नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला

अब तक के सबसे बड़े 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर आई कैग की रिपोर्ट ने देश को हिलाकर रख दिया है। यूपीए केबिनेट में दूरसंचार मंत्री रहे ए. राजा ने सरकार को तकरीबन पौने दो लाख करोड़ रूपए का चूना लगाया। जिसके चलते उन्हें अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ी।

इस घोटाले में कई नामचीन हस्तियों के नाम सामने आने से खलबली मचना स्वाभाविक था। कॉर्पोरेट घरानों के लिए लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया की राजनीतिक हस्तियों के अलावा प्रमुख उद्योपतियों और पत्रकारों के साथ हुई बातचीत के टेप लीक होने के बाद उठा तूफान अभी भी नहीं थमा है। इसमें घोटाले के मुख्य आरोपी ए. राजा, लॉबिस्ट नीरा राडिया और मीडिया की मिलीभगत की घिनौनी तस्वीर सामने आई। कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया जनसंपर्क की दुनिया की बड़ी हस्ती हैं। जो एक तरफ टाटा समूह के लिए काम करती हैं, तो दूसरी तरफ रिलायंस समूह के लिए भी। बताया जा रहा है कि राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने में भी राडिया का योगदान रहा।

राडिया राजा की करीबी थीं और तीन टेलीकॉम ऑपरेटरों यूनिटेक, स्वान और डाटाकॉम को 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिलवाने के प्रयास में लगी थीं। जारी लाइसेंसों में राजा की भी हिस्सेदारी है। राडिया और कनिमोझी (करूणानिधि की बेटी) ने पत्रकार वीर संघवी और बरखा दत्त के मार्फत राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए बातचीत की।

दूसरी ओर, 2-जी घोटाले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराए जाने की मांग को लेकर विपक्षी दलों के हंगामे के कारण संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही एक भी दिन सुचारू रूप से नहीं चल सकी। हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई और ईडी को मामले की जांच वर्ष 2001 से किए जाने का आदेश देने से एनडीए को तगड़ा झटका लगा है। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी।


क्या है स्पेक्ट्रम
2-जी यानी सेकेण्ड जनरेशन वायरलैस टेलीफोन टेक्नोलॉजी। 1991 में पहली बार फिनलैण्ड में रेडियोलिंजा कम्पनी की ओर से जीएसएम मोबाइल सर्विस में लॉंच की गई। डाटा ट्रांसफरिंग, टेक्स विद रेडियो सिग्नल्स आदि सुविधाएं इसमें दी गर्ई।

कैग के आरोप
नियमों को धता बताकर 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया, जो कि उसकी वास्तविक कीमत से बहुत कम था। वर्ष 2008 में 2001 की कीमतों के आधार पर आवंटन किया गया। कैग के मुताबिक यदि नियमों का पालन किया जाता, तो सरकार को हजारों करोड़ का मुनाफा हो सकता था।

यूएएस लाइसेंसों का आवंटन भी मनमाने तरीके से 2001 के बाजार मूल्यों के आधार पर किया गया। जबकि, 3 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से सरकार को 68 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का मुनाफा हुआ।

2 जी आवंटन की प्रक्रिया निराधार थी। खुद विभाग ने आवंटन में अपनी गाइडलाइन को नजरअंदाज किया। आवंटन तिथि अपने हिसाब से तय की गई। पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर आवंटन हुआ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सलाह भी दरकिनार की गई। 122 में 85 अयोग्य कंपनियों को लाइसेंस बांटे गए।

कैसे चला घटनाक्रम
2 जी स्पेक्ट्रम में घोटाले का मामला वर्ष 2008 में तब सामने आया, जब सरकार पर 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर आवंटन शुरू किया। ए. राजा पर आरोप लगे कि उन्होंने 2001 की कीमतों के आधार पर 2 जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस कम्पनियों को बांटे। ऑल इण्डिया लाइसेंस की कीमत 1658 करोड़ रू. तय की। वो भी 4.4 मेगाहर्ट्ज के लिए।

- कम्पनियों को जारी लाइसेंस में घपला तब पकड़ा गया, जब लाइसेंस जमा करने और उसकी कीमत अदा करने की तिथि में मनमाना रवैया अपनाया गया।

- अक्टूबर 2009 में सीबीआई ने 2 जी स्पेक्ट्रम मामले पर पहली बार केस दायर किया।

- 9 नवम्बर 2010 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने जांच रिपोर्ट में पाया कि राजा दोषी हैं, उन्होंने कुछ चुनिंदा ऑपरेटरों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को 1.76 लाख करोड़ का चूना लगाया।

- 14 नवम्बर को राजा ने देर रात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस्तीफा सौंपा।

- 8 दिसंबर को सीबीआई ने राजा के घर पर छापा मारा। छापे में कई अहम दस्तावेज मिले। राजा की एक डायरी भी बरामद हुई जिसमें वर्ष 2003 से 2010 के बीच हुए घटनाक्रम का विस्तृत ब्यौरा है।


तीन तरह से हुआ खुलासा
पहला, जनवरी 2008 में लाइसेंस जारी होने से पहले आवेदक कंपनियों में से एक एसटेल ने राजा को ऑल इंडिया लाइसेंस के लिए 13621 करोड़ रूपए का प्रस्ताव दिया था, जिसे राजा मात्र 1658 करोड़ में बेच रहे थे। मतलब इस लाइसेंस से सरकार को नौ गुना ज्यादा राशि मिल सकती थी। जब इस कंपनी का प्रस्ताव खारिज हो गया, तो कंपनी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। राजा के मंत्रालय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, तब तक दबाव के कारण एसटेल के मालिक पीछे हट गए, लेकिन उन्होंने बिगुल तो बजा ही दिया था। इसी कंपनी के प्रस्ताव के आधार पर कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार को 67300 करोड़ रूपए के घाटे का अनुमान लगाया।

दूसरा, दो कंपनियां, जिन्हें "पहले आओ-पहले पाओ" के आधार पर लाइसेंस मिला था, उन्होंने अपने लाइसेंस के ज्यादातर शेयर को काफी ऊंचे दामों पर बेच दिया। लाइसेंस के लिए जो राशि इन कंपनियों ने चुकाई थी, उससे कई गुना ज्यादा कमाई शेयर बेचकर इन कंपनियों ने की। उदाहरण के लिए यूनिटेक ने लाइसेंस शुल्क के रूप में सरकार को 1658 करोड़ रूपए चुकाए थे, लाइसेंस का 67 प्रतिशत हिस्सा कंपनी ने 6120 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब, कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का कुल मूल्य 9100 करोड़ रूपए था। दूसरी कंपनी स्वान ने लाइसेंस के लिए 1537 करोड़ रूपए अदा किए थे और लाइसेंस का 44.7 प्रतिशत हिस्सा 3217 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब हुआ कि कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का मूल्य 7192 करोड़ रूपए था। एसटेल ने 25 करोड़ रूपए का छोटा लाइसेंस खरीदा था, उसने लाइसेंस का 5.61 प्रतिशत हिस्सा बेचा, तो उसे 238.5 करोड़ रूपए प्राप्त हुए, इसका मतलब उसके लाइसेंस का वास्तविक मूल्य 4251 करोड़ रूपए था। इन आंकड़ों के आधार पर कैग ने आकलन किया कि लाइसेंस के वितरण में सरकार को 57600 करोड़ रूपए से 69300 करोड़ रूपए के बीच नुकसान हुआ।

तीसरा, 3 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से सरकार को जो भारी फायदा हुआ, उससे भी कैग ने बिना निविदा के 2 जी के आवंटन में 1,76,645 करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया। यह इतनी बड़ी राशि है कि घोटाले से उठ रही सड़ांध असहनीय हो गई। संसद के शीतकालीन अधिवेशन से पहले यह सब सामने आ गया, तो विपक्ष को हमले का पूरा मौका मिल गया, विपक्ष ने हमला किया और अब संसद निष्क्रिय हो गई है।

राजा, राडिया, मीडिया की तिकड़ी
2जी की कहानी मसालेदार भी है और गंभीर भी। इसमें घोटाले के मुख्य आरोपी राजा, कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया और मीडिया की मिलीभगत की घिनौनी तस्वीर सामने आई। आयकर विभाग ने वैध रूप से नीरा राडिया की फोन लाइनों को टेप किया है। कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया जनसंपर्क की दुनिया की बड़ी हस्ती हैं। जो एक तरफ टाटा समूह के लिए काम करती हैं, तो दूसरी तरफ रिलायंस समूह के लिए भी। उनकी नौ फोन लाइनों को 180 दिनों तक टेप किया गया। सीबीआई के निवेदन पर आयकर विभाग ने रिकॉर्डिग्स का एक हिस्सा उसे दिया है। जिससे कई राजनेता, उद्योगपति और मीडिया के सितारे सरेआम हो गए हैं। राडिया की कुल 5400 फोन वार्ताएं रिकॉर्ड हुई हैं, जिनमें से केवल 102 वार्ताएं नेट पर उपलब्ध हैं, जिनमें से केवल 23 को लिखा व प्रकाशित किया गया है। अनुमान लगाया जा सकता है कि कई बम अभी छिपे हुए हैं। आयकर विभाग द्वारा सीबीआई को दी गई जानकारी के अनुसार, नीरा राडिया राजा की करीबी थीं और तीन टेलीकॉम ऑपरेटरों यूनिटेक, स्वान और डाटाकॉम को 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिलवाने के प्रयास में लगी थीं। जारी लाइसेंसों में राजा की भी हिस्सेदारी है। राडिया और कनिमोझी (करूणानिधि की बेटी) ने वीर संघवी और बरखा दत्त के मार्फत राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए बातचीत की। राडिया तब राजाथी अम्मा (करूणानिधि की दूसरी पत्नी व कनिमोझी की मां) के ऑडिटर की भी करीबी थीं। राडिया दूरसंचार कंपनियों द्वारा की जा रही लाइसेंस की बिक्री में भी सलाह दे रही थीं। यह एक शर्मनाक पहलू है, जिसकी पूरी सूचनाएं सामने नहीं आई हैं। टेप फोन वार्ताओं से पता चलता है कि राडिया ने ही राजा को 24 मई 2009 को फोन करके सबसे पहले दूरसंचार मंत्री बनाए जाने की सूचना दी थी। टेपों से पता चलता है कि दयानिधि मारन केन्द्रीय कैबिनेट में जगह पाने के लिए किस तरह प्रयासरत थे। वे करूणानिधि के रिश्तेदारों के जरिये दबाव बना रहे थे। इतना ही नहीं, राडिया बताती हैं, मारन ने मंत्री बनने के लिए करूणानिधि की एक पत्नी (स्टालिन की मां) को 600 करोड़ रूपए दिए।

स्वामी ने उठाया राजा की गिरफ्तारी का मुद्दा
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निर्देश देने का अनुरोध किया। स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में इस बाबत दायर उनकी याचिका पिछले माह निरस्त किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। स्वामी ने याचिका में दलील दी कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कोई मंत्री न तो अपने उत्तरदायित्व से मुकर सकता है और न ही सरकार की अनुमति के अभाव में मुकदमे का सामना करने से बच सकता है। सार्वजनिक सेवा से जुडे लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेने का प्रावधान सिर्फ उन्हें कर्तव्यों के निर्वहन में अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने के लिए किया गया, न कि उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त होने की स्थिति में बचाने के लिए। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने संबंधी एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिस पर पिछले दिनों न्यायाधीश जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार, राजा और सीबीआई को नोटिस जारी करके दस दिन में जवाब तलब किया था।

राजा की सफाई
ट्राई की सिफारिश के आधार पर ही स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया था। मैंने हमेशा प्रधानमंत्री की सहमति से काम किया है। मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। मैं इस्तीफा नहीं दूंगा।

जांच की आंच करूणानिधि तक
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच की आंच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री व द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि तक पहुंच गई है। सीबीआई ने बुधवार को घोटाले के संबंध में करूणानिधि की पत्नी राजती के ऑडिटर, बेटी व सांसद कनिमोझी से जुड़े एनजीओ तमिल मैयम, कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया, ट्राई के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बैजल, पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के रिश्तेदारों के आवास सहित 34 ठिकानों पर छापे मारे। सीबीआई के एक अधिकारी ने दावा किया कि तमिलनाडु के 27 और दिल्ली तथा नोएडा के सात स्थानों पर छापे के दौरान कुछ ऎसे दस्तावेज मिले हैं, जिनके आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया जा सकता है।

कनिमोझी के एनजीओ पर छापे
चेन्नई में तमिल पत्रिका "नक्कीरन" के एसोसिएट एडिटर कामराज, तिरूचिरापल्ली के निकट राजा के भाई तथा बहन के परिसर और करूणानिधि की बेटी कनिमोझी से जुड़े एनजीओ "तमिल मैयम" के परिसर पर भी कार्रवाई हुई।

राजा के करीबी कामराज पर स्पेक्ट्रम आवंटन में कई कंपनियों को बड़ा लाभ पहुंचाने के आरोप हैं। जांच एजेंसी ने राजा के ऑडिटर सुब्रमण्यम के परिसर पर भी छापे मारे। तिरूचिरापल्ली में सीबीआई ने निजी टीवी चैनल के रिपोर्टर जी. एल नरसिंहन के आवास पर छापा मारा। उन्हें राजा का करीबी माना जाता है।

बैंकों की भूमिका भी शक के घेरे में
सरकारी बैंकों की भूमिका पर सवालिया निशान खडे करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई कि संबंधित घोटाले के सिलसिले में अक्टूबर 2009 में मुकदमा दर्ज होने के बावजूद बैंकों ने 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसी चार कम्पनियों को 10 हजार करोड़ रूपए का कर्ज बेझिझक दे दिया। बैंकों ने करोड़ों रूपए के ऋण ऎसे बांटे मानों मामूली रकम हो। सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए। सीबीआई के वकील ने कहा कि यदि कोर्ट ऎसा चाहता है तो हम जांच को तैयार हैं। वह मामले को बैंक के धोखाधड़ी नियंत्रण प्रकोष्ठ के समक्ष ले जाएगी और जल्द ही रिपोर्ट सौंपेगी। भारतीय स्टेट बैंक ने लाइसेंस प्राप्त करने वाली यूनिटेक कंपनी को 2500 करोड़ रूपए उधार दिए।

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी जांच
ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को 2001 से 2008 अवधि की जांच करने का आदेश दिया है। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी। न्यायाधीश जीएस. सिंघवी व ए.के. गांगुली की पीठ ने हाल ही में कहा कि इन आरोपों में दम है कि स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी हुई है। ताजा आदेश के साथ ही राजग और संप्रग शासनकाल की दूरसंचार नीतियां जांच के दायरे में आ गई हैं। कोर्ट ने कहा कि घोटाले की जांच के लिए विशेष टीम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सरकार अदालत की निगरानी में जांच पर सहमत हो गई है जो सही दिशा में बढ़ रही है।

यह भी कहा कोर्ट ने
सीबीआई व ईडी 10 फरवरी 2011 तक बंद लिफाफे में जांच की प्रगति रिपोर्ट सौंपे।
याचियों के सीबीआई जांच के आग्रह को स्वीकार नहीं करने का दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था।
सीबीआई बताए कि ट्राई ने नाकाबिल लाइसेंसी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की?
जांच में यह मुद्दा शामिल होगा कि दूरसंचार अफसरों ने लाइसेंस समझौते पर दस्तखत किए थे या नहीं?
दोहरी प्रौद्योगिकी सीडीएमए व जीएसएम के हस्तांतरण की जांच हों।
एजेंसियां किसी व्यक्ति या उसके पद, के प्रभाव में आए बिना जांच करें।
आयकर निदेशालय गृह सचिव की ओर से सीबीआई को दिए आदेश के तहत टेप की बातचीत की नकल सौंपें।
स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता सम्बंधी आरोपों में पहली नजर में दम लगता है।
कैग रिपोर्ट से साफ है कि स्पेक्ट्रम आवंटन का लाइसेंस नाकाबिल कम्पनियों को दिए गए।
[साभार पत्रिका]

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