वो फ़िराक और विसाल कहाँ?
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ?
थी वो एक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई _ए-ख़याल कहाँ?
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ?
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ?
मिर्ज़ा ग़ालिब
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
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