नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 22 मार्च 2022

सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय रचनाएँ- सुभद्रा कुमारी चौहान

 उन्हें ख़्याल आया कि पहले जब अभी उनकी नींद रही होती, उन्हें गली में से एक भिखारी बाबा की आवाज़ सुन जाया करती थी-'उठ जाग मुसाफिर भोर हुई। अब रात कहाँ जो सोवत है।' वह उतनी सुरीली नहीं थी, जितनी सुबह उठते ही कानों में पड़नी चाहिए परन्तु इतनी फटी हुई, कर्कश अथवा चिल्लाहट भरी भी नहीं थी, जैसी भिखारी ध्यान खींचने और तरस का पात्र बनने के लिए बना लेते हैं.

 बहुत दिनों से उन्होंने इस आवाज़ को नहीं सुना था। कौन जानता है कब उस आवाज़ का दम टूट गया होगा। मर मरा गया होगा कहीं बस से टकराकर, गाड़ी के नीचे आकर या किसी बम विस्फोट में। आजकल हर क़दम पर जूते के नीचे कोई न कोई बम फटने का इन्तज़ार कर रहा होता है। और फिर ऐसे लोगों के मरने की ख़बर न तो आकाशवाणी से प्रसारित होती है, न कोई शोक पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने आता है। सर्वधर्म शान्ति पाठ भी नहीं होता। जिन्दा है तब भी आधे मुर्दों में शामिल। मर गए तो मर गए। (सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय रचनाएँ- सुभद्रा कुमारी चौहान)



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मंगलवार, 8 मार्च 2022

जलता हुआ गुलाब - तरसेम गुजराल

 पंजाब आग में जल रहा है। उन लोगों के मुनाफे बढ़ रहे हैं जिनके पास लम्बी बाँहें है, पैसा है, उन्होंने अपने व्यापार की शाखाएँ दिल्ली में भी मजबूत कर ली हैं। 'मोनिका सिल्क स्टोर' वालों की दिल्ली वाली दुकान भी अच्छी चलने लगी है। इधर हम हैं कि दिल्ली की दुकानों की पगड़ियाँ सुनकर हैरान हो रहे हैं, जैसे ट्रांजिस्टर समझकर हाथ में उठाया हो और वह बम की शक्ल में फट गया हो । मंगल अपना ठय्या दिल्ली ले जाने की स्थिति में नहीं था। इसलिए वह चाहता था कि हरियाणा में किसी जगह अपने पाँव जमा सके । 

घर छोड़ना आसान होता है क्या ? धरती के जिस टुकड़े ने आपको प्यार दिया हो, धरती के जिन लोगों के बीच आपकी दोस्तियाँ, मजाक और उद्गार पनपे हों, जिसके साथ आपकी तमाम छोटी-बड़ी सफलताएँ बिफलताएँ जुड़ी हों, वह धरती आपके तन-मन में खुशबू की तरह रच जाती है। आदमी यन्त्र नहीं हो जाता, न पत्थर ही कि सैंतीस साल तक विकसित होते रहे सम्बन्धों के एकदम पार चला जाए। मंगल के जहन में पंजाब छोड़ जाने की बात जोर तो मार रही थी लेकिन अपने शहर के बराबर उसे कोई दूसरा शहर जँचता भी नहीं था। (जलता हुआ गुलाब - तरसेम गुजराल)



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