नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 17 मई 2009

ऐसे मिलेगा अच्छा जीवन

जर्मनी में एक बालक विलहेम पढ़ने से जी चुराता था। उसकी मां जब उसे स्कूल ले जाती तो वह नखरे करता। स्कूल में भी पढ़ता कम और शरारत ज्यादा करता रहता था। एक दिन स्कूल से लौटते हुए वह सड़क पर खेल रहे बच्चों को देखकर मां से बोला, 'आप मुझे स्कूल क्यों भेजती हैं? ये बच्चे भी तो बिना स्कूल गए ही बड़े हो रहे हैं। देखिए, ये कितने खुश हैं।'

मां चुपचाप सुनती रही। दूसरे दिन उसने विलहेम को घर के बाहर उग आए झाड़-झंखाड़ की ओर दिखाते हुए उससे पूछा,'बताओ बेटा, इन्हें किसने उगाया है?' विलहेम बोला, 'मां, ये तो खुद ही उग आते हैं और ओस, बारिश का पानी और सूरज की गर्मी पाकर बढ़ जाते हैं।' फिर मां ने घर में लगे गुलाब के पौधों को दिखाते हुए पूछा, 'और अब बताओ, ये फूल कैसे लग रहे हैं?' विलहेम ने जवाब दिया,'मां, ये तो बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। इन्हें तो पिताजी रोज तराशते हैं और नियम से खाद-पानी भी देते हैं।'

मां विलहेम से यही सुनना चाहती थी। उसने तपाक से कहा, ' बिल्कुल ठीक। ये फूल इसलिए ज्यादा सुंदर हैं क्योंकि इन्हें प्रयास करके ऐसा बनाया गया है। जीवन भी ऐसा ही है। हमें अच्छा जीवन प्रयासों से ही मिलता है। इसके लिए अच्छी शिक्षा, बेहतर प्रशिक्षण और परिश्रम की जरूरत पड़ती है। तुम में और उन स्कूल न जाने वाले बच्चों में क्या फर्क है, यह तुम्हें आगे चलकर पता चलेगा।' मां की यह सीख विलहेम ने गांठ बांध ली। आगे चलकर इन्हीं विलहेम ने एक्स-रे की खोज की और भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।

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