नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

प्रकाश ही प्रकाश

जाने कब से छाया था अंधेरा
कुछ नजर न आ रहा था
कहां क्या हो रहा था
कुछ समझ न आ रहा था
एक दिन अचानक सब कुछ
शीशे की तरह साफ हो गया
अंधेरे का तो नामोनिशां ही मिट गया
जाने कहां से आकर रोशनी
सब कुछ उजला कर गई
जहां तक छाया था अंधेरा
प्रकाश ही प्रकाश भर गई.(कृष्ण धर शर्मा,2003)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें