नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 11 जुलाई 2011

देश इस समय विक्षोभ की स्थिति से गुजर रहा है। बड़ी खलबली है। खलबली क्यों न हो।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल के दो मंत्री जेल में हों। एक कभी भी जेल में जाने की तैयारी में हो। दो मंत्रियों पर ऊंगली उठ रही हो तो देश शांत कैसे रह सकता है। लोग एक-दूसरे का मुँह जोह रहे हैं, उत्तर पाने कि ये क्या हो रहा है। प्रधानमंत्री ईमानदार हैं। ऐसी ईमानदारी कि घर का माल उनके सहयोगी उठाते चलें, ले जाएं और प्रधानमंत्री चुप रहे आएं। लगता है प्रधानमंत्री ने गोपनीयता की शपथ ली है, उसका पालन कर रहे हैं। न बोलने के प्रति प्रतिबध्द हैं। एक पहेली बुझाई जाती है, एक बड़े व्यापारी ने अपने घर की रखवाली के लिए एक चौकीदार रखा। एक रात व्यापारी ने चौकीदार से कहा कि मुझे सुबह जल्दी उठा देना, सुबह की ट्रेन से बाहर जाना है। चौकीदार ने व्यापारी को उठा दिया और बोला- सेठजी, आप इस गाड़ी से न जाएं। इस गाड़ी का आगे एक्सीडेंट हो जाएगा। रात मैंने सपने में ऐसा देखा है। व्यापारी ने यात्रा स्थगित कर दी। सही में उस ट्रेन का अगले स्टेशन से पहले एक्सीडेंट हो गया। व्यापारी ने अपने चौकीदार को ईनाम दिया और नौकरी से निकाल दिया। चौकीदार ने पूछा- ये क्या? व्यापारी ने कहा कि मेरी जान बचाई इसलिए ईनाम और नौकरी से इसलिए निकाल रहा हूँ कि तुम चौकीदार होकर सोते रहते हो। हमें सोने वाला नहीं जागनेवाला चौकीदार चाहिए। लोकजीवन की ऐसी पहेलियां, ऐसी कथाएं कई अर्थ खोलती हैं। प्रधानमंत्री हैं और उनकी ऑंख के सामने से चोर चोरी करते रहे। इस पर यह तर्क दिया जा रहा है कि गठबंधन सरकार की मजबूरियां होती हैं। लेकिन गठबंधन सरकार बचाना क्या देश बचाने से बड़ी मजबूरी हो जाती है। खजाना लुटता रहे, लेकिन गठबंधन सरकार कायम रहे। देश बड़ा है। देशहित बड़ा है। सरकार बचाना इस हित से बड़ा नहीं है। अजीब हालत बना दी कि कुछ  सहयोगी खाए जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं और प्रधानमंत्री बस देखे जा रहे हैं, देखे जा रहे हैं। सीधे बनकर सहानुभूति बटोरने से बेहतर होता कठोर बनकर कदम उठाना, भले सरकार की बलि चढ़ जाती।
प्रधानमंत्री का मौन दरअसल, उनके बड़े मकसद को पूरा करने के उद्देश्य से है। प्रधानमंत्री के मौन, ईमानदारी, सीधेपन पर पूरी चर्चा को केन्द्रित कर हम उनके सही एजेंडा से जनता का ध्यान बंटाने का काम भी जाने-अनजाने करते हैं। प्रधानमंत्री जानते हैं कि भ्रष्टाचार से सरकार बदनाम होती है। प्रधानमंत्री जानते हैं कि भ्रष्टाचार एक न एक दिन उजागर होगा क्योंकि सरकार की, संसद की इतनी एजेंसियां हैं, मीडिया का जोर है, विपक्ष जागरूक हैं। वे समझते हैं कि जो भ्रष्टाचार करेगा, वह नहीं बचेगा। विपक्ष छोड़ेगा नहीं और इतना जनदबाव बनेगा कि मंत्रिमंडल में जो भ्रष्ट है उसके खिलाफ कार्रवाई करनी ही होगी। इतना सब जानते हैं इसलिए वे चुप रहे। इसके कारण को समझना होगा। प्रमुख विपक्ष भाजपा उस कारण को उजागर नहीं करेगा क्योंकि भाजपा भी उन्हीं आर्थिक नीतियों पर चलने वाली पार्टी है जो नीतियां प्रधानमंत्री की हैं। इसलिए भाजपा भी प्रधानमंत्री के मौन रहने को ही मुद्दा बनाकर उछालती है।
प्रधानमंत्री ने कहा है, जब भी मीडिया में उनसे पूछा तब-तब कहा कि अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है। ये कौन-सा काम है जो खत्म नहीं हुआ है।  इस काम को, इस नीति को समझने की जरूरत है। उनका आशय है देश में पूरी तरह नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को लागू करा देना। अभी पूरी नीतियां पूरी तरह लागू नहीं हुईं। प्रधानमंत्री ने अपनी प्रथम यूपीए सरकार के अस्तित्व को संकट में डालकर अमरीका के साथ न्युक्लीयर डील किया। समझौता करके ही दम लिया, भले वाममोर्चा जो बाहर समर्थन कर रहा था उसकी बलि चढ़ा दी। और सरकार बचाने समाजवादी नेता अमरसिंह अमेरिका से (इलाज करा रहे थे) दिल्ली उड़ आए।  समाजवादी पार्टी ने सरकार बचा दी। प्रधानमंत्री जानते हैं उनका मूल उद्देश्य क्या है। उनकी नजर उद्देश्य पर है। अपने उद्देश्य के प्रति कटिबध्द हैं। अभी कई काम बचे हैं- देश में रिटेल व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति। हर चीज बाजार के हवाले कर देना- पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, खाद्य पदार्थ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन सब बाजार की कृपा पर है। सरकारी उद्योगों का धीरे-धीरे निजीकरण करना, सरकारी हवाई सेवा बीमार कर दी गई है। किसी दिन लाइलाज घोषित कर प्रायवेट को सौंप दिया जाए तो आश्चर्य नहीं। जब तक देश की अर्थनीति पूरी तरह अमरीकी अर्थनीति न बन जाए तब तक काम पूरा नहीं हुआ।  ''पूर्ण काज कीजै बिना मोहि कहां विश्राम'' की तरह प्रधानमंत्री का एजेंडा नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को पूरी अवधारणा के साथ देश में लागू करना है। ये भ्रष्टाचार, कालाधन छोटी बातें हैं, कानून इनसे निपटेगा। दबाव बना है तो लोकपाल बिल, कड़ा लोकपाल बिल पास करा दिया जाएगा। लेकिन मुख्य बात उदार आर्थिक नीतियों को लागू करना है। इसलिए प्रधानमंत्री की चुप के पीछे इस रहस्य को समझना है। मीडिया बार-बार यह कहकर कि प्रधानमंत्री चुप क्यों है, बोलते क्यों नहीं उनके सही मकसद को दबाने का काम कर रहा है। इसीलिए देश में खलबली है। जनता को सही उत्तर मिल नहीं रहा। चुप रहकर प्रधानमंत्री अपना मकसद पूरा कर रहे हैं। देश बहस में उलझा रहे, प्रधानमंत्री उद्देश्य पूरा करने में लगे रहें।  pprabhakarchaube@gmail.com
साभार- प्रभाकर चौबे [deshbandhu.co.in]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें