नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

गंदे बालों वाली लड़की

महीनों तक सुबह की सैर के दौरान नियमित रूप से रोज अपने समय पर दिख जाने वाली उस गंदे और मैले-कुचैले कपडे पहने हाथ में प्लास्टिक की बोरी लिये कचरा बीनती हुई लड़की से आज बात करने की हिम्मत आखिरकार जुटाकर उसके पास पहुंचकर रुका ही था की अचानक मुझे अपने सामने पा कर वह गंदे बालों वाली लड़की घबरा सी गई और इधर-उधर देखने लगी. उसकी घबराहट देखकर थोड़ी देर के लिए तो मैं भी घबरा गया मगर फिर थोडा संयत होकर मैंने उसे आश्वासन देते हुए कहा “घबराओ मत, अगर तुम्हें परेशानी न हो तो मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ!” मेरी बात सुनकर उसने जैसे पीछा छुड़ाने की नीयत से कहा “मुझे कुछ भी नहीं मालुम साहब” और मुड़कर जाने को हुई तब मैंने उसे फिर टोका “मुझे गलत मत समझो मैं एक शरीफ इंसान हूँ”. “तुम्हें महीनों से देख रहा हूँ और तुम्हारे बारे में मेरे मन में कई सवाल आ रहे हैं जिनका जवाब सिर्फ तुम्ही दे सकती हो, अगर तुम्हें कोई विशेष परेशानी न हो तो!”.
मेरी बात सुनकर वह ज़रा ठिठकी और बोली “मुझे देखकर तो लोग नाक-भौं सिकोड़कर निकल जाते हैं और आप कह रहे हैं कि मुझे देखकर आप के मन में कुछ सवाल आते हैं! मैं भी जानना चाहूंगी कि  मुझे देखकर आपके मन में क्या सवाल आते हैं?” उसकी ऐसी सपाट बातें सुनकर मैं सकपका गया फिर थोडा सम्हलकर बोला “मेरा कोई भी ऐसा मतलब नहीं था जो कि तुम्हें गलत लगे, मैं तो बस इतना जानना चाह रहा था कि तुम्हें तो और भी कई काम मिल सकते हैं फिर तुम यह कचरा बीनने का काम ही क्यों कर रही हो? क्या तुम्हारा मन नहीं होता कि तुम भी अच्छे कपडे पहनो, साफ-सफाई से रहो!”.
“ख़ुशी से कौन करता है यह सब साहब?”
“तब फिर क्यों करती हो यह सब!”.
“मजबूरी में करना पड़ता है”.
इस काम को करने की भी मजबूरी हो सकती है क्या!”.
“आप ठीक कहते हैं साहब, काम तो मुझे बहुत मिल जायेगा मगर इस काम में मैं अपने को सुरक्षित महसूस करती हूँ”.
“क्या बात कर रही हो! तुम अपने को इतना असुरक्षित क्यों महसूस करती हो? और कौन-कौन हैं तुम्हारे परिवार में?”.
“मैं और मेरी माँ बस इतना ही है मेरा परिवार”.
“तुम्हारे पिता!”.
“लगता है आप मेरी पूरी कहानी सुनना चाहते हैं!”.
मैंने थोडा असहज होते हुए कहा “ऐसी बात नहीं है फिर भी तुम अपनी कहानी मुझे बता सको और मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ तो मुझे अच्छा लगेगा”.
“मेरी मदद आप क्या कर पाएंगे! फिर भी मैं सुनाती हूँ आपको अपनी कहानी”.
एक गहरी सांस लेकर उदासी भरे शब्दों में उसने कहना शुरू किया “हम लोग उड़ीसा के रहने वाले हैं. मेरे पिता पहले तो मजदूरी करते थे फिर बाद में ठेकेदारी करने लगे. मेरी बड़ी बहन और मैं हम दोनों ही माँ –बाप के दुलारे थे. हमारे पिता भी हमें बेटों से कम नहीं समझते थे और हमें इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाते थे. हम लोगों का अपना घर नहीं था हम किराये से रहते थे. पिताजी इतना कमा लेते थे जिससे हमारा गुजारा आसानी से हो जाता था. मेरी बड़ी बहन १०वी और मैं १२वी में पढ़ रहे थे, सब ठीक-ठाक  चल रहा था कि अचानक एक दिन घर में खबर आई की पिताजी की हत्या हो गई है. हमारे ऊपर तो जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा यह खबर सुनकर. इस स्थिति की तो कल्पना तक नहीं की थी किसी ने भी. पुलिस की खोजबीन में पता चला कि किसी अन्य ठेकेदार से पिताजी का मामूली विवाद था जिसके कारण उस ठेकेदार ने पिताजी की हत्या करवा दी. वह ठेकेदार पकड़ा भी गया मगर पुलिस की लापरवाही और सबूतों के अभाव में उसे छोड़ भी दिया गया. उस ठेकेदार की बुरी नजर मेरी बड़ी बहन पर पड़ चुकी थी और जेल से छूट जाने के कारण उसका हौसला भी काफी बढ़ चुका था अब वह हमारे घर पर आकर हमें परेशान करने लगा. हमारा घर के बाहर निकलना मुश्किल हो गया था. एक दिन दीदी ने हिम्मत की और थाने पहुँच गई ठेकेदार के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने. रिपोर्ट तो क्या लिखते पुलिसवाले उलटे उन्होंने ठेकेदार को ही थाने बुलवा लिया और फिर ठेकेदार और कुछ पुलिसवालों ने दीदी के साथ बलात्कार किया और बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे फेक कर चले गए. होश आने पर दीदी किसी तरह रोती-बिलखती हुई रात में घर पहुंची. अगले दिन सुबह जब हम मोहल्ले के नेता को लेकर फिर थाने पहुंचे तो हमें धमकाया गया कि हम किसी के सामने अपनी जबान न खोलें वरना अंजाम ठीक नहीं होगा चुप रहने में ही तुम लोगों की भलाई है. मगर दीदी चुप रहने वालों में से नहीं थी वह थाने के सामने ही धरने पर बैठ गई. शाम होते-होते दीदी को पुलिसवालों से मारपीट और दुर्व्यवहार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और हवालात में डाल दिया गया. अगले दिन कोर्ट से जमानत का आदेश लेकर हम थाने पहुंचे तब तक काफी देर हो चुकी थी, इतनी बेइज्जती और जुल्म दीदी बर्दाश्त नहीं कर पाई थी और दुपट्टे से अपना गला घोट कर उसने अपनी जान दे दी थी. इस पूरी घटना के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई सिर्फ दो पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया और पूरा मामला दबा दिया गया.

अब ठेकेदार और पुलिसवाले हमारे घर आकर हमें परेशान करने लगे कि तुम लोग भी अपना मुह बंद रखना नहीं तो तुम्हारा भी यही अंजाम होगा. अपने पति और एक बेटी को खो चुकी मेरी माँ ठेकेदार की मुझ पर गन्दी नजर को पहचान गई थीं और उन्होंने एक बेहद ही कठोर फैसला लिया कि अब हम इस शहर को छोड़ देंगे. मैं अपना शहर छोड़ना नहीं चाहती थी मगर माँ की चिंता भी सही थी इसलिए हमें अपने शहर को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. घर से कुछ सामान समेटकर रात में हमने बिना किसी को बताये घर छोड़ दिया और रेलवे स्टेशन पहुंचे जहाँ रायपुर जाने वाली ट्रेन खड़ी थी हम उसमें बैठ गए और अगले दिन रायपुर पहुँच गए. स्टेशन से बाहर निकलकर तो हमें कुछ सूझ ही नहीं रहा था की हम कहाँ जाएँ और क्या करें, इस शहर में हमारा अपना कोई भी नहीं था जो कि हमें शरण दे सके या हमारी कोई मदद कर सके. पूरा दिन इसी उधेड़बुन में गुजर गया और रात हो गई. मजबूरन रात हमें स्टेशन के बाहर ही गुजारनी पड़ी मगर यहाँ पर भी कई जोड़ी हैवानी नजरें हमें रात भर घूरती रहीं. हम काफी निराश हो चुके थे कि स्टेशन में भीख मांगनेवाली एक बूढी माँ ने हमारी तकलीफ देखी और हमें सहारा दिया.वह हमें अपनी झोपडी में लेकर गई, हमें खाना खिलाया, आराम करने को कहा, हमारी दुखभरी कहानी  सुनी और हमें सांत्वना देते हुए कहा कि “तुम लोग घबराओ मत, मैं यहाँ अकेले ही रहती हूँ अब तुम लोग यहीं पर रहो.

हम तो ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो. अगले दिन मेरी माँ ने बूढ़ी माँ से कहा कि “मुझे भी कुछ काम करना चाहिए आखिर कब तक खाली बैठी रहूंगी!”. बूढी माँ ने कहा कि मैं तो रेलवे स्टेशन में भीख मांगकर अपना गुजारा करती हूँ तुमको भी यही करना हो तो मेरे साथ चल सकती हो या फिर ये काम पसंद न हो किसी के यहाँ झाड़ू-पोछा और बर्तन मांजने का काम भी मिल सकता है. “नहीं मेरी माँ यह सब नहीं करेगी” मैंने बीच में टोकते हुए कहा. “मैं इंग्लिश स्कूल में  दसवीं तक पढ़ी हूँ, मैं ट्यूशन पढ़ा कर गुजारा कर लूंगी”.  बूढी माँ थोड़ी सी दर्द भरी मुस्कराहट के साथ बोली “मेरे कहने का मतलब ये नहीं था बेटी कि तुम्हारी माँ भीख मांगे या किसी दुसरे के यहाँ झाड़ू-पोछा का काम करे. मैंने तो वही कहा जितनी मेरी सोच थी. तुम तो बहुत पढ़ी-लिखी हो बेटी जो करोगी ठीक ही करोगी” कहकर बूढी माँ चुप हो गई. मैं समझ गई थी कि बूढी माँ को मेरी बात का बुरा लगा था इसलिए मैंने बात को सम्हालते हुए कहा “नहीं माँ मेरा मतलब कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे आपको दुःख पहुंचे, मैं तो बस ये कहना चाह रही थी मेरी माँ की हालत अभी इतनी अच्छी नहीं है कि  वह कोई मेहनत का काम कर सकें, वैसे आपने अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया माँ?” मैंने बूढी माँ को थोडा कुरेदते हुए कहा. बूढी माँ ने कहा “मेरे पति तो १० साल पहले ही मुझे छोड़कर चले गए थे और दो बेटों में मुझे अपने पास रखने को लेकर आये दिन झगडा होता रहता था और मुझे भी दोनों बेटे और बहु ताने मरते थे की पिताजी के साथ ही तुम क्यों नहीं मर गई. इन बातों से मुझे काफी दुःख होता था. एक दिन मैंने फैसला किया कि मेरी वजह से मेरे बेटों के परिवार में अशांति रहे इससे अच्छा है कि मैं मर ही जाऊं. मैं घर से अपनी जान देने के लिए ही निकली थी, कई दिन तक भटकती रही मगर मरने की हिम्मत न जुटा पाई और भटकते-भटकते रेलवे स्टेशन पहुँच गई और इसी बस्ती की एक बुढ़िया के साथ भीख मांगने लगी. उस बुढ़िया ने यहीं पर मेरी भी झोपडी बनवा दी और फिर मैं यहीं की होकर रह गई.“आपके बेटों ने आपको ढूँढने की कोशिश नहीं की?”. “उनको क्या गरज पड़ी थी बेटी! वह तो मुझसे छुटकारा ही पाना चाहते थे.”
फिर मेरे कहने पर बूढी माँ मुझे कई बड़े घरों में लेकर गई मगर ट्यूशन पढ़ाने के लिए किसी को जरूरत न थी आजकल सब के बच्चे कोचिंग क्लास जाने लगे हैं. घरेलु कामकाज के लिए नौकरानी के रूप में रखने को कई लोग तैयार थे. कोई चारा न देख मैनें घरेलु नौकरानी का काम करना स्वीकार कर लिया. वहां पर मुझे झाड़ू-पोछा, बर्तन मांजना, साफ़-सफाई और कपडे धोने, प्रेस करने का काम करना पड़ता था. मुझे काम करते हुए १ महीने ही हुए थे कि एक दिन मैं काम पर पहुंची तो पता चला कि मालकिन घर में नहीं हैं वह एक दिन के लिए बाहर गई थी. मैं लौटने ही वाली थी कि मालिक ने कहा “कोई बात नहीं है तुम झाड़ू-पोछा कर दो और बर्तन धुल दो बाकी काम कल आकर कर लेना जब मालकिन आ जाएगी. अभी तक ऐसी कोई हरकत मालिक या मालकिन ने नहीं की थी जिससे मुझे किसी भी तरह की शंका हो इसलिए मैं भी संकोचवश मना न कर सकी और काम करने लगी. काम होने के बाद मालिक ने कहा “कल आफिस जाने के लिए मेरे पास प्रेस किये हुए कपडे नहीं है १ जोड़ी कपडे प्रेस कर दोगी क्या!” मैनें कपडे प्रेस कर दिए और जाने के लिए निकली तब तक वह किचन से चाय बनाकर लाया था और मेरे सामने खडा हो गया. उसने कहा तुम काम करके बहुत थक गई होगी थोड़ी सी चाय पी लो” मुझे मालिक की आँखों में कुछ अजीब सा दिखा और मैं घबरा कर बहार की तरफ जाने लगी तो उसने मेरा रास्ता रोक लिया अब मैं बुरी तरह से घबरा गई और चिल्लाने लगी. मुझे चिल्लाते देख मालिक के होश उड़ गए, चाय का कप फेंक कर उसने जल्दी से मेरा मुह दबाया और बोला “चिल्लाना बंद करो पागल लड़की. तुमको जाना है तो जाओ कहकर उसने दरवाजा खोल दिया और मैं वहां से भागती हुई आकर सीधे माँ की गोद में गिर पड़ी. माँ भी एकदम से घबरा गई और रोते हुए पूछने लगी “क्या हुआ बेटी? तेरे साथ क्या हो गया?”. माँ को रोते हुए देख मैंने अपने आपको सम्हाला और पूरी बात बताई कि भगवान की कृपा से मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ. मगर आगे भी कुछ गलत नहीं होगा इस बात की तसल्ली न माँ को थी न ही मुझे. रात में बूढी माँ के आने पर मैंने उन्हें जब पूरी बात बताई और मालिक के खिलाफ रिपोर्ट करने की बात कही तो बूढी माँ ने समझाते हुए कहा “किस-किस के खिलाफ रिपोर्ट करेगी बेटी! और तेरी रिपोर्ट लिखने वाले भी तो वैसे ही इंसान हैं न!.” अब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ! फिर बूढी माँ ने कहा अगर तू बुरा ना माने तो एक काम है जिसे तू कर सकती है!”. “आप बताओ क्या काम है”. बूढी माँ ने कहा “बेटी हमारे मोहल्ले की कुछ लड़कियां कचरा बीनने जाती हैं, दिखने में जरूर थोडा गन्दा लगता है मगर बेटी आमदनी भी अच्छी हो जाती उसमें. और अपना हुलिया थोडा बिगाड़ ले, घर के बाहर गंदे और मैले-कुचैले कपडे पहना कर और वैसी ही दिखा कर, इससे लोगों की गन्दी निगाहों से भी बची रहेगी.”

पहले तो मैनें बूढी माँ को साफ़ मना कर दिया ये काम करने के लिए मगर १-२ दिन में मुझे समझ में आ गया कि घर खर्च के लिए रुपया कमाने के साथ-साथ अपनी इज्जत बचाना भी जरूरी है, माँ को मैं भीख मांगते या किसी के घर बर्तन मांजते नहीं देखना चाहती थी इसलिए मैंने कचरा बीनने का काम करना शुरू कर दिया. शुरू में तो मुझे अजीब लगता था मगर अब कुछ भी बुरा नहीं लगता. गन्दी नाली और बदबूदार कचरे के ढेर से अपने काम की चीज उठाने में कोई संकोच नहीं लगता और सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे मैले-कुचैले कपडे और मेरी जानबूझकर गन्दी बनाई हुई शक्ल देखकर अब लोगों की आंखों में अजीब से भाव नहीं दिखते बल्कि मुझे देखकर लोग नाक-भौं सिकोड़ते जल्दी से आगे निकल जाते हैं.
“मैं अब चलती हूँ साहब मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही होगी.” उसकी आवाज सुनकर जैसे मैं नींद से जागा, अभी तक मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई फिल्म चल रही हो मेरे सामने. मैं भी उसे रोक न  पाया और उस गंदे बालों वाली लड़की को आँखों से ओझल होने तक देखता खडा रह गया. कृष्ण धर शर्मा 2014

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