नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 10 अगस्त 2011

मन और आत्मा

वह आफिस जाने के लिये समय पर तैयार होकर निकला. गली पार करने के बाद वह अभी पहले चौक पर ही पहुंचा ही था कि एक कार ट्रैफिक सिग्नल तोड़ती हुई एक व¤द्ध साइकिल सवार को ठोकर मारती हुई निकल गई. व¤द्ध साइकिल सहित दूर तक घिसट गया, उसे जानलेवा चोट तो नहीं लगी पर शायद उसके हाथ और पैर में चोट ज्यादा आ गई थी क्योंकि वह उठ कर बैठ भी नहीं पा रहा था, यह द¤श्य देखकर उसकी आात्मा ने कहा 'इस व¤द्ध की मदद करनी चाहिये इसे कम से कम हासिपटल तक तो पहुंचाना ही चाहिए. तभी उसके मन ने टोकते हुये कहा 'तु÷ो इस ÷ामेले में पड़ने की क्या जरूरत है तू आफिस जा इस व¤द्ध को कोई ना कोई तो हासिपटल पहुंचा ही देगा, वह मन की बात मानकर आफिस के लिये निकल गया.
    इस घटना के एक सप्ताह बाद ही वह एक दिन आफिस जा रहा था कि चौक के पास ही सिग्नल छूटते समय जल्दी से आगे निकलने के चक्कर मेें एक स्कूटी सवार लड़की दूसरे वाहनों में उल÷ा कर गिर गई, हालांकि उस लड़की को कोई चोट नहीं लगी पर उसके मन ने कहा कि 'हीरो बनने का मौका अच्छा है जा उस लड़की को उठा. वह फौरन अपनी बाइक को स्टैंड पर लगा कर लड़की को उठाते हुये बोला 'अरे मैंडम आपको लगी तो नहीं ! ये साले गाड़ी वाले तो अंधे होकर चलाते हैं . लड़की उठकर स्कूटी में बैठते हुये बोली 'नहीं मु÷ो कुछ नहीं हुआ, हेल्प करने के लिये थैक्यू!.आसपास जमा कुछ लोग बोले 'कितना अच्छा लड़का है जो किसी की मदद करने के लिये अपना काम छोड़कर रूक गया. यह सब देख-सुनकर उसका मन आज बहुत खुश हो रहा था पर उसकी आत्मा पिछले सप्ताह की बात याद करके आज काफी उदास लग रही थी.....(कृष्ण धर शर्मा,2005)

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