नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 19 मई 2011

कॉरपोरेट की शक्‍ल ले चुका है अंडरवर्ल्‍ड, डॉन बने सीईओ

अंडरवर्ल्‍ड का नाम सुनते ही दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, एजाज लेकडवाला, अली बुदेश, रवि पुजारी, बंटी पाण्‍डेय, और गुरु साटम का नाम फौरन आपके दिमाग में आ जाता होगा। अगर इससे ज्‍यादा कुछ और आपके दिमाग में आता भी होगा तो वह अपराध की काली दुनिया का चेहरा जहां सिर्फ और सिर्फ हैवानियत और खौफ का मंजर होगा। मगर इन सबके अलावा एक रोचक बात भी इस पूरे मामले में है। अब शायद आप सोच रहें होगें कि अपराध की काली दुनिया में रोचक ! जी हां आपको बताते चलें कि अंडरवर्ल्‍ड माफिया सरगनाओं ने अपने नाम से अलग-अलग कंपनियां बना रखी हैं।

इतना ही नहीं इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों को बाकायदा हर महिने पगार दी जाती है। इन कंपनियों का अपना कम्‍युनिकेशन नेटवर्क होता है। कंपनी का लेखा जोखा रखने के लिये बकायदा चार्टर्ड एकाउंटेंट होते हैं। और तो और अगर इनके शागिर्द प‍कड़े गये तो कंपनी उन्‍हें छूडाने के लिये बाकायदा वकीलों की नियुक्ति भी करती है। उल्‍लेखनीय है कि अंडरवर्ल्ड की दुनिया में फिलहाल पांच बड़ी कंपनियां काम कर रही हैं, जिनमें दाऊद इब्राहिम कासकर की डी कंपनी, छोटा राजन की आर कंपनी, एजाज लकड़ावाला और अली बुदेश की ए कंपनी, रवि पुजारी, बंटी पांडे और गुरु साटम की कंपनी और छोटा शकील के भाई अनवर शेख की केजीएन कंपनी।

यह सभी कंपनियां एक संगठित कॉरपोरेट कंपनियों की तरह काम कर रही हैं। जाहिर है इन सबमें सबसे बड़ी कंपनी नंबर वन है जिसका सालाना कारोबार खरबो में है। कंपनी का सीईओ है छोटा शकिल और एक्‍सपोर्ट-इम्‍पोर्ट मैनेजर है फहीम मचमच। मुंबई में इन दिनों डी कंपनी के लिए एक दर्जन से भी ज्यादा वकील काम कर रहे हैं। कंपनी के शूटरों का केस लड़ने से लेकर उनके डिपोर्टेशन तक की कार्यवाही पूरी करने का जिम्मा इन वकीलों का है। इन्हें कंपनी हर महीने पगार देती है। साथ ही कंपनी के काले धन को सफेद करने और हवाला के पैसे के रैकेट को संभालने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट भी हैं।

कंपनी अपने कंट्री मैनेजरों से हवाला के पैसे का पूरा हिसाब-किताब लेती रहती है। पुलिस के आला अधिकारी भी मानते हैं कि अब अंडरवर्ल्ड की दुनिया एक लिमिटेड कंपनी की तरह हो चुकी है जहां हर चीज सलीके से की जा रही है।

ऐसे पहुंचा अमेरिका ओसामा बिन लादेन तक

ओसामा बिन लादेन तक अमेरिकी फौजी कैसे पहुंचे, इसकी कहानी परत-दर-परत खुलने लगी है। पिछले साल ओसामा बिन लादेन के एक भरोसेमंद साथी ने एक फोन कॉल रिसीव की और इसी कॉल ने अमेरिका को ओसामा बिन लादेन के गिरेबां तक पहुंचा दिया।

एक अधिकारी ने बताया कि इस फोन कॉल के जरिए ही बिन लादेन के निजी संदेशवाहक (कुरियर) की एक साल पुरानी तलाश पूरी हुई थी। इस संदेशवाहक के चलते ही अमेरिकी खुफिया एजेंसियां लादेन के ठिकाने की पुख्‍ता जानकारी जुटा सकीं और नेवी सील कमांडो ने अंतत: रविवार को उसे मार गिराया।

इस फोन कॉल की मदद से ओसामा बिन लादेन के निजी संदेहवाहक (कुरियर) की तलाश पूरी हुई। इस कुरियर की मदद से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ऐबटाबाद में लादेन के ठिकाने तक पहुंचने में सफल हो सकी और अंतत: अमेरिकी कमांडो ने रविवार की रात दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी को मौत के घाट उतार दिया।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को लंबे समय से ओसामा बिन लादेन के इस भरोसेमंद कुरियर की तलाश थी।

खालिद शेख से मिला सुराग

11 सितंबर 2001 को हुए हमले के बाद सीआईए को ओसामा बिन लादेन के कुरियर अबू अहमद अल-कुवैती की तलाश थी। सीआईए ने अल कायदा के नंबर तीन खालिद शेख मोहम्मद को रावलपिंडी में गिरफ्तार किया, तो इस कुरियर के बारे में उसे पहली बार जानकारी मिली। खालिद ने कहा कि वह अल-कुवैती को जानता है, लेकिन उसने इस बात से इनकार किया कि उसका अल कायदा से किसी तरह का कोई संबंध है।

हसन गुल की गिरफ्तारी से मिली मदद

2004 में इराक में अल कायदा आतंकवादी हसन गुल को गिरफ्तार किया गया। हसन ने सीआईए को बताया कि अल-कुवैती अल कायदा का अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति है। हसन ने बताया कि वह फराज अल-लिबी का काफी करीबी है। लिबी अल कायदा का ऑपरेशनल कमांडर है। यही वह महत्वपूर्ण सुराग था लादेन के कुरियर तक पहुंचने का। सीआईए अफसरों ने बताया कि हसन गुल ही वह शख्स था, जिसने हमें लादेन के कुरियर तक पहुंचने की अहम जानकारी दी।

मई 2005 में अल-लिबी को गिरफ्तार कर लिया गया। लिबी ने सीआईए के सामने यह स्वीकार किया कि अल कायदा में उसके प्रमोशन की खबर एक कुरियर के माध्यम से मिली थी। लेकिन उसने अल-कुवैती को जानने से इनकार कर दिया। पूछताछ में सीआईए को पता चला कि यह कुरियर काफी महत्वपूर्ण है। अगर इस कुरियर यानी अल-कुवैती तक पहुंचा जा सकेगा तो लादेन भी मिल जाएगा।

फिर सालों की कोशिश के बाद सीआईए कुरियर की पहचान करने सफल रहा। कुरियर पाकिस्तानी था जिसका जन्म कुवैत में हुआ था। उसका नाम था शेख अबू अहमद। उसे अल-कुवैती के नाम से भी जानते थे।

एक कॉल ने पहुंचाया कुरियर तक

अब सीआईए के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी लादेन का पता लगाना। चूंकि, लादेन ना तो फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल करता था और ना ही खुद इधर-उधर जाता था, इसलिए उसके बारे में पता लगाना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन, अल-कुवैती की पहचान होने के बाद सीआईए का काम काफी आसान हो गया।

पिछले साल अमेरिकी अधिकारी किसी की फोन टैप कर रहे थे, इसी दौरान अल-कुवैती ने किसी की कॉल रिसीव की। अब अमेरिकी अधिकारियों के पास लादेन के सबसे भरोसमंद साथी का फोन नंबर था।

अबू अहमद लादेन से अलग रहता था। इसके बाद अमेरिकी खुफिया अफसरों ने अबू अहमद की हर गतिविधि पर नजर रखनी शुरू कर दी। वह कहां जाता है? किससे मिलता है? क्या करता है? लेकिन इसकी जानकारी किसी को भी नहीं दी। विशेषकर पाकिस्तानी अधिकारियों को, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं पाकिस्तानी लादेन के सतर्क ना कर दे।

अगस्त 2010 में अबू अहमद ऐबटाबाद के उस कंपाउंड में गया जहां लादेन रहता था। गौरतलब है कि लिबी भी कुछ दिन वहां रह चुका था। अमेरिकी खुफिया अधिकारियों को लगा कि हो ना हो लादेन इसी मकान में रहता है। उन्होंने उस मकान पर निगरानी शुरू कर दी। सैटलाइट से तस्वीरें लेनी शुरू कर दीं। लेकिन, किसी को भी इसकी जानकारी नहीं दी। जब इसके पुख्ता सबूत मिल गए तो अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा ने ऐक्शन लेने का आदेश दिया, लेकिन इस प्लान से पाकिस्तान को दूर रखा।

मौत का लाइव कवरेज

कार्रवाई का सीधा प्रसारण देखने के लिए अपने सीनियर सहयोगियों से साथ अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा सिचुएशन रूम में बैठे थे। उधर वार रूम में कार्रवाई का सीधा प्रसारण और निगरानी रख रहे थे सीआईए चीफ लिओन पैनेटा।

लादेन का कोड वर्ड में नाम रखा गया था जेरोनिमो ( Geronimo).

ऐबटाबाद में कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। कुछ मिनटों के बाद पैनेटा ना कहा जेरोनिमो देखा गया है। फिर संदेश आया एनिमी किल्ड इन एक्शन। यह संदेश सुनते सिचुएशन रूम में सन्नाटा छा गया। फाइनली इस सन्नाटे को प्रेजिडेंट ओबामा ने तोड़ा। ओबामा ने कहा, आखिर हमने उसे ढूंढ निकाला।

टाइम्स नाऊ के सूत्रों के मुताबिक, ओसामा बिन लादेन को एक सेकंड का भी वक्त नहीं मिला। उसे यह समझने का मौका ही नहीं मिला कि आखिर क्या हो रहा है। इसके पहले कि ओसामा संभल पाता अमेरिकी कमांडो की गोली उसके सिर के पार जा चुकी थी। यह गोली उसकी आंख के ठीक ऊपर लगी और ओसामा बिन लादेन की जिंदगी खत्म हो गई।
{साभार-नवभारत टाइम्स}

ओसामा बिन लादेन

सऊदी अरब के एक धनी परिवार में दस मार्च 1957 में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन, अमरीका पर 9/11 के हमलों के बाद दुनिया भर में चर्चा में आया.यह् मोहम्मद बिन लादेन के 52 बच्चों में से 17वा था. मोहम्मद बिन लादेन सऊदी अरब के अरबपति बिल्डर थे जिनकी कंपनी ने देश की लगभग 80 फ़ीसदी सड़कों का निर्माण किया था.
जब ओसामा के पिता की 1968 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हुई तब वो युवावस्था में ही करोड़पति बन गया. सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला अज़ीज़ विश्वविद्यालय में सिविल इंज़ीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वे कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षकों और छात्रों के संपर्क में आया.
अनेक बहसों और अध्ययन के बाद वे पश्चिमी देशों में मूल्यों के पतन के ख़िलाफ़ और इस्लाम के कट्टरपंथी गुटों के समर्थन में खड़े हो गया. इससे पहले अपने परिवार के साथ युरोप में मनाई गई छुट्टियों की तस्वीरों में ओसामा को फैशनेबल कपड़ों में भी देखा गया था.

दिसंबर 1978 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो ओसामा ने आरामपरस्त ज़िदंगी को छोड़ मुजाहिदीन के साथ हाथ मिलाया और शस्त्र उठा लिए.
अफ़ग़ानिस्तान में अरब लोगों के साथ मिलकर अभियान करते वक्त ही उन्होने अल कायदा के मूल संगठन की स्थापना कर ली थी. अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीन का साथ देने के बाद जब वो वापस साऊदी अरब पहुँचे तो उन्होंने साऊदी अरब के शासकों का विरोध किया. ओसामा का मानना था कि साऊदी अरब के शासकों ने ही अमरीकी सेना को साऊदी ज़मीन पर आने के लिए आमंत्रित किया था. मध्य पूर्व में अमरीकी सेना की मौज़ूदगी से नाराज़ ओसामा बिन लादेन ने 1998 में अमरीका के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी.
वर्ष 1994 में अमरीकी दबाव के कारण सऊदी अरब में उनकी नागरिकता ख़त्म कर दी थी और उसके बाद वे सूडान और फिर जनवरी 1996 में दोबारा अफ़ग़ानिस्तान मे पहुँच गए. ग़ौरतलब है कि वर्ष 1998 में ही कीनिया और तंज़ानिया में अमरीकी दूतावासों में हुए दो बम धमाकों में 224 लोग मारे गए और 5000 घायल हुए. अमरीका ने ओसामा और उनके 16 सहयोगियों को प्रमुख संदिग्ध बताया.
इसके बाद अमरीका ओसामा को दुश्मन के रूप में देखने लगा और ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़बीआई की मोस्ट वॉंटिड लिस्ट में उन्हें पकड़ने या मारने के लिए 2.5 करोड़ डॉलर के पुरस्कार की घोषणा की गई. पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में छह प्रशिक्षण शिविरों पर अiमरीका ने ओसामा को मारने के मक़सद से 75 क्रूज़ मिसाइल दागे. लेकिन एक घंटे की देरी से उनका निशाना चूक गया.

अफ़्रीका में बम घटनाओं के साथ-साथ अमरीका ने उन्हें 1993 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बम धमाके, 1995 में रियाद में कार बम धमाके, सऊदी अरब में ट्रक बम हमले का दोषी पाया.
रविवार डॉट कॉम के अनुसारसऊदी अरब में एक यमन परिवार में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 1979 में सऊदी अरब छोड़ दिया. अफगानी जेहाद को जहाँ एक ओर अमरीकी डॉलरों की ताक़त हासिल थी वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब और पाकिस्तान की सरकारों का समर्थन था. मध्य पूर्वी मामलों के विश्लेषक हाज़िर तैमूरियन के अनुसार ओसामा बिन लादेन को ट्रेनिंग सीआईए ने ही दी थी.
अफ़ग़ानिस्तान में उन्होंने मक्तब-अल-ख़िदमत की स्थापना की जिसमें दुनिया भर से लोगों की भर्ती की गई और सोवियत फ़ौजों से लड़ने के लिए उपकरणों का आयात किया गया.

पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में हुए अमरीकी सेना के अभियान में 2 मई 2011 को उन्हें मार डाला गया. ओसामा बिन लादेन की मौत के 12 घंटे के बाद अमरीका के विमान वाहक पोत यूएसएस कार्ल विन्सन पर शव को एक सफ़ेद चादर में लपेट कर एक बड़े थैले में रखा गया और फिर अरब सागर में उतार दिया गया. यह सब ब्रितानी समयानुसार सुबह छह बजे हुआ. अमरीकी अधिकारी समुद्र में सीबीएस न्यूज़ के मुताबिक, सऊदी अरब ने शव लेने से इनकार कर दिया था. अगर यह बात सही है तो इसका मतलब उन्हें यह प्रस्ताव दिया गया था और अगर सऊदी अरब ओसामा को अपने यहाँ कहीं दफ़ना देता तो क़ब्र को मज़ार बनते देर नहीं लगती.
उनके मारे जाने के बाद अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को याद करते हुये कहा कि जैसा बुश ने कहा था हमारी जंग इस्लाम के खिलाफ नहीं है. लादेन को पाकिस्तान में इस्लामाबाद के एक कंपाउंड में मारा गया. एक हफ्ते पहले हमारे पास लादेन के बारे में पुख्ता जानकारियां मिल गई थीं. उसने बाद ही कंपाउंड को घेरकर एक छोटे ऑपरेशन में लादेन को मार गिराया गया.
बराक ओबामा ने कहा कि लादेन ने पाक के खिलाफ भी जंग छेड़ी थी. हमारे अधिकारियों ने वहां के अधिकारियों से बात कि और वह भी इसे एक ऐतिहासिक दिन मान रहे हैं. यह 10 साल की शहादत की उपलबधि है. हमने कभी भी सुरक्षा से समझौता नहीं किया. अल कायदा से पीड़ित लोगों से मैं कहूंगा कि न्याय मिल चुका है.
9/11 के सकता है. पैसे और ताकत से नहीं बल्कि एकजुटता ही हमारी शक्ति है.

कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन नेचुरल व्याग्रा का इस्तेमाल करता था। ओसामा के एबटाबाद स्थित बंगले से बरामद सामान में कई दवाएं भी मिली हैं, जिसमें अवीना सिरप भी शामिल है। इसे नेचुरल व्याग्रा माना जाता है।

लादेन के ठिकाने से कई तरह की दवाएं मिली हैं, जिनसे पुष्टि होती है कि वह बीमार था। वह अल्सर और हाई ब्लडप्रेशर का शिकार था। एबटाबाद के बंगले से मिली दवाओं की सूची के बारे में अमेरिका के विशेषज्ञों ने कहा है कि इनसे साफ होता है कि ओसामा को कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। कुछ समय पहले अफवाह उड़ी थी कि ओसामा बिन लादेन के गुर्दे काम नहीं कर रहे थे और वह गंभीर बीमार था। लेकिन बंगले से मिली दवाओं से इस अफवाह की पुष्टि नहीं होती। हांलांकि वहां मिली नेट्रिलिक्स से साफ है कि वह हाई ब्लड प्रेशर का मरीज था। 

लेकिन अवीना सिरप से साफ है कि सेक्स पॉवर बढ़ाने की दवा लेता था। जो दवाएं, ओसामा के बंगले से मिली हैं उनमें पेंजा ड्राप और केप गबेपेंटीन शामिल हैं।

ओसामा की जीवनयात्रा : एक दृष्टि में
  • 1957 : सउदी अरब में लादेन का जन्म। वह निर्माण उद्यमी मोहम्मद अवाद बिन लादेन के 52 बच्चों में से 17वां था।
  • 1969 : मोहम्मद बिन लादेन की मौत। उस समय 11 साल के रहे लादेन को लगभग आठ करोड़ डॉलर की राशि विरासत में मिली। लादेन बाद में जेद्दा में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए गया।
  • 1973 : लादेन ने खुद को चरमपंथी मुस्लिम गुटों से जोड़ा।
  • 1979 : युवा लादेन मुजाहिदीन नाम से पहचाने जाने वाले लड़ाकों की मदद के लिए अफगानिस्तान गया। लादेन एक गुट का मुख्य आर्थिक मददगार बन गया, जो बाद में अल कायदा कहलाया।
  • 1989 : अफगानिस्तान में सोवियत संघ के हटने के बाद लादेन परिवार की निर्माण कंपनी के लिए काम करने के उद्देश्य से सउदी अरब लौट गया। यहां उसने अफगान युद्ध में मदद के उद्देश्य से कोष जुटाना शुरू कर दिया। अल कायदा वैश्विक गुट बना। मुख्यालय अफगानिस्तान रहा, जबकि उसके सदस्य 35 से 60 देशों में मौजूद थे।
  • 1991 : अमेरिकी नीत गठबंधन ने कुवैत से इराकी बलों को खदेड़ने के लिए युद्ध शुरू किया। लादेन ने अमेरिकी बलों के खिलाफ जिहाद की शुरुआत की। सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते उसे सउदी अरब से निष्कासित कर दिया गया। सउदी अरब ने उसकी और उसके परिवार की नागरिकता को वापस ले लिया। उसने सूडान में शरण ली।
  • 1993 : वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर बम गिरा, छह की मौत, सैकड़ों घायल। इस संबंध में छह मुस्लिम कट्टरपंथी दोषी ठहराए गए। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, इनके संबंध लादेन से थे। नवंबर में रियाद में एक इमारत के सामने बम फटा। इस इमारत में अमेरिकी सैन्य परामर्शकार काम करते थे। अमेरिका के पांच और भारत के दो नागरिक मारे गए। हमले में 60 से भी ज्यादा लोग घायल।
  • 1995 : नैरोबी और तंजानिया के दार ए सलाम में अमेरिकी दूतावासों के बाहर बम विस्फोट, 224 की मौत।
  • 1996 : अमेरिकी दबाव के कारण सूडान ने लादेन को निष्कासित किया। लादेन अपने 10 बच्चों और तीन बीवियों को लेकर अफगानिस्तान पहुंचा। यहां उसने अमेरिकी बलों के खिलाफ जिहाद की घोषणा की।
  • 20 अगस्त, 1998 : दूतावास पर हमलों के जवाब में अमेरिका ने अफगानिस्तान और सूडान में लादेन के प्रशिक्षण शिविरों पर हमले किए। कम से कम 20 लोग मारे गए। लादेन वहां मौजूद नहीं था।
  • 1998 : अमेरिका की एक अदालत ने दूतावासों पर बमबारी के आरोप में लादेन को दोषी ठहराया। उसके सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा गया।
  • 1999 : एफबीआई ने लादेन को ‘10 सबसे वांछित आतंकवादियों’ की सूची में रखा।
  • 2000 : यमन में एक आत्मघाती हमले में 17 अमेरिकी नाविकों की मौत।
  • 2001 : अल-कायदा प्रमुख ने 11 सितंबर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टॉवर्स और पेंटागन पर हमला किया, 3,000 से ज्यादा लोगों की मौत। इस हमले के बाद अमेरिकी सरकार ने लादेन का नाम मुख्य संदिग्ध के तौर पर घोषित किया। अमेरिकी सुरक्षा बल अफगानिस्तान स्थित तोरा-बोरा की पहाड़ियों में छिपे लादेन को मारने में असफल रहे। खबरों के मुताबिक, लादेन पाकिस्तान भागा।
  • 2002 : अमेरिका नीत सैन्य अभियान तेज हुआ। गठबंधन बलों ने मैदानी सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई। लादेन पर्दे के पीछे रहा, लेकिन कुछ समय बाद अल-जजीरा ने उसकी आवाज वाले दो ऑडियो टेप प्रसारित किए। अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के मुताबिक, ये रिकॉर्डिंग प्रामाणिक थी।
  • 2003 : ओसामा की दुनिया भर के मुसलमानों से अपील, अपने मतभेद दूर करके जिहाद में भाग लें। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के मुताबिक लादेन संभवत: जीवित और अफगानिस्तान में कहीं छिपा हुआ। हालांकि उन्होंने दावा किया कि अल-कायदा अब उतना प्रभावी आतंकवादी गुट नहीं रहा।
  • 2004 : चार जनवरी को, अल-जजीरा ने दोबारा लादेन के टेप जारी किए। मार्च में अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने अफगान पाकिस्तान सीमा के पास लादेन के लिए खोज अभियान और तेज किया ।
  • 2009 : अमेरिकी रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने कहा कि अधिकारियों के पास कई ‘सालों’ से लादेन के पते के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं है।
  • 02 मई, 2010 : अमेरिका ने इस्लामाबाद के पास एक विशेष अभियान में लादेन को मार गिराया।