नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 25 मार्च 2025

गीता-यशपाल

 चुनाव का आवेश शहर भर में फैल रहा था। कांग्रेस के चोटी के लीडरों को बम्बई में बुलाकर स्थान-स्थान पर उनके व्याख्यान कराये जा रहे थे। मुस्लिम क्षेत्र के चोटों के लिए कांग्रेस की लीग से टक्कर थी, परन्तु कांग्रेस के नेता लीग की निन्दा से अधिक क्रोध प्रकट कर रहे थे कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति, क्योंकि लीग की पाकिस्तान की माँग के सिद्धान्त का समर्थन कम्युनिस्ट १९४२ से कर रहे थे। 

कम्युनिस्टों को देशद्रोही, गद्दार और मुस्लिम लीग का पिट्टू कहा जाता। चौपाटी के मैदान में होने वाले इन व्याख्यानों से उत्तेजित जनता कम्युनिस्टों को गालियाँ देती हुई जाती। उत्तेजित जनता चौपाटी के समीप सैण्टहर्स्ट रोड पर कम्युनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय दफ्तर पर कई बार ईंट-पत्थरों से हमला कर चुकी थी। इन परिस्थितियों में गीता भी मन ही मन उत्तेजित हो जाती। कम्युनिस्टों की स्थिति बम्बई के भद्र श्रेणी के इलाकों की अपेक्षा मजदूर क्षेत्रों में मजबूत थी। वहाँ उन्हें पिंटने का डर न था। 

गीता मन में ग्लानि अनुभव करने लगी-ऐसी अवस्था में शहर का काम छोड़, मजदूर क्षेत्र में छिपने की कोशिश करना कायरता नहीं तो क्या है ? तेईस जनवरी को ट्राम और बस की हड़ताल के कारण वह परेल न जा सकती थी। चौबीस को सुबह ही उसने समाचार पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय दफ्तर पर दंगे का संक्षिप्त समाचार पढ़ा। उसी समय उठकर वह सैण्डहर्स्ट रोड की ओर चल दी। जो कुछ उसने पढ़ा था, उससे बहुत अधिक देखा मुख्य दरवाजे के एक ओर राशन की और दूसरी ओर पार्टी की पुस्तकों की दुकानें जला दी गई थीं। तीसरी मंजिल तक सब जगह आग के चिह्न थे।

 खिड़कियों के काँच टूटकर, वे दाँत-टूटे मुख की भाँति विरूप लग रही थीं। दीवारों पर जगह-जगह आग की कालिख थी और कई जगह आग बुझाने के इंजन के पंपों से वह कालिख दीवारों पर बह गई थी और जान पड़ता था, मार खाकर मकान फूट-फूट कर रो दिया हो। गीता ने सुना, साठ साथी बुरी तरह जख्मी हुए थे। किसी की जबडे की हड्डी टूटी थी, किसी का माथा फटा था और कई लोगों के हाथ-पाँव टूट गये थे। ज्यादा नुकसान प्रेस में हुआ था। उसने प्रेस में देखा-बड़ी-बड़ी मशीनें टूटी पड़ी थीं। सुना, एक लाख का नुकसान हुआ था। गीता के मन ने कहा-कितने श्रम से माँगा हुआ रुपया! मन का आवेश वश में रखने के लिए वह बोल न पाई और होंठ दवाये लौट आई। उसका मन प्रतिहिंसा से जल रहा था। ये खद्दर के सफेद-सफेद कपड़े पहनकर अहिंसा का उपदेश देने वाले बगुला भगत पार्टी को चाहिए, अपने मजदूर साथियों की टोलियाँ ले इन सबके गँजे सिर मुड़वा दे और इनके महलों और दफ्तरों में आग लगवा दे ! 

दूसरे दिन संध्या वह पार्टी मेम्बरों और सहानुभूति रखने वालों की सभा में परेल गई। सभा में घटना का वर्णन ब्योरे से सुनाया गया। कई साथी उसी की भाँति प्रतिहिंसा की आग से जल रहे थे। उन्होंने खड़े होकर कम्युनिस्टों को गद्दार कहने वाले कांग्रेसी नेताओं को इस घटना का जिम्मेदार ठहरा उन्हें भला-बुरा कहा और भविष्य में बदला लेने के कार्यक्रम पर जोर दिया। गीता ने उनका समर्थन किया। 

प्रान्तीय कमेटी के तीन मेम्बर भी उपस्थित थे। कामरेड हारे ने अपने ढीले चश्मे को सँभालकर अंग्रेजी में कहा, "मार-पीट से बदला लेने की बात सोचना मूर्खता है। यदि हम ऐसा करेंगे तो शरारत करने वालों की और अंग्रेज सरकार की मंशा पूरी करेंगे। जिस भीड़ ने पार्टी पर हमला किया, उसमें सभी तरह के आदमी थे। कौन कह सकता है इस अवसर से लाभ उठाने के लिए मजदूर श्रेणी के विरोधियों ने ही इस उत्पात को विकट रूप न दिया हो? हमें खुद जाहिल नहीं बनना, जाहिलों की आँख खोलनी है।" उँगली उठाकर हारे ने पूछा, "अगर हम बदला लेंगे तो क्या होगा ? होगा यह कि कांग्रेस वाले हमसे बदला लेंगे और हम फिर उनसे बदला लेंगे। 

अंग्रेजों की पुलिस हम लोगों में शान्ति स्थापित कराने आयेगी। पुलिस से कांग्रेस और हम दोनों ही मार खायेंगे! यही चाहते हो तुम ? तुम्हें अंग्रेजों की पुलिस पर कांग्रेस से ज्यादा विश्वास है? आज कांग्रेस और लीग बेवकूफी करके अंग्रेजों को पंच बना रहे हैं; वही बात हम करें? कांग्रेस है क्या ? कल हम-तुम कांग्रेस के मेम्बर थे। हमारे मेम्बरी के प्रतिज्ञा पत्र में कांग्रेस मेम्बर होना जरूरी शर्त थी। जितने कांग्रेस मेम्बर हमने बनाए हैं, किसी दूसरी कांग्रेस पार्टी ने नहीं बनाए। हम कांग्रेस को समझा सकते हैं, उसे तोड़ नहीं सकते।" गीता और उसकी तरह सोचने वाले कामरेडों पर ठंडा पानी पड़ गया। 

प्रान्तीय सेक्रेटरी ने उठकर अपने वक्तव्य में प्रेस को फिर जल्दी से जल्दी ठीक करने के लिए फंड के लिए अपील की। कितने ही साथी मेम्बरों ने अपना एक-एक मास का पूरा वेतन दे दिया। कई मजदूरों ने महीने-भर की मजदूरी देने का वायदा किया और कई साथियों ने अपने पास से रकमें दीं। गीता के पास रुपया न था। उसने गले से लाकेट उतारकर दे दिया। दूसरी लड़की ने चूड़ियाँ दे दीं। पद्मा मालेकर ने अपना एकमात्र शेष जेवर, सुहाग की कंठी उतार दी। सेक्रेटरी को संतोष नहीं हुआ। उसने कहा, "यह सब आपका अपना रुपया है। यह दे देना कोई बात नहीं। यह बताइए, आप जनता से माँगकर क्या लायेंगे? जनता को कैसे समझायेंगे कि यह आपस में सिर फोड़ने की नीति स्वतन्त्रता और देशभक्ति का मार्ग नहीं, गुलामी और देशद्रोह का मार्ग है? पार्टी के प्रति जनता का भ्रम आप कैसे दूर करेंगे?" साथियों ने रकमें बोलनी शुरू की। 

गीता ने दो सौ रुपया इकट्ठा करने के प्रण के साथ भविष्य में सम्पूर्ण समय पार्टी के काम में देने का वायदा किया। एक घण्टे में साढ़े छः हजार। प्रान्तीय सेक्रेटरी ने सूची पढ़कर सुनाई और फिर गम्भीरता से कहा, "साढ़े छः हजार रुपया कुछ भी नहीं है, परन्तु मुझे संतोष है कि इन तीन सौ की भीड़ में अधिकांश मजदूर, विद्यार्थी और पूरा समय पार्टी को देने वाले लोग हैं, जिनके पास आमदनी का कोई साधन नहीं है। यहाँ सम्भवतः दो-चार को छोड़कर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो तीन सौ रुपया माहवार भी कमाता हो। फिर भी हम साढ़े छः हजार वायदों और नकद के रूप में इकट्ठा कर सके हैं यह हमारे साथियों के दृढ़ निश्चय का प्रमाण है।" 

सेक्रेटरी ने गीता का लाकेट, अनीमा की चूड़ियाँ, मोजीवाला के कान के काँटे और प‌द्मा की कण्ठी हाथ में लेकर पूछा, "गर्ल्स कामरेड्स, ये गहने आपने दिये हैं। आप घर जाकर क्या उत्तर देंगी ?" अनीमा ने उत्तर दिया, "कह दूँगी खो गये।" गीता ने उत्तर दिया, "मैं कह दूँगी पार्टी को दे दिया है। जो होगा देखा जायेगा।" मोजीवाला मे भी गीता का समर्थन किया। सेक्रेटरी ने अनीमा की चूड़ियाँ लौटाने के लिये उसकी ओर बढ़ा दीं, "अगर तुम्हें घर में सच बोलने का साहस नहीं है तो ये चूड़ियाँ हम नहीं लेंगे।" अनीमा का चेहरा लाल हो गया। उसने खड़ी होकर कहा, "मैं घर में ठीक बात कह दूँगी।" और बैठ गई। सब साथी खड़े हो गये और मुट्ठियाँ तानकर अनेक प्रकार के पुरुष और कोमल स्वरों से योग के, कम्युनिस्टों का अन्तर्राष्ट्रीय गीत गाया - उठ जाग ऐ भूखे बन्दी, अब खींचो लाल तलवार कब तक सहोगे भाई, जालिम का अत्याचार तुम्हारे रक्त से रंजित क्रन्दन, अव दस दिश लाया रंग ये सौ बरस के बन्धन, एक साथ करेंगे भंग यह अंतिम जंग है, जिसको जीतेंगे हम एक साथ गाओ इंटरनेशनल अब स्वतन्त्रता का गान। 

पुत्तूलाल, अशफाक पंजाबी, रेवती और सुकुल को अपनी मोटर में लेकर भावरिया घुड़दौड़ से लौट रहा था। भावरिया ने दाँव जीता था इसलिये विरेंशीरोल बार में रुककर उन लोगों ने एक-एक पेग ह्विस्की ली। उस जगह की चुप्पी और कायदा इन लोगों को भाया नहीं। "यार, यह भी क्या जगह है! ऐसा मालूम होता है जैसे हस्पताल में आ गये हों। न बातचीत न हू-हबक!" पुत्तूलाल बोला। "हाँ लाला," पंजाबी ने समर्थन किया, "शराब क्या है, जैसे दवाई पी रहे हों! सेठ, अपने को तो ठरें में ही मजा आता है।" आस्तीनें चढ़ाते हुए उसने कहा, "असली चीज तो है, गाँव की खिंची हुई... क्या कहने ! क्यों पंडित ?" भवें टेढ़ी कर उसने सुकुल को संबोधन किया। रेवती को चौपाटी के समीप काम था, इसलिए वे लोग उधर ही चले। प्रसंग था कि भावरिया की जीत मानने के लिये क्या शुगल हो। "यारो, फिल्म ही देख डालो!" पंजाबी ने प्रस्ताव किया। "अमा यार छोड़ो भी!" सुकुल ने टोक दिया। "मुजरा देखा जाए।" भावरिया मे सुझाया। (गीता-यशपाल)



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सोमवार, 24 मार्च 2025

कब-कब न्याय की कुर्सी पर लगे दाग: भारत में जजों पर भ्रष्टाचार के 5 बड़े मामले, जानिए यहां

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला पिछले हफ्ते तब चर्चा में आया, जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई। सूत्रों के अनुसार, जस्टिस वर्मा उस समय शहर से बाहर थे, और उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया. आग बुझाने के बाद दमकल कर्मियों को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली.

भारत में 75 साल के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं जब  न्यायपालिका पर  भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना ने एक बार फिर इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया. आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड को उनके घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की खबर ने देश भर में हंगामा मचा दिया. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला लिया, और अब मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उनके खिलाफ जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठन की है. यह पहला मौका नहीं है जब जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. आइए जानते हैं ऐसे कुछ 5 मामलों के बारे में जिसमें जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. 

  • पहला उदाहरण 2009 का है, जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस निर्मल यादव पर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा. इस मामले में एक वकील ने दावा किया कि उसने गलती से रिश्वत की राशि गलत जज के घर भेज दी थी, जिसके बाद यह घोटाला उजागर हुआ.
  • मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरण पर तमिलनाडु में अवैध जमीन अर्जन और संपत्ति संचय के आरोप लगे. उनके खिलाफ 16 शिकायतें दर्ज की गईं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति रोक दी. जांच के दबाव में उन्होंने 2011 में इस्तीफा दे दिया था.
  • तीसरा उदाहरण 2017 का है, जब कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सी.एस. कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के कई जजों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए. उनके खिलाफ अवमानना का मामला चला, और उन्हें छह महीने की जेल हुई. 
  • चौथा मामला 2018 का है, जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर मनमाने ढंग से केस बांटने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अभूतपूर्व घटना थी. 
  • पांचवां उदाहरण 2021 का है, जब बॉम्बे हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज पर रिश्वत लेकर फैसले देने के आरोप लगे, हालांकि यह मामला जांच के अभाव में ठंडे बस्ते में चला गया. 

जस्टिस वर्मा केस ने इन पुराने घावों को फिर से कुरेद दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायपालिका में जवाबदेही की कमी और पारदर्शिता का अभाव इन समस्याओं को बढ़ावा देता है. जजों के खिलाफ महाभियोग ही एकमात्र संवैधानिक उपाय है, लेकिन अब तक इसका सफल इस्तेमाल नहीं हुआ. 

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला पिछले हफ्ते तब चर्चा में आया, जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई। सूत्रों के अनुसार, जस्टिस वर्मा उस समय शहर से बाहर थे, और उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया. आग बुझाने के बाद दमकल कर्मियों को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली.

'अधजली नोटों की गड्डियां मेरी नहीं...'
न्यायाधीश यशवंत वर्मा का कहना है कि जिस कमरे में नोटों की गड्डियां मिलीं, वह उनके मुख्य आवास से अलग है और कई लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय को नकदी की कथित बरामदगी पर एक लंबे जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि 14 मार्च की देर रात होली के दिन दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास के स्टाफ क्वार्टर के पास स्थित स्टोर रूम में आग लग गई थी. न्यायाधीश ने लिखा, 'इस कमरे का इस्तेमाल आम तौर पर सभी लोग पुराने फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, इस्तेमाल किए गए कालीन, पुराने स्पीकर, बागवानी के उपकरण और सीपीडब्ल्यूडी (केंद्रीय लोक निर्माण विभाग) की सामग्री जैसे सामान रखने के लिए करते थे. यह कमरा खुला है और सामने के गेट के साथ-साथ स्टाफ क्वार्टर के पिछले दरवाजे से भी इसमें प्रवेश किया जा सकता है. यह मुख्य आवास से अलग है और निश्चित रूप से मेरे घर का कमरा नहीं है, जैसा कि बताया जा रहा है.'

साभार- एनडीटीवी

समाज की बात Samaj Ki Baat 

कृष्णधर शर्मा 

 


खेती-बाड़ी से जुड़ी 5 नई तकनीक, जो बदल सकती हैं भारतीय कृषि की दशा

 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र को सबसे प्रमुख माना जाता है. भारत गेहूं, चावल, दालें, मसालों समेत कई उत्पादों में सबसे बड़ा उत्पादक देश है. हमारे देश के कृषि क्षेत्र में सुधार और ग्रामीण विकास के लिए कई नई पहल की जा रही हैं.कृषि में सुधार लाने में कई क्षेत्रों का अहम योगदान रहता है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है! 

कृषि की नई तकनीक:- 

1 . जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) 

2 . नैनो विज्ञान (Nanoscience) 

3 भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Geospatial Technology) 

4 . बिग डेटा (Big Data) 

5 . ड्रोन्स (Drones) 

जैव प्रौद्योगिकी:- जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) नई तकनीक नहीं है, लेकिन यह एक आवश्यक जरूरी उपकरण है. यह तकनीक किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों का उपयोग करके कम क्षेत्र पर अधिक भोजन पैदा करने की शक्ति प्रदान करता है, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं. इस तकनीक के उपयोग से पौधों और पशु-निर्मित अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है, जो खाद्य पदार्थों की पौष्टिक सामग्री में सुधार कर सकती है! 

नैनो विज्ञान:- कृषि क्षेत्र की कुछ तकनीक के तहत रसायनों का व्यापक उपयोग किया जाता है, जिससे पर्यावरण के लिए कम हानि पहुंचती है. नैनो तकनीक (Nano science) इन पदार्थों को अधिक उत्पादक बनाने में मदद करती है. इस तकनीक को छोटे सेंसर और निगरानी उपकरणों के रूप में लागू किया जाता है, जिससे फसल की अच्छी वृद्धि होती है. यह एक उभरती हुई तकनीक है, जो उन समस्याओं को हल निकालती है! 

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:- अगर किसान भाई फसल में अपने क्षेत्र में सबसे उपयुक्त उर्वरक और सामग्री का सही अनुपात में प्रयोग करते हैं, तो इससे फसल का उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है. बता दें कि हर क्षेत्र में मिट्टी आनुवंशिक रूप से परिवर्तनीय होती है. ऐसे में हर जगह के लिए कोई विशेष उर्वरक काम नहीं करता है!  इसके साथ ही उर्वरक बहुत महंगा है, इसलिए इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. तो भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Eospatial Technology) द्वारा सही उर्वरक और उसके सही अनुपात को निर्धारित किया जाता है. भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी तकनीक से बड़े पैमाने पर खेती को प्रभावी ढंग से किया जा सकता है. खेती के आवश्यक कारकों के आधार पर फसल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. जैसे कि... pH दरें कीट प्रकोप पोषक तत्व उपलब्धता फसल विशेषताओं मौसम की भविष्यवाणियां। 

बिग डेटा:- मौजूदा समय में बिग डेटा (Big Data) से स्मार्ट खेती की जा सकती है. इसकी मदद से किसानों की निर्णय लेने की क्षमता में सुधार हो सकता हैं. इसका विचार कृषि क्षेत्र में संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देना है! बता दें कि भारतीय बाजार में नए डेटा संग्रह उपकरणों को लगातार पेश किया जा रहा है. सार्वभौमिक सेंसर सिस्टम का उपयोग आईओटी के आधार पर विभिन्न स्रोतों से डेटा एकत्र करने में किया जाता है. जैसे, किसानों को नमी परिशुद्धता सेंसर सुनिश्चित करता है कि फसलों को किसी पोषक तत्वों की जरूरत है! 

ड्रोन्स:- भारत कृषि में अग्रणी है, इसलिए इसे ड्रोन को अपनाने की आवश्यकता है. इसका उपयोग कृषि में कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. जैसे, इसकी मदद से कई कार्यों की निगरानी की जा सकती है. इसके जरिए किसान कम लागत और समय में फसल की अच्छी और ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. किसान भाई उन्नत सेंसर और डिजिटल इमेजिंग क्षमताओं के साथ ड्रोन का उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही ड्रोन मिट्टी की उच्च गुणवत्ता वाली 3-डी छवियों को कैप्चर करने में सक्षम है. इसके अलावा फसल स्प्रेइंग, फसल निगरानी, रोपण और फंगल संक्रमण के स्वास्थ्य का विश्लेषण करने में ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग सिंचाई में भी किया जा सकता है, क्योंकि यह खेतों को ट्रैक कर सकता है! 

साभार :- Agrostar

समाज की बात Samaj Ki Baat 

कृष्णधर शर्मा