नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 24 अप्रैल 2022

आत्महत्या नहीं है अवसाद व समस्याओं का हल, जीवन शैली में बदलाव करने से मिलेगा हल

 छात्रों द्वारा किसानों द्वारा प्रसिद्ध सितारों व उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की आत्महत्या की खबरें हमें इस विषय पर सोचने को मजबूर करती हैं।   

हाल के दिनों में कोविड-19 के कारण उपजी भयावह परिस्थितियों जैसे बेरोजगारी गरीबी अकेलापन घरों से बेघर होना आदि समस्याओं ने खुदकुशी की प्रवृत्तियों में इजाफा किया है। एनसीआरबी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बेहद चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। यह दुनिया में होने वाली मौतों का दसवां सबसे बड़ा कारण है हमारे देश में ही हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं।   

छात्रों द्वारा किसानों द्वारा प्रसिद्ध सितारों व उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा की गई आत्महत्या की खबरें हमें इस विषय पर सोचने को मजबूर कर देती हैं। आजकल की बढ़ती चकाचौंध की दुनिया हमें अकेलेपन का शिकार बना रही है। यही अकेलापन धीरे-धीरे अवसाद में तब्दील होकर आत्महत्या जैसे दुष्परिणाम ला रहा है। आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं जैसे तनावपूर्ण जीवनशैली मानसिक रोग घरेलू समस्याएं आदि।   हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है व सरकार का भी इस ओर कोई रुझान नहीं है। 

कई बार कुछ सामाजिक कारणों से भी व्यक्ति ऐसा कदम उठाता है जैसे क्लास में प्रथम ना आना, किसी प्रतिष्ठित पद की परीक्षा को पास न कर पाना, नौकरी ना मिल पाना आदि इस समस्या से निपटने के लिए हमें इसके मूल कारण जानकर उनका समाधान ढूंढना चाहिए।  

 हमें शारीरिक व मानसिक स्तर पर कुछ आदतों व जीवनशैली में बदलाव करने की भी आवश्यकता है, जैसे-व्यायाम ध्यान योग खेलकूद आदि करना पौष्टिक आहार लेना समय पर सोना व उठना। नशीले पदार्थों के सेवन से बचना हमेशा सकारात्मक रहना सोशल मीडिया का उपयोग एक सीमा तक करना आदि। टेक्नोलॉजी की इस दुनिया में हम अपने परिवार, दोस्तों व प्रकृति सभी से दूर होते जा रहे हैं। हमें समय निकालकर इनके साथ वक्त बिताना चाहिए अपनी बातों व परेशानियों को साझा करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर हमें मनोचिकित्सक की सलाह लेने से भी संकोच नहीं करना चाहिए तभी इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।  

अंकिता श्रीवास्तव  

साभार- नई दुनिया 

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