नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

यूपी का अनाज घोटाला

उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हुए अनाज घोटाले से हाई कोर्ट भी बेहद चिंतित है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि "भ्रष्टाचार इस कदर है कि इससे देश की एकता पर खतरा पैदा हो गया है। क्या न्यायपालिका को चुप रहना चाहिए। हे भगवान सहायता करो और शक्ति दो। यदि न्यायपालिका चुप रही या असहाय हुई तो देश से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने में कदम नहीं उठाया तो देश की जनता कानून अपने हाथ में लेगी और भ्रष्टाचारियों को सड़कों पर दौड़ा कर पीटा जाएगा।" निश्चित ही हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर विचार करने की जरूरत है।

यूं तो सरकार वर्ष 2004 से वर्ष 2007 तक हुआ यह अनाज घोटाला 35 हजार करोड़ रूपए का बता रही है पर हकीकत में यह दो लाख करोड़ रूपए का है। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
कब क्या हुआ -
नवंबर 2004: खाद्य एवं आपर्ति विभाग के प्रधान सचिव प्रशांत चतुर्वेदी ने रेलवे से बांग्लादेश और अन्य देशों को भेजे जा रहे अनाज के बारे में पूछा था।
दिसंबर 2004: रेलवे ने जिलों और स्टेशन की एक सूची उपलब्ध कराई जहां से बांग्लादेश को अनाज भेजने का काम होना था।
वर्ष 2005 : अधिकारियों को लखीमपुर खीरी के तत्कालीन डीएम एसपीएस सोलंकी समेत उन ऑफीसर्स की सूची मुहैया कराई गई जिनका अनाज घोटाले में नाम आया था।
वर्ष 2006 : उस समय सत्तारूढ़ मुलायम सिंह सरकार ने इस मामले की जांच ईओडब्लू (इकोनॉमिक ऑफिस विंग) को सौंपी। ईओडब्लू ने जांच शुरू की और अकेले बलिया जिले में 50 केस दर्ज किए।
जून 2007 : मायावती ने वर्ष 2007 में सीएम की कमान संभालने के बाद मामला विशेष जांच टीम के हवाले कर दिया। एसआईटी की जांच का दायरा राज्य के 54 जिलों में था।
सितंबर 2007 : एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर यूपी सरकार ने यह स्वीकार किया कि अनाज घोटाले से उसे भारी घाटा हुआ।
दिसंबर 2007 : मायावती सरकार ने अनाज घोटाला मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
वर्ष 2008 : सीबीआई ने सिर्फ तीन जिलों में कुछ ही मामलों पर ध्यान दिया जिसके बाद विश्वनाथ चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मामले की जांच तेजी से किए जाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने फिर यह मामला इलाहाबाद हाई को भेज दिया।
दिसंबर 3 2010 : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई से पूरे मामले की जांच का आदेश दिया। छह महीने में जांच पूरी करने का आदेश।
सरकार का इनकार
उत्तर प्रदेश सरकार अनाज घोटाला दो लाख करोड़ रूपए होने से इनकार कर रही है। हालांकि, उसने सीबीआई जांच में पूरा सहयोग करने को कहा है।
सूचना विभाग के प्रमुख सचिव विजय शंकर पांडेय का कहना है कि केन्द्र से प्रति वर्ष दो हजार करोड़ रूपए का अनाज आता है इसलिए इसका घोटाला दो लाख करोड़ रूपए का नहीं हो सकता। मीडिया का यह कहना ठीक नहीं है कि घोटाला दो लाख करोड़ रूपए का है। हालांकि वह मानते हैं कि घोटाला तो घोटाला है चाहे वह दो लाख करोड़ का हो या फिर हजारों करोड रूपए का या कुछ रूपयों का।

सिर्फ 35 हजार करोड़ का घोटाला
सरकार ने हाई कोर्ट में पेश किए गए अनाज घोटाले के 35 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा के होने की बात स्वीकार की है।

सरकार का कहना है कि केन्द्र सरकार से सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए तथा स्कूलों में बच्चों के मिडडे मील के लिए अनाज मिले। घोटाले के मुख्य साल 2004-05 में सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत केन्द्र सरकार से चार लाख 79 हजार टन गेहूं, दो लाख 35 हजार टन चावल और गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए 14 लाख टन गेहूं, दस लाख 72 हजार टन चावल और चार लाख 52 हजार टन चावल मिडडे मील के मिले।
[साभार पत्रिका]

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