नीरा राडिया तब कुछ और ज्यादा जवान रही होगी। अब भी देखने में वे अच्छी ही लगती है, लेकिन 1994 में जब भारतीय जनता पार्टी के कर्नाटक के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अनंत कुमार से उनकी जान पहचान हुई थी, तो देखते ही देखते निजी और व्यवसायिक अंतरंगता में बदल गई। कांग्रेस के पास उचित ही बहाना है कि नीरा राडिया और राजा के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला करने के पहले वे अनंत कुमार से सवाल कर लें। नीरा शर्मा से नीरा राडिया बनी यह महिला जब भारत आई थी तो सबसे पहले सहारा समूह में संपर्क अधिकारी यानी वेतन भोगी दलाल की नौकरी उन्हें मिली थी। साथ ही साथ वे सिंगापुर एयर लाइन, ब्रिटिश एयर लाइन और केएलएम के साथ भी टाका भिड़ाए हुई थी। पूतना के पांव पालने में दिख रहे थे। नागरिक उड्डयन मंत्री के तौर पर अनंत कुमार से उनकी अंतरंगता ऐसी थी कि मंत्रालय की इमारत राजीव गांधी भवन में बगैर रोक टोक के उनका आना-जाना था।
इसी अंतरंगता का सहारा ले कर नीरा राडिया ने पूरी फाइल तैयार करवा ली थी, जिसमें सिर्फ एक लाख रुपए की लागत से एक पूरी एयर लाइन चलाने का लाइसेंस उन्हें मिल रहा था। इसके अलावा अनंत कुमार चूंकि पर्यटन मंत्री भी थे इसलिए भारतीय पर्यटन विकास निगम के कई शानदार होटल बिकवाने में भी नीरा राडिया ने उतनी ही शानदार भूमिका अदा की। विमान सेवा चलाने के लिए नीरा राडिया के पास एक लाख रुपए की पूंजी थी। उन्होंने विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड यानी एफआईपीबी में विमान सेवा स्थापित करने के लिए आवेदन किया और एक महीने के भीतर उन्हें अनुमति मिल गई। इतने समय में तो लोगों को राशन कार्ड भी नहीं मिलता। मगर फिर सब लोग नीरा राडिया नहीं होते।
चूंकि एफआईपीबी का काम विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देना था इसलिए उस समय के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन ने भी इसके लिए फौरन अनुमति दे दी। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि नियम क्या कहते हैं और ये आंटी जी है कौन? थोड़ा आगे बढ़े तो मुरासोली मारन उन दयानिधि मारन के पिता थे, जिन्हें बाहर रख कर ए राजा को मंत्री बनाने के लिए नीरा राडिया ने जो-जो कर्तव्य किए और जहां-जहां वीरों और बरखाओं का इस्तेमाल किया यह आप टेलीफोन टेप से जान चुके हैं।
नीरा राडिया को निवेश की अनुमति मिल गई। जब एफआईपीबी से कागज मिला तो विमान सेवा का नाम क्राउन एक्सप्रेस रखा गया और इसकी ओर से एयरक्राफ्ट एक्वीजीशन कमेटी यानी एएसी को आवेदन किया गया। आवेदन में कहा गया था कि शुरू में छह बड़े विमान ला कर उन्हें जेट और सहारा की तरह विमान सेवा शुरू करने की अनुमति दी जाए। याद किया जाना चाहिए कि क्राउन एक्सप्रेस के पास पूंजी एक लाख रुपए ही थी, जितने में एक सेकेंड हैंड खटारा कार भी नहीं आती।
एएसी के निदेशक उस समय सुनील अरोड़ा थे जो इंडियन एयरलाइंस के प्रबंध निदेशक और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी थे। इन्हीं सुनील अरोड़ा को बाद में एयर इंडिया का प्रबंध निदेशक बनाया गया और अगर आपने गौर से टेलीफोन टेप सुने हों तो बार-बार सुनील अरोड़ा एयर इंडिया के घाटे के लिए मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जिम्मेदार ठहराते हैं और नीरा राडिया उनसे कहती हैं कि वे प्रधानमंत्री से सेटिंग कर रही हैं और जल्दी ही प्रफुल्ल पटेल बीड़ी बेचते नजर आएंगे।
मगर यह बाद की बात है। उस समय तो सुनील अरोड़ा ने अनंत कुमार के निर्देश पर राडिया की हास्यास्पद फाइल को रद्दी की टोकरी में डालने की बजाय सिर्फ कुछ मासूम से स्पष्टीकरण मांगे। बाद में अरोड़ा ने कहा कि उदारीकरण का दौर था और ऐसे में प्रतियोगिता होती हैं और कई कंपनियां आती हैं, मगर उनकी पात्रता पर मौजूद नियमों और निर्देशों के हिसाब से विचार किया जाता है। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना था कि राडिया की अर्जी में काफी कुछ कमजोरियां थी। सबसे बड़ी कमजोरी तो यही थी कि जब कंपनी के पास जमा पूंजी एक लाख रुपए की हैं तो जहाज कहां से खरीदेगी क्योंकि कुल परियोजना 133 करोड़ की बन रही थी।
नीरा ने अनंत से शिकायत की। अनंत ने अफसरों को बुलाया। नीरा ने कहा कि वे नियमानुसार जरूरी तीस करोड़ रुपए की न्यूनतम शेयर राशि की बजाय 111 करोड़ रुपए इस कंपनी में डालने वाली है और 30 करोड़ का पैमाना तो वे उसी दिन पूरा कर देंगी जिस दिन उन्हें अनुमति मिल जाएगी। बाकी पैसा वे विदेशी संस्थानों से ले कर आएंगी। दूसरे शब्दों में अनुमति के लिए तीस करोड़ रुपए की पूंजी चाहिए थी मगर नीरा पूंजी के लिए अनुमति मांग रही थी।
नीरा राडिया ने यह भी कहा था कि जब तक एएसी का अनापत्य प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता, तब तक पूँजी तीस करोड़ करने का कोई मतलब नहीं होगा। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि अनुमति मिल जाने के बाद भी मंत्रालय इसे वापस ले सकता है अगर उसे लगता है कि कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी नहीं है। असल में नीरा राडिया भारत सरकार को भारत सरकार का कानून और कायदा सीखा रही थी। नीरा 6 बोईंग 737 विमान ला कर अपनी विमान सेवा शुरू करना चाहती थी और इसके लिए 500 करोड़ रुपए की जरूरत थी, मगर नीरा राडिया ने इस आपत्ति का जवाब यह कह कर दिया कि वे बहुत सारी विमान सेवा कंपनियों के लिए दलाली करती रही हैं और जैसे दूसरों के लाती थी, अपने लिए भी जहाज किराए पर ले आएंगी।
मंत्रालय के अधिकारियों ने खुद मंत्री अनंत कुमार को समझाया और नियमों की किताब दिखाई जिसके अनुसार जब तक पूंजी के स्रोत का पता नहीं चलता और सरकार उससे संतुष्ट नहीं होती, तब तक विमान सेवा शुरू करने की अनुमति देने का कोई रिवाज नहीं है। फिर भी अनंत कुमार चाहते थे कि उनकी नीरा को लाइसेंस जारी कर दिया जाए। कुछ भक्त अधिकारी इसके लिए तैयार भी थे, मगर नागरिक उड्डयन के महानिदेशक कार्यालय ने इसकी अनुमति नहीं दी, वरना तो नीरा को उसी दिन लाइसेंस मिल जाता और हो सकता है कि आज क्राउन एक्सप्रेस के नाम से कोई बड़ी विमान सेवा चल रही होती। दलाली और दोस्ती में बड़ी ताकत होती है।
एएसी के कुछ सदस्यों का मानना था, और यह मंत्रालय के रिकॉर्ड में अब तक दर्ज हैं कि अगर पैसे का स्रोत और शेयर धारकों के नाम पते नहीं बताए जाते तो पिछले दरवाजे से विदेशी विमान सेवाएं भारत के आकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती हैं, और यह देश की सुरक्षा के हिसाब से भी ठीक नहीं होगा और भारत के कारोबारी हितों में भी नहीं होगा। अनंत कुमार के बहुत सारे प्रेम के बावजूद नीरा राडिया का सपना टूट गया और पता नहीं प्रफुल्ल पटेल किस बात का इंतजार कर रहे हैं और पुरानी फाइलों को निकाल कर अनंत कुमार को जितना कर सकते हैं, उतना बेनकाब क्यों नहीं करते? [साभार भड़ास४मीडिया]
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं
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