ऊब गया हूं इस घुटन भरी दुनिया से
अब चाहता हूं थोडी़ सी शांति
पर हैरान हूं परेशान हूं
कि जिसकी तलाश है मु÷ो
वह नजर ही नहीं आ रही है
नजर ना आने से उसके
बेचैनी मेरी बढ़ती ही जा रही है
लगता है वह भी समझ गयी है कि
जरुरत ही नहीं है उसकी किसी को
क्योंकि सबको आदत सी हो चली है
इस घुटन भरे माहौल में जीने की.(कृष्ण धर शर्मा,2000)
अब चाहता हूं थोडी़ सी शांति
पर हैरान हूं परेशान हूं
कि जिसकी तलाश है मु÷ो
वह नजर ही नहीं आ रही है
नजर ना आने से उसके
बेचैनी मेरी बढ़ती ही जा रही है
लगता है वह भी समझ गयी है कि
जरुरत ही नहीं है उसकी किसी को
क्योंकि सबको आदत सी हो चली है
इस घुटन भरे माहौल में जीने की.(कृष्ण धर शर्मा,2000)
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