देहाती
लड़की प्यार भी करती है
ठेठ
देहातीपन से अपने प्रेमी को नहीं आते हैं उसे नये ज़माने के
नाज-नखरे और ताम-झाम
रूठने-मनाने को ही समझती है वह प्रेम
या फिर प्रेमी के साथ बैठकर
बुनती है वह सुनहरे भविष्य के सपने
हाँ मगर उसके सपने भी होते हैं उतने ही बड़े
जो समां सकें प्रेमी की चादर में
भांप लेती है वह प्रेमी के चेहरे के भाव
खुश है या उदास या फिर है नाराज
चिंता भी करती है वह आजकल
क्योंकि अब अक्सर जाने लगा है
उसका प्रेमी पास ही के शहर घूमने
सुन रखा है उसने किसी के मुंह से
शहर की लड़कियां बड़ी तेज होती हैं
वह समझाना चाहती है अपने प्रेमी को
मगर यह सोचकर चुप रह जाती है कि
नाराज न हो जाये उसका प्रेमी
उसकी चिंता को लांछन समझकर
इसलिए करती है वह शिवजी की पूजा
पूरे मनोयोग से, जतन-विधान से
ताकि प्रेमी उसका बचा रहे
दुनिया की बुरी नजरों से
(कृष्ण धर शर्मा, २०१६)
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