नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 10 मई 2014

मई दिवस : इतिहास यात्रा : एरिक हॉब्सबॉम

'प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार एरिक हॉब्सबॉम अपने प्रगतिशील इतिहास लेखन के लिये जाने जाते हैं। लगभग पाँच दशकों तक ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी से सक्रिय रूप से जुड़े रहने वाले हॉब्सबॉम ने फ्रांस की राज्यक्रांति के बाद आने वाली दुनिया का वृहत्तर इतिहास चार खण्डों-क्रमश:, दी एज ऑफ रिवोल्यूशन, दी ऐज ऑफ कैपिटल, दी एज ऑफ इम्पायर और दी एज ऑफ इक्ट्रीम्स में प्रकाशित किया है, जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने इतिहास से जुड़े हुए व्यक्तियों, घटनाओं पर प्रभूत लेखन किया है। प्रस्तुत लेख उनकी पुस्तक 'अनकॉमन पीपुलÓ (असाधारण लोग) में संग्रहीत है।
हॉब्सबॉम ने यह लेख 1990 में मई दिवस की शतवार्षिकी के अवसर पर लिखा था। 1990 के बाद पिछले लगभग ढाई दशकों में भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और बाजारीकरण के स्तंभों पर टिकी एक नई विश्वव्यवस्था के अस्तित्व में आ जाने की लगातार घोषणा समारोहपूर्वक की जा रही है। इतिहास को मृत अथवा मरणासन्न घोषित किया जा चुका है, राजनैतिक वाम लहूलुहान और विखण्डित हो चुका है, क्रांति की अवधारणा या तो पूरी तरह खारिज की जा चुकी है अथवा अधिरचना तक सीमित हो गई है; लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर बाजार की शक्तियों का पूर्ण अधिपत्य हो चुका है, शोषण, वंचना, अन्याय जैसे शब्द नये रंग-रोगन में अपनी परिवर्तनकारी अंर्तध्वनियों से महरूम कर दिये गये हैं, सपनों पर उपभोक्तावाद के पहरेदारों ने मोर्चा संभाल लिया है। ऐसे में, किसी ऐसी परिवर्तनकामी घटना का स्मरण जिसको पृथ्वी के अकिंचनों ने अंजाम दिया था, आज के उदास सन्नाटापूर्ण माहौल में थोड़ी सी ही सही झनझनाहट तो पैदा ही करता है। इसी झनझनाहट में पाठकों को सहभागी बनाने के लिए इस लेख का सारांश यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
1990 में माइकेल इग्नतीफ ने 'आब्जर्वर में लिखते हुए यह टिप्पणी की थी कि धर्म-निरपेक्ष समाज धार्मिक अनुष्ठानों के विकल्प देने में कभी भी सफल नहीं हुए हैं। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि संभव है फ्रांस की राज्य क्रांति ने गुलामों को नागरिक बना दिया हो, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे शब्द को प्रत्येक स्कूल में खुदवा दिया हो और मठों (गिरजाघरों) को मलबे में बदल दिया हो लेकिन जुलाई की 14 तारीख के अलावा पुराना ईसाई कैलेण्डर ज्यों का त्यों बना रहा। प्रस्तुत लेख में मेरा विषय है ईसाई अथवा किसी अन्य आधिकारिक कैलेण्डर में किसी धर्मनिरपेक्ष आंदोलन द्वारा किया गया शायद पहला हस्तक्षेप। अर्थात् अवकाश का एक ऐसा दिन जो एक या दो देशों में ही नहीं, अपितु 1990 में आधिकारिक तौर से 107 सरकारों द्वारा मान्यता पा चुका है। इससे भी बड़ी बात यह है कि अवकाश का यह दिन किसी सरकार अथवा विजेता ने घोषित नहीं किया था अपितु इसका जन्म हुआ था गरीब स्त्री-पुरुषों के एक पूर्ण रूप से अनौपचारिक आंदोलन की कोख से। मैं बात कर रहा हूं मई दिवस अथवा, और सटीक ढंग से, मई मास के पहले दिन की, मजदूर आंदोलन के अंतरराष्ट्रीय पर्व की जिसका शताब्दी समारोह 1990 में मनाया जाना चाहिए था क्योंकि इसका प्रारम्भ हुआ था 1890 में।
''मनाया जाना चाहिये थाÓÓ बहुत ठीक कहा है मैंने क्योंकि इतिहासकारों के अलावा शायद किसी ने भी इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई, यहां तक कि समाजवादी दलों ने भी नहीं जो कि उनके वशंज हैं जिन्होंने 1889 में, जिसे द्वितीय इंटरनेशनल कहा जाता है, उस महासम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय मजदूरों में मई 1890 में कार्य-दिवस को 8 घण्टे तक सीमित करने के पक्ष में प्रदर्शन करने की अपील की थी। यह बात उन दलों के लिये भी सही है जो 1889 में महासम्मेलन में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से थे और जो आज भी अस्तित्व में है द्वितीय इंटरनेशनल में भागीदारी करने वाले दल अथवा उनके उत्तराधिकारी ही आज पश्चिम यूरोप में सरकारों, मुख्य विरोधी दलों अथवा उनके उत्तराधिकारी ही आज पश्चिम यूरोप में सरकारों, मुख्य विरोधी दलों अथवा वैकल्पिक सरकारों के प्रतिनिधि चुनते हैं। इन दलों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपना गौरव-बोध अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में दिखाए अथवा उसमें कम से कम अपनी रुचि तो प्रकट करें ही।
मई दिवस की शतवार्षिकी को लेकर ब्रिटन में सबसे कड़ा प्रतिवाद किया था सेना के एक पूर्व जनरल और लंदन विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के पूर्व प्रधान सर जॉन हैकिट ने। उन्होंने मई दिवस खत्म करने की पहल इसलिए की थी क्योंकि इसे वे एक प्रकार का सोवियत हस्तक्षेप अथवा साम्यवादी विचारधारा का प्रतीक मानते थे उनका विचार था कि अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खात्मे के बाद मई दिवस को जीवित रखने का काई औचित्य नहीं रह गया है। लेकिन 'यूरोपियन कम्यूनिटीÓ के बासंती मई दिवस के जन्म को बोल्शेविकों से काई संबंध नहीं है। यह कमाल समाजवाद-विरोधी राजनीतिज्ञों का था जिन्होंने यह जान लिया था कि किस तरह मई दिवस यूरोप के मजदूर वर्ग की चेतना में गहरे बैठा है और इसका विरोध करने के लिए उन्होंने मई दिवस के ही दिन एक नया त्यौहार मनाने का निश्चय किया ताकि लोग मई दिवस का मजदूर वर्गों से नाता भूल जाय। यहां फ्रेंच सांसदों द्वारा अप्रैल 1920 में जारी एक प्रस्ताव का जिक्र किया जा सकता है जिस पर हस्ताक्षर करने वालों के बीच सहमति का एक ही आधार था और वह यह कि सभी के सभी समाजवाद के विरोधी थे। प्रस्ताव के अनुसार, ''इस अवकाश के साथ किसी भी प्रकार की ईष्र्या अथवा घृणा का भाव नहीं होना चाहिए (वर्ग संघर्ष/के लिए यह एक प्रकार की कूट शब्दावली थी)। सभी वर्ग, अगर अब भी वर्गों का अस्तित्व है तो, और देश की सभी उत्पादी ऊर्जायें एक ही विचार और एक ही आदर्श से प्रेरित होकर एकजुट हो जाएं।
यूरोपियन कम्यूनिटी के जन्म के पहले मई दिवस के साथ घाल-मेल करने में सबसे पीछे थे धुर दक्षिणपंथी, न कि वामपंथी। सोवियत संघ के बाद हिटलर की सरकार पहली थी जिसने मई दिवस को अधिकारिक राष्ट्रीय श्रमिक दिवस घोषित किया। मार्शल पेतिन की विचो सरकार ने पहली मई को श्रम और सहयोग के त्योहार के रूप में मान्यता दी और ऐसा माना जाता है कि इसकी प्रेरणा पेतिन का स्पेन की तानाशाह जनरल फ्रांको से मिली थी क्योंकि उस समय पेतिन जो फ्रांको के प्रशंसक थे स्पेन में फ्रांस के राजदूत थे। सचतो यह है कि मई दिवस पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा करने वाली यूरोपियन इकोनामिक कम्यूनिटी के अधिकांश सदस्य समाजवाद-विरोधी थे तो भी उन्होंने मार्गरेट थैचर के विरोध की परवाह न करते हुए इसकी घोषणा की। पश्चिमी देशों के आधिकारिक मई दिवस अनौपचारिक मई दिवसों की परंपरा को समझने और इसे मजदूर आंदोलनों, वर्ग-चेतना और वर्ग-संघर्ष से अलग करने के प्रयास थे। लेकिन ऐसा कैसे हो गया कि यह परंपरा इतनी जबर्दस्त साबित हुई कि इसके शत्रुओं को भी इसे स्वीकार करने के बारे में सोचना पड़ा जबकि उसी समय समाजवाद के प्रचंड विरोधी हिटलर, फ्रांको और पेतिन समाजवादी  मजदूर  आंदोलन को समूल नष्ट करने में लगे हुए थे?

मई दिवस के संस्थानीकरण का असाधारण पहलू यह है कि यह किसी योजनाबद्ध क्रम से नहीं हुआ और इस तरह इसे किसी अर्थ में कोई आविष्कृत परंपरा न मानकर एक अचानक होने वाला विस्फोट माना जाना चाहिए। अवसर था फ्रांस की राज्यक्रांति के शताब्दी वर्ष में पेरिस में आयोजित द्वितीय इण्टरनेशनल जिसे माक्र्सवादी इण्टरनेशलन भी कहा जाता है। इसी अवसर पर इण्टरनेशलन में दो संस्थापक लेकिन प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेसों में से एक के द्वारा पारित ऐसा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसके अनुसार एक निश्चित तिथि पर विश्व भर में मजदूरों का प्रदर्शन आयोजित किया जाना चाहिये जिसमें वे अपने-अपने मालिकों (सरकारी और निजी) से 8 घण्टे प्रतिदिन काम करने के वैधानिक अधिकार की मांग करें और चूंकि अमरीकी मजदूर महासंघ ने पहले से ही 1 मई, 1890 को प्रदर्शन का निर्णय ले लिया था अत: इसी दिन को अंतरराष्ट्रीय मजदूर प्रदर्शन के लिए भी चुन लिया गया। इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि अमेरिीका में मई दिवस ने उतनी लोकप्रियता नहीं पाई जितनी अन्य देशों में लेकिन इसका कारण यह था कि वहां पहले से ही सितम्बर मास का पहला सोमवार अधिकारिक रूप से श्रमिक दिवस के रूप में सार्वजनिक अवकाश का दिन मौजूद था।
मई दिवस के पहले ब्रिटेन सहित लगभग सभी देशों में अवकाश धार्मिक अवसरों पर ही होते थे। ब्रिटेन में यूरोपीय समुदाय का मई दिवस बैंक अवकाश में शामिल कर लिया गया है। धार्मिक अवकाश और मई दिवस दोनों में सार्वदेशिकता की आकांक्षा थी जिसे श्रमिक शब्दावली में अंतरराष्ट्रीतावाद कह सकते हैं। सार्वदेशिकता ने इसमें शामिल होने के लिये लोगों को उत्साहित किया और इस दिन के आकर्षण को बढ़ाया। इस अवसर के सांस्कृतिक इतिहास और चित्रांकन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मई दिवस पर निकाले जाने वाले लंबे पन्नों चित्रांकन के लिये अत्याधिक महत्वपूर्ण मई दिवस पर निकाले जाने वाले लंबे पन्नों  वाले असंख्य अखबार इस बात के प्रमाण हैं। फासिस्ट-पूर्व इटली के 308 ऐसे अखबारों को आज भी सुरक्षित रखा गया है। 1891 में बोलोग्ना से प्रकाशित पहले मई दिवस विशेषांक में इस अवसर की सार्वदेशिकता पर लेख छपे हैं। ईस्टर और हिटसन जैसै धार्मिक पर्वों पर निकलने वाले विशेषांकों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में मनाये जाने वाले वसंतोत्सव में मई दिवस के समारोहों की समानता स्पष्ट है।
कैथोलिक समुदायों और अशिक्षित वर्गों के बीच मई दिवस की लोकप्रियता का एक प्रमाण यह भी है कि इतावली समाजवादी लोग 1811 के पश्चात् मई दिवस के लिए 'श्रमिकों का ईस्टरÓ नाम का प्रयोग करते थे टोर इस तरह के नाम 19वीं सदी के नब्बे के दशक के मध्य से ही बहुत लोकप्रिय हो गए थे और इसके कारण भी साफ हैं। किसी धार्मिक आंदोलन अथवा पुनरूथानवादी धार्मिक आंदोलन से मई दिवस की तुलना, विशेष रूप से प्रारंभिक उत्साह के वर्षों के मई दिवस की तुलना, ठीक ही थी क्योंकि मई दिवस से उसी प्रकार की आशा श्रमिकों के मन में हिलोरें ले रही थीं जैसे किसी मसीहा की भविष्यवाणी से विश्वासी लोगों के मन में होती है।
समाजवादी मजदूर आंदोलन के लिए लोकतंत्र का केन्द्रीय महत्व था। यही नहीं कि मजदूर आंदोलन के लिए यह अनिवार्य था अपितु दोनों को अलग ही नहीं किया जा सकता था। जर्मनी में प्रथम मई दिवस की स्मृति में एक ताम्रपत्र तैयार किया गया था जिसमें एक ओर कार्ल माक्र्स का चित्र था तो दूसरी ओर स्वतंत्रता की मूर्ति का। 1891 के आस्ट्रियाई प्रतिचित्र में कार्ल माक्र्स अपनी पुस्तक पूँजी की प्रति हाथ में लेकर एक खूबसूरत टापू की ओर संकेत कर रहे हैं। जिसकी पृष्ठभूमि में मई दिवस का उगता हुआ सूर्य दिखाई दे रहा है, जो भविष्य की ओर संकेत करने वाला बहुत ही लोकप्रिय प्रतीक सिद्ध हुआ। सूर्य की किरणें फ्रांस की राज्यक्रांति के तीन नारे समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की प्रतीक हैं। मई दिवस के तमाम पुराने स्मृति चिन्हों में ये नारे दिखाई पड़ते हैं। माक्र्स ऐसे मजदूरों से घिरे हुए हैं जो उस टापू की ओर जाने वाले जहाज को चलाने के लिए तत्पर हैं। जहाज के मस्तूलो पर लिखा है: ''सभी को प्रत्यक्ष मताधिकार, आठ घण्टे प्रतिदिन श्रम और श्रमिकों की सुरक्षा। मई दिवस की यही मौलिक परंपरा थी।
जो भी हो, वह स्वर्ण युग नहीं आया ओर मजदूर आंदोलनों की तमाम बातों की तरह मई दिवस भी नियमित और संस्थानीकृत हो गया हालांकि महान संघर्षों और विजयों के पश्चात आगे आने वाले वर्षों में विजय और उम्मीद के पुराने विस्फोट का संकेत इसमें अवश्य ही वापस लौटा। रूसी क्रांति के प्रारंभिक वर्षों में दीवानगी से मनाए जाने वाले मई दिवसों में इसकी झलक देखी जा सकती है और यूरोप में 1919-20 के दौरान लगभग हर जगह यह उत्साह तब देखने को मिला जब आई घण्टे के कार्य दिवस के पहले मई दिवस की माँग मान ली गई। 1934-35 में फ्रांस में लोकप्रिय मोर्चे की सरकार के शुरूआती दिनों में भी इसकी झलक मिली और फासीवाद की पराजय और जबर्दस्ती अधिकृत किए गए यूरोप के अन्य क्षेत्रों की मुक्ति के समय भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला। फिर समाजवादी मजदूर आंदोलन वाले तमाम देशों में 1914 के कुछ पहले ही मई दिवस रूटीन में शामिल हो गया।
जिस समाज ने मई दिवस को जन्म दिया वह अब बदल गया है। उस पुराने सर्वहारा ग्रामीण समुदाय का जो बूढ़े इतावली लोगों की यादगार में अभी भी बसा हो सकता है आज क्या महत्व रहा गया है? एक वृद्ध इतावली श्रमिक के अनुसार ''हम लोग पूरे गांव का चक्कर लगाते थे। फिर सार्वजनिक भोज होता था। दल के सभी सदस्य तथा जो लोग आना चाहते थे, सभी लोग मौजूद रहते थे। औद्योगिक देशों में उन लोगों का क्या हुआ जो 1890 के दशक में भी अपने को इंटरनेशनल के उस नारे में खोजते थे जिसके शब्द थे: ''और दुनिया के भूखे, नंगे, नींद से जागो? इटली में 1920 के मई दिवस से कुछ ही पहले चालू हुई एक मिल की एक (उस समय) बारह वर्षीय टेक्सटाइल मजदूर लड़की ने 1980 में उन दिनों को याद करते हुए कहा था, ''आज तो काम पर जाने वाले लोग भद्र स्त्री-पुरुष होते हैं और वे जो भी मांगते हैं उन्हें मिल जाता है। भविष्य में तथा तर्क और तरक्की की विजय में विश्वास जगाने वाले और अखबार मुक्ति के हथियार हैं, विज्ञान और कला के झरने का पानी पियो, न्याय का प्रसार करने में तब तुम काफी मजबूर बन जाओगे। अपनी प्यारी और हरी-भरी धरती पर स्वर्ण उतारने के हमारे सामूहिक स्वप्न का क्या हुआ?
लेकिन बावजूद इन सारी बातों के, अगर आज मई दिवस एक अवकाश से अधिक कुछ नहीं रह गया है, एक फ्रेंच विज्ञापन के अनुसार एक ऐसा दिन जब हमें नींद की गोली नहीं लेनी पड़ती क्योंकि इस दिन में हमें काम नहीं करना होता है। तो भी यह बहुत ही खास किस्म का अवकाश-दिवस बना हुआ है। सच है कि अब यह ''कैलेण्डर से बाहर अवकाश का दिन नहीं रहा जिसे कभी बड़े गर्व से कहा जाता था क्योंकि यूरोप में (और तमाम अन्य देशों में भी) अब यह कैलेण्डर का हिस्सा बन चुका है। (यूरोप में) 25 दिसम्बर और 1 जनवरी को छोड़कर सारे दिनों में से मात्र यही एक ऐसा दिन है जब सारी दुनिया में मजदूर अपना काम बंद कर देते हैं। इस तरह इसने धार्मिक अवकाश के दिनों के अपने मित्रों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। लेकिन इसकी शुरूआत नीचे से (अर्थात् मजदूरों से) हुई। इसे उन अनाम मजदूरों ने स्वयं बनाया जिन्होंने इसके माध्यम से पेशा, भाषा, यहां तक कि राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर एक वर्ग के रूप में अपने को पहचाना और वर्ष भर मेें एक दिन काम न करने के लिए जान-बूझ कर निर्णय किया : श्रम करने की नैतिक, राजनैतिक और आर्थिक अनिवार्यता का दर्प भंग किया। विक्टर अडलर ने नैतिक, राजनैतिक और अर्थिक अनिवार्यता का दर्प भंग किया। विक्टर अडलर ने 1893 में कहा था : ''मई अवकाश का, काम से विश्राम का यही अर्थ है जिससे हमारे विरोधी डरते हैं। यह है जिसे वे क्रांतिकारी मानते हैं।

अनुवाद
रामकीर्ति शुक्ल
 (साभार: अभिनव कदम-30)(देशबन्धु)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें