने से मछलियों का आवागमन बाधित होता और जलीय जैव विविधिता नष्ट होती है। बड़े बांधों में सेडीमेंट जमा हो जाता है और सेडीमेंट के न पहुंचने के कारण गंगासागर जैसे हमारे तटीय क्षेत्र समुद्र की गोद में समाने की दिशा में हैं। पानी को टर्बाइन में मथे जाने से उसकी गुणवत्ता में कमी आती है। इस प्रकार थर्मल और हाइड्रो दोनों ही स्रोतों की पर्यावरणीय समस्या है।
सौर ऊर्जा को आगे बढ़ाने से इन दोनों के बीच रास्ता निकल सकता है। भारत सरकार ने इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं। अपने देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। विशेष यह कि सौर ऊर्जा से उत्पादित बिजली का दाम लगभग तीन रुपये प्रति यूनिट आता है जबकि थर्मल बिजली का छह रुपये और जलविद्युत का आठ रुपये प्रति यूनिट। इसलिए सौर ऊर्जा हमारे लिए हर तरह से उपयुक्त है। यह सस्ती भी है और इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी तुलना में कम हैं। लेकिन सौर ऊर्जा में समस्या यह है कि यह केवल दिन के समय में बनती है। रात में और बरसात के समय बादलों के आने जाने के कारण इसका उत्पादन अनिश्चित रहता है। ऐसे में हम सौर ऊर्जा से अपनी सुबह, शाम और रात की बिजली की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसका उत्तम उपाय है कि 'स्टैंड अलोन' यानि कि 'स्वतंत्र' पम्प स्टोरेज विद्युत परियोजनायें बनाई जाएं। इन परियोजनायों में दो बड़े बनाये जाते हैं। एक तालाब ऊंचाई पर और दूसरा नीचे बनाया जाता है। दिन के समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तब नीचे के तालाब से पानी को ऊपर के तालाब में पम्प करके रख लिया जाता है। इसके बाद सायंकाल और रात में जब बिजली की जरूरत होती है तब ऊपर से पानी को छोड़ कर बिजली बनाते हुए नीचे के तालाब में लाया जाता है। अगले दिन उस पानी को पुन: ऊपर पंप कर दिया जाता है। वही पानी बार-बार ऊपर-नीचे होता रहता है। इस प्रकार दिन की सौर ऊर्जा को सुबह, शाम और रात की बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है। विद्यमान जलविद्युत परियोजनाओं को ही पम्प स्टोरेज में ही तब्दील किया जा सकता है। जैसे टिहरी बांध के नीचे कोटेश्वरर जलविद्युत परियोजनाओं को पम्प स्टोरेज में परिवर्तित कर दिया गया है। दिन के समय इस परियोजना से पानी को नीचे से ऊपर टिहरी झील में वापस डाला जाता है और रात के समय उसी टिहरी झील से पानी को निकाल कर पुन: बिजली बनाई जाती है। विद्यमान जलविद्युत परियोजनाओं को पम्प स्टोरेज में परिवर्तित करके दिन की बिजली को रात की बिजली में बदलने का खर्च मात्र 40 पैसे प्रति यूनिट आता है। इसलिए तीन रुपये की सौर ऊर्जा को हम 40 पैसे के अतिरिक्त खर्च से सुबह शाम की बिजली में परिवर्तित कर सकते हैं। लेकिन इसमें समस्या यह है कि टिहरी और कोटेश्वर जल विद्युत परियोजनाओं से जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होते हैं वे तो होते ही रहते हैं। कुएं से निकले और खाई में गिरे। सौर ऊर्जा को बनाया लेकिन उसे रात की बिजली बनाने में पुन: नदियों को नष्ट किया।
इस समस्या का उत्तम विकल्प यह है कि हम स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजना बनाएं जैसा ऊपर बताया गया है। इन परियोजना को नदी के पाट से अलग बनाया जा सकता है। किसी भी पहाड़ के ऊपर और नीचे उपयुक्त स्थान देख कर दो तालाब बनाये जा सकते हैं। ऐसा करने से नदी के बहाव में व्यवधान पैदा नहीं होगा। ऐसी स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजना से दिन की बिजली को रात की बिजली में परिवर्तित करने में मेरे अनुमान से तीन रुपये प्रति यूनिट का खर्चा आएगा। अत: यदि हम सौर ऊर्जा के साथ स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजनाएं लगाएं तो हम छह रुपये में रात की बिजली उपलब्ध करा सकते हैं जो कि थर्मल बिजली के मूल्य के बराबर होगा। इसके अतिरिक्त जब कभी-कभी अकस्मात ग्रिड पर लोड कम-ज्यादा होता है उस समय भी पम्प स्टोरेज परियोजनाओं से बिजली को बनाकर या बंद करके ग्रिड की स्थिरता को संभाला जा सकता है। इसलिए हमें थर्मल और जल विद्युत के मोह को त्यागकर सौर एवं स्वतंत्र पम्प स्टोरेज के युगल को अपनाना चाहिये। जंगल और नदियां देश की धरोहर और प्रकृति एवं पर्यावरण की संवाहक हैं। इन्हें बचाते हुए बिजली के अन्य विकल्पों को अपनाना चाहिए।
भरत झुनझुनवाला (साभार- देशबंधु)
समाज की बात Samaj Ki Baat KD Sharma कृष्णधर शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें