नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 17 अगस्त 2011

लोकनायक जयप्रकाश नारायण


  
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म ११ अक्टूबर १९०२ में बिहार के छपरा जिले के सिताबदियारा नामक गाँव हुआ था. इनके बाबा का नाम श्री देवकी बाबू था तथा पिताश्री हरसू दयाल थे। जयप्रकाश जी की माता फूलरानी देवी धर्म परायण महिला थी। तीन भाई और तीन बहनों में जयप्रकाश जी चौथे स्थान पर थे। इनके बड़े भाई और एक बहन की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। पाँच साल की उम्र में उनको  गाँव के प्राथमिक विद्यालय में  भर्ती कराया गया। गाँव की पढ़ाई समाप्त करने के बाद बालक जयप्रकाश को पटना कालेजिएट स्कूल के चौथी कक्षा में भर्ती कराया गया।  वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। लोग उनको प्यार से  जेपी कहकर बुलाते थे। 1970 में उन्होंने  इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ ज़बर्दस्त आवाज उठाई और देश में सपूर्ण क्रांति का शंखनाद किया।  पटना मे अपने विद्यार्थी जीवन में जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम मे हिस्सा लिया। जयप्रकाश नारायण बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गए, युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी अनुग्रह नारायण सिन्हा,जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे और बाद मे बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रह चुके है द्वारा स्थापित किया गया था। 1922 मे वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज-शास्त्र का अध्यन किया। पढ़ाई के महंगे खर्चे को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेन्टों मे काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होने एम.ए. की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने की वजह से वे भारत वापस आ गए और पी.एच.डी पूरी न कर सके।
उनका विवाह बिहार के मशहूर गांधीवादी बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ अक्टोबर १९२० मे हुआ। प्रभावती विवाह के उपरांत कस्तुरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहीं।
१९२९ में जब वे अमेरिका से लौटे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था। उनका संपर्क गाधी जी के साथ काम कर रहे जवाहर लाल नेहरु से हुआ। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। १९३२  मे गांधी, नेहरु और अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओ के जेल जाने के बाद, उन्होने भारत मे अलग-अलग हिस्सों मे संग्राम का नेतृत्व किया। अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितंबर १९३२ मे गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक के जेल में भेज दिया गया। यहाँ उनकी मुलाकात एम. आर. मासानी, अच्युत पटवर्धन, एन. सी. गोरे, अशोक मेहता, एम. एच. दांतवाला, चार्ल्स मास्कारेन्हास और सी. के. नारायणस्वामी जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई। जेल मे इनके द्वारा की गई चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) को जन्म दिया। सी.एस.पी समाजवाद में विश्वास रखती थी। जब कांग्रेस ने १९३४  मे चुनाव मे हिस्सा लेने का फैसला किया तो जेपी और सी.एस.पी ने इसका विरोध किया।
१९३९  मे उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सरकार को किराया और राजस्व रोकने के अभियान चलाए। टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करा के यह प्रयास किया कि अंग्रेज़ों को इस्पात न पहुंचे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और ९ महिने की कैद की सज़ा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद उन्होने गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच सुलह का प्रयास किया। उन्हे बंदी बना कर मुंबई की आर्थर जेल और दिल्ली की कैंप जेल मे रखा गया। १९४२  भारत छोडो आंदोलन के दौरान वे आर्थर जेल से फरार हो गए।
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। उन्होंने नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर १९४३  मे गिरफ्तार कर लिया गया। १६ महिने बाद जनवरी १९४५  में उन्हें आगरा जेल मे स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डा. लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नामुमकिन है। दोनो को अप्रेल १९४६  को आजाद कर दिया गया।
१९४८  मे उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया, और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिल कर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रेल, 1954 में गया, बिहार मे उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनिति के पक्ष मे राजनिति छोड़ने का निर्णय लिया।
1960 के दशक के अंतिम भाग में वे राजनिति में पुनः सक्रिय रहे। 1974 में किसानों के बिहार आंदोलन में उन्होंने तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की।
वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया। उनके नेतृत्व में पीपुल्स फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपात्काल की घोषणा की जिसके अंतर्गत जेपी सहित ६०० से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। ७ महिने बाद उनको मुक्त कर दिया गया। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।
जयप्रकाश नारायण का निधन उनके निवास स्थान पटना मे 8 अक्टूबर 1979 को हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण हुआ। उनके सम्मान मे तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह ने ७ दिन के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया, उनके सम्मान मे कई हजार लोग उनकी शोक यात्रा मे शामिल हुए।


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