नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

मुहावरे (ओ,औ)

औंधी खोपड़ी : उलटी बुद्धि, बुद्धिहीनता।
मिट गए पर ऐंठ है अब भी बनी, है अज़ब औंधी हमारी खोपड़ी।

औने - पौने निकालना : कम दाम पर या घाटा उठाकर बेचना।
मैंने तो यही सोचा है कि कोई गाहक लग जाय तो एक्के को औने-प ने निकाल दूँ।

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