नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 6 जून 2016

घाटी का दर्द


एक घाटी
जो जार-जार रोती
दिन भर वाहनों के शोरोगुल से
रही आक्रांत
हैरान और परेशान  
जो रात में चाहे विश्राम
मगर सो न पाती
इंसानों की दिन-रात चलने की हवस
उसे सोने न देती
डर है कि कहीं घाटी
जो दिन-रात सो न पाती
नाराज गर हुई तो
आफत ही फिर आ जाती 
स्वार्थी मानव आबादी
फिर चीखती चिल्लाती
घाटी मगर चाहकर भी
इनपर रहम न कर पाती
                 (कृष्ण धर शर्मा, २०१६)

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