नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 24 जून 2014

विश्वव्यापी पर्यावरण विनाश

विश्वव्यापी पर्यावरण विनाश से मानवजाति की आजीविका पर मंडरा रहे खतरे के विरूद्ध पूरी दुनिया में संघर्षरत जनता की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण के लिए संघर्ष सामाजिक और राष्ट्रीय मुक्ति के लिए तथा समाजवादी सामाजिक व्यवस्था के लिए संघर्ष का हिस्सा है, जो मानव जीवन का प्रकृति के अनुरूप उत्पादन और पुनरूत्पादन करेगा।
1945
में द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में पहले से पराजित जापान के दो बड़े शहरों हिरोशिमा (6 अगस्त) तथा नागासाकी (9 अगस्त) पर नए उभरते हुए महाशक्ति अमरीका द्वारा, गिराए गए परमाणु बमों की याद विश्व की जनता के दिलो दिमाग में अमिट रूप से समा गई है। वह परमाणु हथियारों की अथाह दुष्परिणामों को आज भी नहीं भुला पा रही है।
ऐसी परिस्थिति में जबर्दस्त भूकम्प और सुनामी की लहरों से 11 मार्च 2011 को जापान के फु कुशिमा में परमाणु ऊर्जा के इतिहास में सबसे बड़ी नाभिकीय तबाही मची थी। इसकी वजह से हुई दुर्घटना पर आज भी काबू नहीं पाया जा सका है। इससे सघन आबादी वाले जापान द्वीप का एक बड़ा इलाका लोगों की बसाहट लायक नहीं रह गया। हवा और समुद्र के जरिए फैले रेडियोधर्मी विकिरण ने पूरी दुनिया में मनुष्य के खाद्य चक्र को दुषित कर दिया है और यह आने वाले कई दशकों तक भयंकर बीमारियों को भी जन्म देगा।
तभी से परमाणु ऊर्जा के उपयोग के खिलाफ  दुनिया भर में प्रतिरोध विकसित हो रहा है। यह ज्यादा से ज्यादा देशों में फैलता जा रहा है और इसने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की सम्पूर्ण ऊर्जा नीति के संकट को उजागर कर दिया है। इस परिस्थिति में, गत 4 मार्च को जन संगठनों ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर ''परमाणु ऊर्जा विरोधी जन संसदÓÓ  का आयोजन किया था। इस जन संसद में उपस्थित जन संगठनों ने मिलकर आह्वान किया था कि कुछ निश्चित नारों के आधार पर साझा अभियान संगठित किया जाय। देश भर में सभी परमाणु बिजलीघरों को तत्काल बन्द करने, नए परमाणु बिजली घरों के बनने पर रोक लगाएं और तमाम परमाणु हथियारों को खत्म करने की मांग के आधार पर दुनिया के सभी देशों के सदस्य संगठनों को अभियान की एकताबद्ध शक्ति में शामिल किया जाय, यही इसका उद्देश्य है।
जब साम्राज्यवादी नीतियों की पैरोकार सरकारों ने पिछले वर्ष मौसम की आपदा से बचने के लिए विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की बात कही थी, तो यह उनकी जनता को गुमराह करने वाली गलतबयानी थी। 1979 में अमेरिका के हैरिसबर्ग के निकट थ्री माइल आईलैण्ड और 1986 में उक्रेन के चेर्नोबील की दुर्घटना, और साथ ही भारी जोखिमों से भरी अन्य अनेक दुर्घटनाओं ने साफ तौर पर साबित कर दिया है कि मौजूद तकनीक के संदर्भ में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। बाढ़, भूकम्प, भीतरी तोडफ़ोड़ और हवाई जहाजों की टक्कर जैसी बाहरी कारणों के अलावा भी यह त्रुटियों और गलतियों के प्रति अतिसंवेदनशील है। मनुष्य द्वारा संचालित किसी भी अन्य तकनीकी के समान इसमें टूट-फूट और क्षरण होता रहता है तथा निर्माण और संचालन के समय गलतियों से बचा नहीं जा सकता है। परमाणु ऊर्जा के संबंध में इसके सम्भावित दुष्परिणामों को किसी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता और यह व्यापक जनता के स्वास्थ्य एवं जिंदगी के लिए खतरनाक है।
परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाला कचरा लम्बे समय तक, दस लाख साल तक, रेडियोधर्मी विकिरण फैलाता है, जिसे मनुष्य द्वारा काबू नहीं किया जा सकता है। परमाणु तकनीकी के विकास के साठ साल बाद भी दुनिया में किसी भी स्थान पर बिना खतरे के रेडियोधर्मी कचरे के भण्डारण और उसे अंतिम रूप से ठिकाने लगाने का कोई स्वीकृत तरीका नहीं है। यूरेनियम खनन, परमाणु बिजलीघरों एवं परमाणु शोध संयंत्रों के निर्माण के कारण पहले ही पर्यावरण को भारी नुकसान हो चुका है और ऊर्जा की अस्वीकार्य बर्बादी हो चुकी है।
कई देशों में परमाणु बिजलीघरों का निर्माण परमाणु हथियारों के उत्पादन के लिए समृद्ध यूरेनियम की आपूर्ति के लिए किया जाता है। यह दावा करना कि इस तरह के ऊर्जा का उत्पादन कम खर्चीला है, लम्बे समय से फैलाया जा रहा भ्रम है। एक परमाणु बिजलीघर के निर्माण की लागत चार से सात बिलियन अमेरिकी डालर है। अन्य किसी किस्म की ऊर्जा को राज्य द्वारा इतना ज्यादा अनुदान नहीं दिया जाता है। इसी कारण से ऊर्जा उत्पादक कंपनियों को अधिकतम मुनाफा होता है।
यह दावा करना कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण और संचालन से भारत जैसे उन नव-उपनिवेशिक रूप से आश्रित देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता की गारंटी होगी जहां कच्चे माल का अभाव है, लम्बे समय से फैलाया जा रहा भ्रम है। किसी भी अन्य क्षेत्र से ज्यादा, परमाणु ऊर्जा उत्पादन की तकनीकी पर केवल गिने-चुने अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा इजारेदारों और संयंत्र निर्माताओं का नियंत्रण है, जैसे कि सीमन्स, तोशिबा, वेस्टिंगहाउस, जनरल इलेक्ट्रिक, रोसाटोम और अवेरा। वे कभी भी अपनी तकनीकी जानकारी को अपने हाथ से निकलने नहीं देंगे। इसके अलावा, जन समुदाय को खतरे में डालकर घातक तकनीकी की मदद से राष्ट्रीय सम्प्रभुता कभी भी एक स्वतंत्र रास्ता नहीं हो सकता है, बल्कि एक गलत रास्ता है।
हाल की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद यह निर्विवाद है कि इस किस्म का ऊर्जा उत्पादन एकदम से अमानवीय है। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पंूजी द्वारा 26-27 मई 2011 के जी-आठ शिखर वार्ता के दौरान 500 से ज्यादा नये परमाणु बिजलीघरों के निर्माण की अपनी योजना को सक्रिय रूप से पेश किया गया, जिससे उन्हें दुनिया भर से लगभग तीन ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का ऑर्डर मिलने की उम्मीद है।
जन प्रतिरोध की वैश्विक लहर के जरिए एक देश की सरकार को इस राजनीति से बाज आने के लिए बाध्य किया गया है। जर्मनी में आठ परमाणु बिजलीघरों को तत्काल बन्द कर दिया गया और सरकार को शेष नौ परमाणु बिजलीघरों को 2022 तक बन्द कर देने का निर्णय लेना पड़ा है। इटली में एक जनमत संग्रह में फिर से परमाणु बिजलीघरों के निर्माण को खारिज कर दिया गया है। वेनेजुएला में, चिली में और स्विटजरलैण्ड में परमाणु ऊर्जा संयत्रों का निर्माण रद्द कर दिया गया है। जापान में 82 प्रतिशत लोगों ने आगे से परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर आपत्ति जतायी है।   
सुरक्षित परमाणु ऊर्जा: एक मिथक
    परमाणु ऊर्जा संयत्रों की दुर्घटनाओं के इतिहास की तीन सबसे भीषण दुर्घटनाएं ऐसे तीन देशों में हुई हैं जिनका दर्जा महाशक्ति देश का रहा है। उदाहरण के लिए पूर्व सोवियत संघ (रूस), जो उस वक्त एक महाशक्ति था, अमेरिका जो अभी भी महाशक्ति होने का दावा करता है, जापान, जो तकनीकी रूप से सर्वश्रेष्ठ रहा है तथा जिसे अपने उपकरणों पर हमेशा नाज रहा है। हेरिसबर्ग, चेरनोबिल, फुकुशिमा इन तीनों जगह पर हुई तबाहियों ने यह साबित कर दिया है कि एक बार जब यह जिन्न अपनी बोतल से बाहर जाता है तो इसे काबू में करना बहुत मुश्किल होता है, भले ही आप महाशक्ति हों या दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंं। इन तीनों दुर्घटनाओं को याद करना जरूरी है, क्योंकि ये इस मिथक का पुरजोर खंडन करती हैं कि परमाणु ऊर्जा मानवता के लिए सुरक्षित है।
विश्वव्यापी पर्यावरण विनाश से मानवजाति की आजीविका पर मंडरा रहे खतरे के विरूद्ध पूरी दुनिया में संघर्षरत जनता की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण के लिए संघर्ष सामाजिक और राष्ट्रीय मुक्ति के लिए तथा समाजवादी सामाजिक व्यवस्था के लिए संघर्ष का हिस्सा है, जो मानव जीवन का प्रकृति के अनुरूप उत्पादन और पुनरूत्पादन करेगा। इस सिलसिले में एक अंतरराष्ट्रीय मुहिम निम्न नारों के साथ चलाया जा रहा है:- समस्त संसार में तत्काल सभी परमाणु बिजलीघरों और संयंत्रों को बन्द करने के लिए सक्रिय प्रतिरोध करो! इजारेदारों की मुनाफे की लालच से पर्यावरण की रक्षा करो! संचालकों के खर्च पर दुनिया भर में सभी परमाणु बिजलीघरों को तत्काल ताला लगाओ! पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का तत्काल विस्तार करो! सभी नाभिकीय, जैविक और रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगाओं और खत्म करो! प्राकृतिक वातावरण की रक्षा के लिए सक्रिय प्रतिरोध के एक अंतराराष्ट्रीय मोर्चें का गठन करो। साम्राज्यवाद के विरूद्ध और समाजवादी समाज के लिए संघर्ष करो, जहां मानवजाति और प्रकृति की एकता को साकार किया जा सके!
(तुहिन देब)
साभार-देशबंधु


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