नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 24 मार्च 2025

कब-कब न्याय की कुर्सी पर लगे दाग: भारत में जजों पर भ्रष्टाचार के 5 बड़े मामले, जानिए यहां

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला पिछले हफ्ते तब चर्चा में आया, जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई। सूत्रों के अनुसार, जस्टिस वर्मा उस समय शहर से बाहर थे, और उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया. आग बुझाने के बाद दमकल कर्मियों को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली.

भारत में 75 साल के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं जब  न्यायपालिका पर  भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना ने एक बार फिर इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया. आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड को उनके घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की खबर ने देश भर में हंगामा मचा दिया. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला लिया, और अब मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उनके खिलाफ जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठन की है. यह पहला मौका नहीं है जब जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. आइए जानते हैं ऐसे कुछ 5 मामलों के बारे में जिसमें जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. 

  • पहला उदाहरण 2009 का है, जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस निर्मल यादव पर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा. इस मामले में एक वकील ने दावा किया कि उसने गलती से रिश्वत की राशि गलत जज के घर भेज दी थी, जिसके बाद यह घोटाला उजागर हुआ.
  • मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरण पर तमिलनाडु में अवैध जमीन अर्जन और संपत्ति संचय के आरोप लगे. उनके खिलाफ 16 शिकायतें दर्ज की गईं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति रोक दी. जांच के दबाव में उन्होंने 2011 में इस्तीफा दे दिया था.
  • तीसरा उदाहरण 2017 का है, जब कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सी.एस. कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के कई जजों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए. उनके खिलाफ अवमानना का मामला चला, और उन्हें छह महीने की जेल हुई. 
  • चौथा मामला 2018 का है, जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर मनमाने ढंग से केस बांटने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अभूतपूर्व घटना थी. 
  • पांचवां उदाहरण 2021 का है, जब बॉम्बे हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज पर रिश्वत लेकर फैसले देने के आरोप लगे, हालांकि यह मामला जांच के अभाव में ठंडे बस्ते में चला गया. 

जस्टिस वर्मा केस ने इन पुराने घावों को फिर से कुरेद दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायपालिका में जवाबदेही की कमी और पारदर्शिता का अभाव इन समस्याओं को बढ़ावा देता है. जजों के खिलाफ महाभियोग ही एकमात्र संवैधानिक उपाय है, लेकिन अब तक इसका सफल इस्तेमाल नहीं हुआ. 

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला पिछले हफ्ते तब चर्चा में आया, जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई। सूत्रों के अनुसार, जस्टिस वर्मा उस समय शहर से बाहर थे, और उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया. आग बुझाने के बाद दमकल कर्मियों को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली.

'अधजली नोटों की गड्डियां मेरी नहीं...'
न्यायाधीश यशवंत वर्मा का कहना है कि जिस कमरे में नोटों की गड्डियां मिलीं, वह उनके मुख्य आवास से अलग है और कई लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय को नकदी की कथित बरामदगी पर एक लंबे जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि 14 मार्च की देर रात होली के दिन दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास के स्टाफ क्वार्टर के पास स्थित स्टोर रूम में आग लग गई थी. न्यायाधीश ने लिखा, 'इस कमरे का इस्तेमाल आम तौर पर सभी लोग पुराने फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, इस्तेमाल किए गए कालीन, पुराने स्पीकर, बागवानी के उपकरण और सीपीडब्ल्यूडी (केंद्रीय लोक निर्माण विभाग) की सामग्री जैसे सामान रखने के लिए करते थे. यह कमरा खुला है और सामने के गेट के साथ-साथ स्टाफ क्वार्टर के पिछले दरवाजे से भी इसमें प्रवेश किया जा सकता है. यह मुख्य आवास से अलग है और निश्चित रूप से मेरे घर का कमरा नहीं है, जैसा कि बताया जा रहा है.'

साभार- एनडीटीवी

समाज की बात Samaj Ki Baat 

कृष्णधर शर्मा 

 


खेती-बाड़ी से जुड़ी 5 नई तकनीक, जो बदल सकती हैं भारतीय कृषि की दशा

 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र को सबसे प्रमुख माना जाता है. भारत गेहूं, चावल, दालें, मसालों समेत कई उत्पादों में सबसे बड़ा उत्पादक देश है. हमारे देश के कृषि क्षेत्र में सुधार और ग्रामीण विकास के लिए कई नई पहल की जा रही हैं.कृषि में सुधार लाने में कई क्षेत्रों का अहम योगदान रहता है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है! 

कृषि की नई तकनीक:- 

1 . जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) 

2 . नैनो विज्ञान (Nanoscience) 

3 भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Geospatial Technology) 

4 . बिग डेटा (Big Data) 

5 . ड्रोन्स (Drones) 

जैव प्रौद्योगिकी:- जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) नई तकनीक नहीं है, लेकिन यह एक आवश्यक जरूरी उपकरण है. यह तकनीक किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों का उपयोग करके कम क्षेत्र पर अधिक भोजन पैदा करने की शक्ति प्रदान करता है, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं. इस तकनीक के उपयोग से पौधों और पशु-निर्मित अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है, जो खाद्य पदार्थों की पौष्टिक सामग्री में सुधार कर सकती है! 

नैनो विज्ञान:- कृषि क्षेत्र की कुछ तकनीक के तहत रसायनों का व्यापक उपयोग किया जाता है, जिससे पर्यावरण के लिए कम हानि पहुंचती है. नैनो तकनीक (Nano science) इन पदार्थों को अधिक उत्पादक बनाने में मदद करती है. इस तकनीक को छोटे सेंसर और निगरानी उपकरणों के रूप में लागू किया जाता है, जिससे फसल की अच्छी वृद्धि होती है. यह एक उभरती हुई तकनीक है, जो उन समस्याओं को हल निकालती है! 

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:- अगर किसान भाई फसल में अपने क्षेत्र में सबसे उपयुक्त उर्वरक और सामग्री का सही अनुपात में प्रयोग करते हैं, तो इससे फसल का उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है. बता दें कि हर क्षेत्र में मिट्टी आनुवंशिक रूप से परिवर्तनीय होती है. ऐसे में हर जगह के लिए कोई विशेष उर्वरक काम नहीं करता है!  इसके साथ ही उर्वरक बहुत महंगा है, इसलिए इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. तो भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Eospatial Technology) द्वारा सही उर्वरक और उसके सही अनुपात को निर्धारित किया जाता है. भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी तकनीक से बड़े पैमाने पर खेती को प्रभावी ढंग से किया जा सकता है. खेती के आवश्यक कारकों के आधार पर फसल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. जैसे कि... pH दरें कीट प्रकोप पोषक तत्व उपलब्धता फसल विशेषताओं मौसम की भविष्यवाणियां। 

बिग डेटा:- मौजूदा समय में बिग डेटा (Big Data) से स्मार्ट खेती की जा सकती है. इसकी मदद से किसानों की निर्णय लेने की क्षमता में सुधार हो सकता हैं. इसका विचार कृषि क्षेत्र में संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देना है! बता दें कि भारतीय बाजार में नए डेटा संग्रह उपकरणों को लगातार पेश किया जा रहा है. सार्वभौमिक सेंसर सिस्टम का उपयोग आईओटी के आधार पर विभिन्न स्रोतों से डेटा एकत्र करने में किया जाता है. जैसे, किसानों को नमी परिशुद्धता सेंसर सुनिश्चित करता है कि फसलों को किसी पोषक तत्वों की जरूरत है! 

ड्रोन्स:- भारत कृषि में अग्रणी है, इसलिए इसे ड्रोन को अपनाने की आवश्यकता है. इसका उपयोग कृषि में कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. जैसे, इसकी मदद से कई कार्यों की निगरानी की जा सकती है. इसके जरिए किसान कम लागत और समय में फसल की अच्छी और ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. किसान भाई उन्नत सेंसर और डिजिटल इमेजिंग क्षमताओं के साथ ड्रोन का उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही ड्रोन मिट्टी की उच्च गुणवत्ता वाली 3-डी छवियों को कैप्चर करने में सक्षम है. इसके अलावा फसल स्प्रेइंग, फसल निगरानी, रोपण और फंगल संक्रमण के स्वास्थ्य का विश्लेषण करने में ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग सिंचाई में भी किया जा सकता है, क्योंकि यह खेतों को ट्रैक कर सकता है! 

साभार :- Agrostar

समाज की बात Samaj Ki Baat 

कृष्णधर शर्मा