नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 29 अगस्त 2021

रिश्तों में अब

रिश्तों में अब वह पहले सी गर्माहट कहाँ

अपनों से मिलने की वह छटपटाहट कहाँ

दरवाजों पर नजरें गड़ाये राह तकती बूढ़ी आँखें

अब अपनों के लौटकर आने की वह आहट कहाँ

त्योहारों के बहाने जब घर लौट आते थे परदेशी

अब गाँव देहातों में वह रौनक कहाँ

जगमगाते थे घर जब अपनों की रोशनी से

महकती थी गलियाँ पकवानों की खुशबू से

पकवान तो अब भी बनते ही होंगे शायद

अकेले बैठकर खाने में वह लज्जत कहाँ

व्यस्तता इतनी है कि एक घर में रहकर भी

दूसरे का हाल क्या है यह जानने की फुर्सत कहाँ

मरता भी है कोई गर तो मरे अपनी गरज से

क्यूँ मरा वह जानकर हम करेंगे भी क्या

इतनी बेहयाई तो जानवरों में भी न थी

हम क्योंकर इंसान हुए भला.....

                (कृष्णधर शर्मा 28.8.2021)

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