यद्यपि उत्तर काण्ड महर्षि वाल्मीकि का लिखा नहीं माना जाता है, परन्तु उसका एक प्रकरण सम्भवतः विश्व का पहला न्यायिक निर्णय हुआ। अयोध्या में विचरण के दौरान जब एक भिक्षुक ने कुत्ते को दण्डे से मारकर उसका सर फोड़ दिया तो राजा राम के दरबार में मुकदमा चला और भिक्षुक को कुत्ते को मारने के अपराध में दण्डित किया गया। प्रकरण जानवरों के भी जीवन जीने के अधिकार की रक्षा का संदेश देती है।
श्रीराम का बाली को वृक्ष की ओट से मारना आज के न्यायशास्त्र के अनुसार भी सही कदम था। यदि कानून और मूल्यों में कही संघर्ष हो तो कानून की स्थापना के लिए मूल्यों के साथ समझौता किया जा सकता है। श्रीराम ने वही किया और अनुज पत्नी को जबरदस्ती रखने के अपराध में बाली को मृत्यु दण्ड दिया।
आज जब हम प्राकृतिक न्याय की बात करते हैं कि हमें यह समझना चाहिए कि उसकी शुरूआत श्रीराम ने की। रावण से युद्ध के पूर्व सीता अपहरण के अपराध में दण्डित करने से पहले उन्होंने बाली पुत्र अंगद को भेजा। आज भी राजदूत को विशेषाधिकार मिलता है तथा उसे सामान्यतः किसी कार्य हेतु कोई राष्ट्र दण्डित नहीं कर सकता। रावण जैसे राक्षस वृत्त के व्यक्ति ने भी इस परम्परा का पालन किया और श्रीराम ने भी रावण के दूत शुक को छोड़ दिया था। आज जब धर्म, संप्रदाय एवं वैचारिक स्वतंत्रता के अधिकार के सम्बन्ध में विवाद चलता रहता है। वहीं त्रेता में जहाँ रावण स्वयं को राक्षसों का राजा कहता था. उसी की लंका में विभीषण स्वतंत्रता के साथ ईश्वर की आराधना, मन्त्रजाप, भजन करते थे और अयोध्या में दासी मंथरा तथा धोबी को भी विचार प्रकट का अधिकार था, चाहे गलत ही क्यों न हो। सम्भवतः कानून की व्याख्या सर्वप्रथम सीता जी ने की जब उन्होंने श्रीराम को याद दिलाया कि झूठ बोलना पाप है, परस्त्री से अनुचित सम्बन्ध महापाप है तथा बिना अपराध के दण्डित करना उससे भी बड़ा पाप है। सीता जी द्वारा कानून और धर्म की व्याख्या आज की न्यायिक व्यवस्था का विश्व में आधार बना हुआ है।
महर्षि वशिष्ट के यहां न भेज कर गर्भवती सीता को महर्षि वाल्मीकि के यहां भेज कर श्रीराम ने संदेश दिया कि चरित्रवान ज्ञानियों की कोई जाति नहीं होती है। चरित्रवान ज्ञानी व्यक्ति समाज में आदर के अधिकारी है। चाहे वह किसी भी जाति अथवा धर्म का हो। लोक निन्दा या जनधारणा के प्रति सचेत रहना किसी शासक के लिए कितना जरूरी है, यह श्रीराम के गर्भवती सीता के परित्याग से समझा जा सकता है।
(राम-राज्य: आधुनिक परिवेश में- न्यायमूर्ति देवीप्रसाद सिंह)
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