नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 18 जनवरी 2014

बौद्ध धर्म के अव्याकृत प्रश्न



निर्वाण ही सत्य बाकी सब असत्य 

अव्याकृत का अर्थ है जो व्याकरण-सम्मत नहीं है। जब भगवान बुद्ध से जीव, जगत आदि के विषय में चौदह दार्शनिक प्रश्न किए जाते थे तो वे सदा मौन रह जाते थे। ये प्रसिद्ध चौदह प्रश्न नि‍म्नांकित हैं।

1-4. क्या लोक शाश्वत है? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?

5-8. क्या जगत नाशवान है? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?

9-11. तथागत देह त्याग के बाद भी विद्यमान रहते हैं? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?

11-14. क्या जीव और शरीर एक हैं? अथवा भिन्न?

उक्त प्रश्न पर बुद्ध मौन रह गए। इसका यह तात्पर्य नहीं कि वे इनका उत्तर नहीं जानते थे। उनका मौन केवल यही सूचित करता है कि यह व्याकरण-सम्मत नहीं थे। इनसे जीवन का किसी भी प्रकार से भला नहीं होता। उक्त प्रश्नों के पक्ष या विपक्ष में दोनों के ही प्रमाण या तर्क जुटाए जा सकते हैं। इन्हें किसी भी तरह सत्य या असत्य सिद्ध किया जा सकता है। यह पारमार्थिक दृष्टि से व्यर्थ है।

उक्त संबंध में बुद्ध ने कहा है कि भिक्षुओं! कुछ श्रमण और ब्राह्मण शाश्वतवाद को मानते हैं। दृष्टियों के जाल में और बुद्धि की कोटियों में फँसने के कारण ये लोग इन मतों को मानते हैं। तथागत इन सबको जानते हैं और इनसे भी अधिक जानते हैं। किंतु तथागत सब कुछ जानते हुए भी जानने का अभिमान नहीं करते हैं। इन बुद्धि कोटियों में न फँसने के कारण तथागत निर्वाण का साक्षात्कार करते हैं।- दीर्घनिकाय-ब्रह्मजालसुत्त


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