नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

बस्तर हाट


दस का आलू दस का प्याज
दस की मिर्ची दस का तेल
दस रु. में हो जाता है
बस्तर हाट में सारा खेल
थैला भरकर महुआ लाते
मुट्ठी भर सामान वो पाते
शहरों से आकर व्यापारी
बस्तरियों को लूट ले जाते
उन्हीं का महुआ उन्हीं कि इमली
उन्हीं का धान उन्हीं कि लकड़ी
औने-पौने में खरीदकर
रातों-रात अमीर हो जाते
पुलिस-प्रशासन और व्यापारी
मिलकर रहते बस्तर में
लूटपाट का खेल खेलते
अपने-अपने स्तर में
लोहा, सोना, हीरे, मोती
छुपें हुए हैं इस धरती में
कैसे निकले माल ये सारा
लगे हुये हैं सब युक्ति में 
आवाज उठाता कोई भी तो
बर्दाश्त नहीं होता उनको
चुप न हुआ तो नक्सली बताकर
डरा दिया जाता सबको.

                  (कृष्ण धर शर्मा, ८.२०१६)

अग्निपरीक्षा


स्त्री तुमको ही हर युग में
क्यों देनी होती अग्निपरीक्षा
स्त्री तो होती है देवी
सदियों से मिली हमें यह शिक्षा
सीता, द्रोपदी या अहिल्या हो
छला तुम्हें पुरुषों ने सदा
तुमको ही दोषी ठहराया
पुरुष सदा निर्दोष रहा
कथनी-करनी में फर्क मगर
समझ नहीं आता हमको
गलती हो पुरुषों की अगर  
सजा मिली हरदम तुमको

              (कृष्ण धर शर्मा, ७.२०१६)

तुम्हारा भाग्य


युग बदले शासक बदले
बदला नहीं तुम्हारा भाग्य
हाय हिरण तुम छले गए
हर युग में स्त्री की तरह
न्याय की देवी की आँखों में
बांध दी गई काली पट्टी
सुन तो सके पर देख न पाये
साजिश हुई युगों से ऐसी
न्याय हुआ न रामराज में
और न होगा कलयुग में भी
समय भले ही बदल गया हो
सोच मगर बदली है नहीं
अत्याचार सहते रहना
शायद नियति तुम्हारी है
रामराज हो भले मगर
धोबी की सोच तो भारी है...

                 (कृष्ण धर शर्मा, ७.२०१६)

आम आदमी खास आदमी


आम आदमी देखता है आम सपने
खास आदमी देखता है खास सपने
कभी-कभी तो इन सपनों का
अंतर होता है इतना ज्यादा 
कि जैसे जमीन और आसमान का
जैसे नदी और समुद्र का अंतर
कुछ सपने समान भी होते हैं इनके
जैसे अपनों की खुशहाली के सपने
आम आदमी देखता है सपने 
कल और परसों के
ख़ास आदमी देखता है सपने
महीनों और बरसों के
आम आदमी करता है चिंता
अपने पडोसी की भी
कहीं कुछ परेशानी या
विपदा में तो नहीं है उसका पडोसी!
खास आदमी पडोसी की चिंता को
घुसने ही नहीं देता है घर में अपने
खिड़की, दरवाजों सहित
हर उस जगह पर बिठा देता है पहरे
कमरों को भी करवा देता है साउंडप्रूफ
ताकि न आ सकें किसी गरीब की
परेशान आहें या कराहें घर में उसके
मगर इस चक्कर में बंद कर लेता है वह
सकारात्मक भावनाओं और संभावनाओं का
आना जाना भी अपने घर में
फंसकर रह जाता है वह अपने ही बुने
कांक्रीट और सुविधाओं के जाल में
जबकि आम आदमी की झोपडी में
नहीं है कोई रोक-टोक
न पडोसी की चिंताओं के लिए
न चिड़िया के लिए न कुत्ते-बिल्ली के लिए
न ही किसी भूखे भिखारी के लिए
आम आदमी को क्या जरूरत
एयरकंडीशन कमरों की
वह तो गज़ब का सुख पाता है
भरी दोपहरी में भी
वटवृक्ष के नीचे बैठकर
जहाँ बैठकर कोई बुद्ध हुआ
तो कोई महावीर हो गया....

               (कृष्ण धर शर्मा, ७.२०१६)

नदी और औरत


किसी झरने का नदी बन जाना
ठीक वैसे ही तो
जैसे किसी लड़की का औरत बन जाना
जैसे एकवचन से बहुवचन हो जाना
जैसे अपने लिए जीना छोड़कर
दुनिया के लिए जीना
जैसे दूसरों को अमृत पिला
खुद जहर पीना
अद्भुत सी समानताएं हैं
नदी और औरत में
दोनों ही से मिलकर
धुल जाते हैं कलुष
तन और मन के
तृप्त हो जाती है आत्मा भी
मिलती है अद्भुत सी शांति
रेतीले, पथरीले, जंगल, पहाड़ से
गुजरती है नदी कितनी ही चोटें खाकर
खुशहाली पहुंचाती है मगर
नगर-नगर हर गाँव-घर जाकर
भले ही मिलता हो उसे बदले में
इंसानी गन्दगी का दलदल
पिता हो, पति हो, या पुत्र
औरत भी तो ले लेती है
सबकी थकान और चिंताएं अपने ही सर
फिर भी कोई गिला नहीं दोनों को ही
खुशियाँ बांटती जा मिलती हैं
दोनों ही अपने-अपने समंदर को

              (कृष्ण धर शर्मा, २०१६)

पागल का घर


शाम के धुंधलके में
जबकि चिडियां वापस जा रही थीं
अपने घोंसलों में बच्चों के पास
गायें भी रंभाती हुई भागती सी
अपने छौनों के लिए
आलस भरी अंगड़ाई लेकर
जागने की तैयारी में थे उल्लू भी
पेड़ की शाखों पर उल्टे लटके हुए
दिनभर खेतों में काम करके
किसान भी लौट रहे थे घरों को
अपने हल और बैलों के साथ
कुछ बैलगाड़ियाँ भी लौट रही थीं हाट-बाजार से
और इन सबका इंतजार करती हुई
कुछ जोड़ी आँखें भी झांक रही सी
घरों की चारदीवारी से
अँधेरा गहराने लगा था अब तक
पहुँच चुके थे तब तक लोग अपने घरों में
चिडियां अपने घोसलों में
गायें अपने छौनों के पास
और पहुँच चुका था पागल भी
चाय-पकौड़ी वाले होटल के
बाहर बिछे तख़्त पर
दिनभर यहां-वहां भटकने के बाद 

                   (कृष्ण धर शर्मा, २०१६)

सोमवार, 26 सितंबर 2016

गुंजाइश



थक तो बहुत जाता हूँ
इस 12 घंटे की
ईमानदारी कि नौकरी में मैं
मगर यह सोचकर
तसल्ली भी मिलती है मुझे
कि अब अच्छी और गहरी
नींद तो आएगी मुझको
जो लाखों बेईमानों की
किस्मत में नहीं है
कभी-कभी
अपनी ईमानदारी पर
पछतावा भी होता है मुझे
कि देखो तो जरा
कितने आगे निकल गए हैं
मेरे ही साथ चलने वाले
मगर तसल्ली भी होती है
जब कुछ दूर चलने पर
मिलते हैं वही लोग
थके-हारे से जीवन के
पथरीले पहाड़ों पर
यही सोचते हुए से
कि रास्ते में छोड़ आये हैं
जो जीवन के सुनहरे पल
कि अब वापस लौटने की
नहीं बची है गुंजाईश
रत्ती भर भी!
          (कृष्ण धर शर्मा, 9.2016)

बुधवार, 21 सितंबर 2016

ईमानदारी की नौकरी


थक तो बहुत जाता हूँ
इस 12 घंटे की
ईमानदारी की नौकरी में मैं
मगर यह सोचकर
तसल्ली भी मिलती है मुझे
कि अब अच्छी और गहरी
नींद तो आएगी मुझको
जो लाखों बेईमानों की
किस्मत में नहीं है
कभी-कभी
अपनी ईमानदारी पर
पछतावा भी होता है मुझे
कि देखो तो जरा
कितने आगे निकल गए हैं
मेरे ही साथ चलने वाले
मगर तसल्ली भी होती है
जब कुछ दूर चलने पर
मिलते हैं वाही लोग
थके-हारे से जीवन के
पथरीले पहाड़ों पर
यही सोचते हुए से
कि रास्ते में छोड़ आये हैं
जो जीवन के सुनहरे पल
कि अब वापस लौटने की
नहीं बची है गुंजाईश
रत्ती भर भी!
          (कृष्ण धर शर्मा, 9.2016)

रविवार, 11 सितंबर 2016

संगीत की कोई सरहद नहीं होती

गजल गायक गुलाम अली की बेहतरीन नज्मों और दिल को छू लेने वाली गजलों के दीवाने केवल पाकिस्तान में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मौजूद हैं। गुलाम अली की गजल गायिकी का जादू सरहद पार भारतीय प्रशंसकों में सिर चढ़कर बोलता है, और उनका कहना भी है कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती और न कभी हो सकती है। अपने बेटे आमिर अली के नए अलबम 'नहीं मिलना' की लॉन्चिंग के मौके पर दिल्ली आए गुलाम अली ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में आधुनिक संगीत में सुधार की बात पर जोर दिया। गुलाम अली से जब पूछा गया कि आपकी गजलों के भारत में बहुत प्रशंसक हैं, आपको क्या लगता है कि आपके बेटे को भी लोग उसी तरह से पसंद करेंगे, इस पर उन्होंने कहा, "यह आमिर के काम पर निर्भर करेगा। आमिर जितना अच्छा काम करेंगे, लोग उन्हें उतना पसंद करेंगे, फिर चाहे वह भारत हो या पाकिस्तान।" गुलाम अली बताते हैं, "मुझे संगीत की दुनिया में 60 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन मैं अब भी खुद को शागिर्द समझता हूं। मैं ऐसे कई रागों, सुरों और शास्त्रीय संगीत को सीखने का प्रयास करता रहता हूं, जिसे मैंने पहले नहीं सुना होता है। मैं उस चीज के पीछे पड़ जाता हूं और उसे लगातार सीखने की कोशिश करता रहता हूं।" गुलाम अली से जब पूछा गया कि क्या आपके प्रसंशक भारत में पाकिस्तान से अधिक हैं, तो इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में ही प्यार मिलता है। यहां लोग ज्यादा हैं, इसलिए यहां का प्यार भी ज्यादा है।" आधुनिक और पाश्चात्य संगीत के बीच गजलों के प्रशंसकों की घटती संख्या को स्वीकारते हुए गुलाम अली ने बताया, "जाहिर तौर पर गजलों के प्रशंसकों की संख्या कम हो रही है, लेकिन गजल-गायिकी और शास्त्रीय संगीत के माहौल में बढ़ने वाले बच्चे गजलों से अछूते नहीं हैं। भारत और पाकिस्तान में विदेशी संगीत का बोलबाला तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन विदेशों में भी गजलों के दीवाने मिल जाते हैं।" रैप, हिप-हॉप और तड़क-भड़क वाले संगीत से गुलाम अली इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि इन गीतों का सिरा ही गलत होता है। गुलाम अली बताते हैं, "इस तरह के गीत-संगीत के सिरे नहीं होते हैं और उनका कंपोजीशन भी अटपटा ही रहता है। शुद्ध संगीत दिल को छू लेने वाला होता है।" उन्होंने कहा, "गायक, गीतकार, संगीतकार और संगीत से जुड़े तमाम लोगों को अच्छा संगीत देने की कोशिश करनी चाहिए। आजकल गीत लिखते वक्त गीतकार का ध्यान अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की ओर अधिक होता है। गीत लिखने के लिए बहुत ही समझदारी होनी चाहिए।" श्रोताओं तक कर्णप्रिय संगीत पहुंचाने और बनावट से भरे संगीत को दूर रखने के लिए गुलाम अली का क्या सुझाव है?, पूछने पर उन्होंने कहा, "फिल्मी गीतों को आसान बनाकर लोगों के बीच पेश किया जा रहा है, जिससे उन्हें सुनने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन जो लोग गीतों को समझते हैं, वे इस तरह के संगीत को नहीं पसंद करते। हमेशा ही हल्की बात अधिक प्रसिद्ध होती है, लेकिन मेरे अनुसार वह शुद्ध संगीत नहीं है।" उन्होंने कहा, "संगीत को पेश करने से पहले उसे सीखना और समझना बहुत जरूरी है। मैं अपने स्तर से इस तरह के संगीत को रोकने की कोशिश करता हूं और अपनी हद तक हर कोई इसे रोक सकता है।" इस समय भारत-पाकिस्तान के संबंध उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन संगीत देशों की दूरियों को दूर कर रहा है। सरहदों को पार कर दोनों देशों में बह रही संगीत की बयार पर गुलाम अली कहते हैं, "आवाज की कोई सरहद नहीं होती और संगीत को किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता।" आपके भारत आने का बार-बार विरोध होता रहा है, इस पर आपका क्या कहना है?, इस सवाल पर गुलाम अली ने कहा, "किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि कौन गा रहा है, बल्कि यह सोचना चाहिए कि क्या गा रहा है। मैं जब टेलीविजन पर गाता हूं, तो मुझे पूरी दुनिया सुनती है। मुझे विरोधों की परवाह नहीं है।" (Interviewer :IANS)(साभार-देशबंधु)